सही इलाज के लिए ऑटिज्म को समझें

दुनियाभर में जितने भी शिशु पैदा लेते हैं उनमें करीब 80 शिशु में से एक ऑटिज्म के साथ पैदा होता है। इसके बावजूद हममें से अधिकांश लोगों को इस समस्या के बारे में पता ही नहीं होता।

बातचीत की कला और समझने की शक्ति होने के बाद भी ऐसा होता है कि हम दूसरे व्यक्ति को गलत समझ लेते हैं। कई बार हम सामने वाले व्यक्ति की सोच से इत्तेफाक नहीं रखते या फिर हमारी समझ में फेर आ जाता है। हममें से कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए यह और भी मुश्किल होता है, क्योंकि वे मानवीय बातचीत के कुछ प्रचलित तौर-तरीके जैसे कि चेहरे के हाव-भाव, हाथ के इशारे, छूने का अहसास या फिर नज़रों की भाषा को भी समझ नहीं पाते। ऐसे लोग एक विशेष विकार का शिकार होते हैं, जिसमें सामाजिक मेलजोल एक चुनौती बन जाता है। दुनिया में पैदा होने वाले 80 में से एक को ऑटिज्म होता है। फिर भी अधिकांश लोगों को इसके बारे में पता नहीं है। कुछ लोग तो इसे व्यक्तित्व विकार भी मान बैठते हैं। सच तो यह है कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक ऐसी जटिल स्थिति है, जिसे समझना तो दूर, इसे अकेले संभालना और इसके साथ जीना भी मुश्किल होता है। यह हर व्यक्ति में भिन्न होती है। इसी वजह से विशषज्ञों में भी इसकी सटीक जानकारी या व्याख्या को लेकर आम राय नहीं बन पाई है।

ऑटिज्म (Autism) सोसाइटी की अधिकृत वेबसाइट के अनुसार, ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक दिमागी बीमारी है। इसमें मरीज न तो अपनी बात को ठीक से कह पाता है, ना ही दूसरों की बात समझ पाता है और ना ही उनसे बातचीत कर पाता है। यह एक डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है। इसके लक्षण बचपन से ही नज़र आ जाते हैं। यदि इन लक्षणों को समय रहते भांप लिया जाए, तो इस पर काबू पाया जा सकता है। एएसडी की व्याख्या बर्ताव के विशेष तरीके के रूप में की गई है। इसे ऐसी स्पेक्ट्रम कंडीशन कहा गया है, जो अलग-अलग लोगों को अलग-अलग मात्रा में प्रभावित करती है।

यहां मूल मुद्दा यह है कि ऑटिज्म एक कंडीशन ही नहीं है, बल्कि अनेक मुद्दों में व्याप्त है। न्यूरो साइकोलॉजिस्ट अकीला सदाशिवन के अनुसार कुछ मामले में ऑटिस्टिक होने का आभास सामाजिक संवाद में कमी, बोलने में हिचकिचाहट व सीमित मात्रा में शौक तथा बर्ताव दिखाई देने पर होता है। ऑटिज्म के विस्तृत संकेत देखकर हम इसे सामाजिक चिंता, सुनने की क्षमता में कमी या इसी तरह की कोई और खामी मान लेते हैं। यह व्यक्ति विशेष में, दिखाई देने वाले लक्षण पर भी निर्भर करता है। हालांकि, अधिकांश ऑटिस्टिक लोगों में अवधारणात्मक समस्या होती है। मसलन, कुछ लोगों में अच्छा बोलने की क्षमता होती है, लेकिन सुनने और स्पर्श करने की क्षमता में कमी होती है। कुछ लोग बेहतर देखने व स्पर्श का अनुभव कर सकते हैं, लेकिन उनके बोलने की क्षमता प्रभावित रहती है।

