रोज़ की दिनचर्या में हम न जाने कितनी शारीरिक गतिविधियां करते रहते हैं, पर उन सब को करने के लिए हमें हमारे शरीर के किस-किस हिस्से की ज़रूरत पड़ रही है, ये कभी ध्यान नहीं देते। इसका एहसास तब होता है, जब वो हिस्सा काम करना बंद कर देता है, जैसे- एक दिन मेरे हाथ का अंगुठा चाकू से कट गया। बहुत खून बहने के बाद मैंने उस पर तुरंत बैंडेज लगा लिया। उसके बाद मुझे फोन चलाने में और लैपटॉप पर काम करने में बहुत तकलीफ होने लगी और तब मैंने महसूस किया कि एक मामूली-सा अंगूठा मेरी दिन-भर की दिनचर्या का कितना बड़ा हिस्सा है। उसके बिना तो मैं अपने राइटिंग करियर में आगे ही नहीं बढ़ सकती। मेरे लिए तो ये बस एक मामूली-सी चोट थी जो कुछ दिनों बाद अपने आप ठीक हो गई थी।
लेकिन, इस दुनिया में जाने कितने लोग ऐसे हैं, जो जन्मजात या किसी बड़े हादसे के बाद शारीरिक तौर पर दिव्यांग हैं और उन्होंने जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। उन्होनें किसी भी हादसे को अपनी कमी कभी बनने नहीं दिया। भगवान ने जिन्हें हाथ नहीं दिये, उन्होंने पैरो को हाथ बनाकर दिखा दिया और जिनको आंखें नहीं मिलीं, उन्होंने बिना आंखों के ही दुनिया को अपना करतब दिखा दिया। जैसे भारतीय तीरंदाज शीतल देवी ने पैरो से तीर चला कर पूरे विश्व को दिखा दिया कि कोई भी दिव्यांगता सपनों के आड़े नहीं आ सकती। इसी प्रकार भरतनाट्यम नृत्यांगना सुधा चंद्रन जी ने अपने एक पैर पर डांस करके सबको दिखा दिया कि बस इरादे मजबूत होने चाहिए फिर आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
विकलांगता और दिव्यांगता में अंतर (Viklangata aur divyangata mein antar)
हम सब विश्व विकलांगता दिवस या फिर विश्व दिवयांगता दिवस सुनते हैं। क्या हम विकलांगता से दिव्यांगता तक के सफर को समझते हैं? क्या हमें इन दोनों समान से शब्दों में अंदर पता है? विकलांगता का अर्थ होता है शरीर के किसी अंग से अपाहिज होना और दिव्यांगता का अर्थ होता है किसी अंग के न होने पर किसी अन्य दिव्य अंग का होना। बिना हाथ के तीर चलाने वाले, बिना पैर के नाचने वाले दिव्यांग ही तो होते हैं। उनके अंदर कोई दिव्य अंग होता है, जो उन्हें ऐसा कर दिखाने में मदद करता है।
साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकलांग की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द को हिंदी भाषा में इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था। इस सुझाव के बाद ज़्यादातर जगहों पर ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा।
दिव्यांगता कितने प्रकार की होती है? (Divyangata kitne prakar ki hoti hai?)
दिव्यांगता कई प्रकार की होती हैं जैसे बौद्धिक, शारीरिक, संवेदी और मानसिक। अलग-अलग दिव्यांगता के अलग-अलग लक्षण होते हैं। हम एक दिव्यांगता से ग्रस्त व्यक्ति से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वो वह वो सब करने में समर्थ हो जो दूसरा दिव्यांग कर रहा है। हर दिव्यांग की अपनी क्षमता होती है। आइये इस अंतर को और अच्छे से समझें।
बौद्धिक अक्षमताओं के प्रकार
बौद्धिक विकलांगता का मतलब संचार करने, सीखने और जानकारी बनाए रखने में कठिनाई हो सकती है। इससे ग्रस्त व्यक्ति को सामान्य लोगों की तरह लोगों के साथ व्यवहार करने में परेशानी होती है।
शारीरिक दिव्यांगता के प्रकार
विभिन्न प्रकार की शारीरिक अक्षमताएं किसी व्यक्ति की शारीरिक क्षमता या गतिशीलता को अस्थायी या स्थायी रूप से प्रभावित कर सकती हैं। जैसे- अपंगता, एक हाथ का न होना या सामान्य से अलग या छोटा होना इत्यादि। इसमें संबंधित व्यक्ति को अपनी शारीरिक कमी की वजह से एक सामान्य जीवन जीने और दिनचर्या के कामों को करने में दूसरों की मदद की ज़रूरत होती है।
मानसिक रोग के प्रकार
विभिन्न प्रकार की मानसिक बीमारियां, व्यक्ति की सोच, भावनात्मक स्थिति और व्यवहार को प्रभावित करती हैं। मानसिक दिव्यांगता मानसिक कमजोरी या कोई अन्य मानसिक विकार से ग्रस्त होना है।
संवेदी विकलांगता के प्रकार
विभिन्न प्रकार की संवेदी अक्षमताएं, एक या अधिक इंद्रियों को प्रभावित करती हैं, जैसे- देखना, सुनना, गंध, स्पर्श, स्वाद या स्थानिक जागरूकता।
ऊपर बताए गए हर प्रकार के दिव्यांग व्यक्ति में एक खास तरह की शक्ति होती है, जो आम लोगों से हटकर होती है।
कब मनाते हैं विश्व विकलांगता दिवस? (Kab mante hain International Day of Disabled Persons)
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगता दिवस या विश्व विकलांगता दिवस, हर साल 3 दिसंबर को मनाया जाता है। साल 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने ‘विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ के रूप में वर्ष 1981 को घोषित किया गया था। इस दिन को मनाने का मकसद है उन मुद्दों पर बात करना जिनसे एक दिव्यांग व्यक्ति को गुज़रना पड़ता है। उनकी दिनचर्या में किस तरह की समस्याएं आती हैं, उनका निवारण कैसे किया जा सकता है और हम उनकी किस तरह से मदद कर सकते हैं, इन सभी विषयों पर बात की जाती है। ख्याल रखें कि हम सब की कोशिश होनी चाहिए कि हर दिव्यांग की मदद ज़रूर करें मगर उन्हें लाचार महसूस कराने से बचें।
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