श्री हरिमंदिर साहेब

अमृतसर का गोल्डन टेंपल, जहां मत्था टेकने से मिलती है शांति

घूमने जाना हो या फिर नई जगह की तलाश में निकलना हो, इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि ऐसी जगह चुनें, जहां न केवल खूबसूरत वादियां हो, बल्कि शांति और सुकून का भी एहसास हो। अमृतसर का गोल्डन टेंपल (Amritsar Golden Temple) उन्हीं जगहों में से एक है, जहां मत्था टेकने भर से शांति व सुकून का एहसास होता है।

मैं ऐसी जगह पर जाने की सोच रहा था, जहां की खूबसूरती को देखकर ना केवल तनाव कम हो, बल्कि आध्यात्मिक शांति का भी एहसास हो। इसी एहसास को पाने के लिए मैंने गोल्डन टेंपल अमृतसर (Golden temple Amritsar) को चुना। फिर क्या था अपने एक दोस्त को फोन मिलाया और अपने साथ चलने के लिए राज़ी किया। बात बनते ही लगे हाथों हमने दिल्ली से अमृतसर शताब्दी एक्सप्रेस की टिकट भी करा ली। फिर क्या था, हम इंतजार करने लगे यात्रा की उस तारीख का।

पंजाब का दिल कहे जाने वाले स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने का एहसास मैं एक बार फिर करना चाहता था। वर्षों पहले मैं पापा-मम्मी के साथ वहां जा चुका था, ऐसे में अमृतसर के गोल्डन टेंपल में मत्था टेकने के साथ वहां के लंगर का प्रसाद भी ग्रहण करना चाहता था। किसी सिनेमा की रील की तरह मैं पुरानी यादों में कब खो गया मुझे पता ही नहीं चला। वहां की लस्सी, मक्के की रोटी, सरसों दा साग, पुदीने की चटनी, कुल्चे और ना जाने क्या-क्या। इस बार तो मैंने ठान लिया था कि बिना इन व्यंजनों का लुत्फ उठाए मैं वापस नहीं आऊंगा।

आखिरकार, वो दिन आ गया और हम पहुंच गए अमृतसर। हम अमृतसर स्टेशन से महज़ कुछ किलोमीटर दूर ही होंगे कि बारिश होने लगी और जैसे ही हम वहां पहुंचे बारिश की सोंधी खुशबू के साथ हल्के ठंडक भरे मौसम ने मानो हमारा दिल ही जीत लिया। हम सबसे पहले गोल्डन टेंपल में मत्था टेकना चाहते थे, ऐसे में हमने वहां तक जाने के लिए स्थानीय दुकानदार से पता पूछा। उनके बताए अनुसार हम गोल्डन टेंपल के बाहर गेस्ट हाउस में कमरा बुक करा लिया।

गेस्ट हाउस में फ्रेश होने के बाद हम गोल्डन टेंपल (Golden Temple) पहुंचे। गुरुद्वारा के मुख्य द्वार के बाहर हमने साफा खरीदा और अपने सिर पर बांध लिया। फिर गोल्डन टेंपल के मुख्य द्वार पर ही हौज़ था, वहां पैर धोकर दोनों हाथों को जोड़ते हुए आगे बढ़े। आगे बढ़ते ही पवित्र अमृत सरोवर देख दिल खुश हो गया, जल को माथे पर लगा नमन कर आगे बढ़े। कहा जाता है कि इसी पवित्र अमृत सरोवर के कारण इस जगह को अमृतसर का नाम दिया गया। गुरुद्वारा में कदम रखते ही एक-एक पल शांति का एहसास करा रहा था। वहां देश-दुनिया के हजारों लोग दर्शन करने पहुंचे थे। लाइन में लगे ही थे कि संगत के साथ एक सुर में वाहे गुरु, वाहे गुरु… का जाप करते हुए कतार में बढ़ते चले गए। फिर श्री हरिमंदिर साहब में मत्था टेका।

पवित्र अमित सरोवर में काफी मछलियां थी, जिन्हें हम काफी देर तक निहारते रहे। वहीं, सरोवर के पवित्र जल को हमने माथे से भी लगाया। फिर गुरुद्वारे की परिक्रमा की।