ऑटिज्म की स्थिति से निपटने में काफी दिक्कतें आती हैं। हर ऑटिस्टिक व्यक्ति अपने डॉक्टर से एक ही सवाल पूछता है, आखिर मैं ही क्यों? जैसे ऑटिज्म के स्पेक्ट्रम (आयाम) होते हैं, वैसे ही शोध व कारणों के भी विभिन्न आयाम होते हैं। जेनेटिसिस्ट वेंडी चुंग ने यह बात अपनी टेड टॉक में कही थी। उन्होंने शोध में पाया कि गर्भधारण के दौरान पिता की आयु अधिक होने पर जन्म लेने वाले बच्चे में ऑटिज्म पाया जाता है। एक अन्य कारण यह पाया गया कि मिर्गी की बीमारी से पीड़ित महिला ने यदि वेलप्रोइक एसिड युक्त दवा का सेवन किया हो, तो बच्चे में ऑटिस्म देखा जाता है। चुंग के शोध से पता चला कि इस दवा के सेवन से दिमाग का विकास (Dimag ka vikas) प्रभावित होता है व बच्चों में ऑटिस्म आने की संभावना बढ़ जाती है।

फिलहाल ऑटिज्म को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं है, लेकिन अब ऑटिस्टिक लोग व उनके अभिभावक इसके साथ जीने की कला सीख रहे हैं। कमोलिका मित्रा एक ऐसी ही अभिभावक हैं। एक ऑटिस्टिक बेटे का पालन करते हुए वे खुद अब ऑटिस्टिक बच्चों को पढ़ाने वाली शिक्षिका बन गई हैं। वे कहती हैं मेरा बेटा अयान ढाई साल का है। उसने कैलेंडर को देखकर अंक ज्ञान हासिल किया। वह लकड़ी के नंबरों व अक्षरों को भी सही क्रम में लगाता है, लेकिन जब मैं उसे उसके नाम से पुकारती हूं, तो वह जवाब नहीं देता। कमोलिका समझ गईं कि अयान ठीक से सुन तो पाता है, लेकिन कोई और समस्या है। फिर उन्होंने पाया कि वह अपने नाम को पहचान सकता है। ऐसे में कमोलिका ने अयान को यह समझाना शुरू किया कि जब कमोलिका उसे पुकारे तो अयान को कमोलिका की तरफ देखना है। इस तरह अयान यह समझने लगा कि कमोलिका उसे आवाज़ दे रही है।

अयान जैसे कुछ ऑटिस्टिक बच्चों को अतिरिक्त इशारों या दृश्य सहयोग की ज़रूरत होती है। कुछ अन्य के लिए स्पर्शनीय सहयोग आवश्यक हो सकता है। इसमें कोई व्यक्ति उनका हाथ पकड़कर उन्हें चीज़ों का ज्ञान दे सके, ताकि वे उन चीज़ों को पहचान सकें। स्पास्टिक सोसाइटी ऑफ कर्नाटक में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर यूनिट की मुखिया (हेड) डॉ नलिनी मेनन (Dr Nalini Menon) समझाती हैं कि हर ऑटिस्टिक बच्चा दूसरे से अलग होता है। हमें यह समझना होगा कि वह अपने आसपास कौन से अहसास के साथ वाकिफ है। अनेक बार हम यह भी नहीं समझ पाते कि आखिर वे किस बात को समझ सकते हैं।

ऑटिज्म, व्यक्ति विशेष की अनुभूति को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है। इसी वजह से हमारे लिए ऑटिस्टिक लोगों को समझना व उनकी सहायता करना और भी मुश्किल हो जाता है। इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि वे हम से किसी भी बात में कमज़ोर होते हैं। यह संवाद करने की कमी है, जिससे अधिकांश लोग अनजान होते हैं।

यह अंधेरे गलियारों में भटकने जैसा है, जहां हम दीवार की खोज करते हुए अपना रास्ता तलाशते हैं। यदि हम ऑटिस्टिक व्यक्ति की सच में सहायता करना चाहते हैं, तो हमें खुद को उनके साथ बातचीत की हमारी कमी को दूर करना होगा।