अमृतसर के गोल्डन टेंपल में आए और यहां के लंगर का प्रसाद न खाया, तो यात्रा अधूरी रह जाती। फिर क्या था दोपहर के लंगर की लाइन लगी थी, हम भी लोगों के पीछे लग गए। हमारी बारी आई, गुरुद्वारा में सेवा कर रहे सिख भाई-बहनों ने थाली दी, फिर ग्लास दिया। वहां पहली बार मैंने ऐसी मशीन देखी, जो साइकिलनुमा थी। जिस प्रकार हम साइकिल का ब्रेक दबाते हैं, वो उसी मशीन से नीचे बैठी संगत के आगे आकर उनके ग्लास में ब्रेक दबा पानी दे रहा था। ठीक उसी प्रकार साइकिलनुमा मशीन से ही दाल भी परोसी जा रही थी। रोटी प्रसाद लेने का भी खास तरीका देखा, जो हमें ये एहसास दिलाता है कि भोजन कितना कीमती है। पंगत में बैठी संगत दोनों हाथों को जोड़कर रोटी प्रसाद ले रहे थे, हमने भी ऐसा ही किया… ये वो आदत हैं, जो मेरे जीवन में शामिल हो गई, आज भी घर पर बनी रोटी को मैं दोनों हाथ जोड़कर ही लेता हूं। गुरु को नमन कर हमने प्रसाद खाया। प्रसाद का स्वाद ऐसा कि भुलाए न भूले। प्रसाद ग्रहण कर हमने सेवा भी की। जैसे बर्तन धोना, दरी उठाना आदि। सेवा करने का ऐसा सौभाग्य भला और कहां मिलता है। जहां अमीरी-गरीबी का फासला भुलाकर सभी सेवा करते हैं।

गोल्डन टेंपल (Golden Temple) में कदम रखने के साथ वहां 24 घंटे चलने वाला श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ काफी सुकून का एहसास दिला रहा था। वहीं, सोने से बनी गुरुद्वारा की खूबसूरती देखते ही बन रही थी। देखते ही देखते शाम हो गई। हम अभी भी गुरुद्वारा (Gurudwara) प्रांगण में ही थे। शाम में एक और नज़ारा ऐसा था, जिसने हमारे इस सफर को सफल ही बना दिया हो। अंधेरे में स्वर्ण मंदिर की रोशनी जब सरोवर पर पड़ती है, तो पानी पर स्वर्ण मंदिर की आकृति देखते ही बनती है। फिर मत्था टेक हम गोल्डन टेंपल परिसर से बाहर निकले। वहां मैंने खुद के लिए और दोस्तों के लिए कड़ा भी खरीदा।

इसके अगले दिन हम अमृतसर के आसपास के जगहों पर भी गए। जैसे जलियांवाला बाग, वाघा बॉर्डर, दुर्ग्याणा मंदिर, हॉल बाजार। हॉल बाजार की शॉपिंग की बात ही अलग है, यहां रसोई के सामान के साथ पटियाला सूट, दुपट्टे और पंजाबी जूतियों का खास कलेक्शन मिलता है, जो दुनियाभर में कहीं भी एक साथ नहीं मिलते हैं।

गोल्डन टेंपल के पास ही जलियांवाला बाग है। ये वही जगह है, जहां अंग्रेजों ने भारतीय लोगों के साथ क्रूरता की थी। क्रूर अंग्रेजी हुकूमत के अफसर जनरल डायर ने करीब 380 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उस दौरान यहां हजारों की संख्या में लोग थे। यहां की दीवारों पर गोलियों के निशान आज भी देखने को मिल जाएंगे। इसके बाद हम वाघा बार्डर की ओर निकल गए। वहां पहुंचते ही हमारे दिलों में देशभक्ति की भावना ऐसी जगी कि हम भी भीड़ के साथ-साथ भारत माता की जय… के नारे लगाने लगे। इस जगह भारत व पाकिस्तान की सेना आमने-सामने अपनी आवाज़ व परेड के बल पर शक्ति प्रदर्शन करते हैं। भारतीय जवान परेड करते हुए शाम में सूर्य ढलने के पहले रोमांचक अंदाज में तिरंगे को सम्मानपूर्वक उतारते हैं। फिर क्या था, रात में हमने अपने कैब ड्राइवर से खाने की अच्छी जगह के बारे में पूछा और ढाबे का रुख किया। वहां रोटी में मक्खन लगा, सरसो दा साग, मक्के की रोटी, कुल्चे-छोले सहित कई व्यंजनों का लुत्फ उठाया।

मेरे लिए ये जगह उन जगहों में से एक है, जहां मैं बार-बार जाना चाहूंगा। जिस मकसद के साथ हमने इस जगह को चुना था, यहां आने पर हमारा मकसद पूरा हुआ।

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