जब भी मेरे दोस्त को माइग्रेन का अटैक आता है, तो यह उसे असहनीय दर्द और उसके साथ जुड़ी हुई समस्याएं देते हुआ रुला देता। प्रकाश के प्रति अतिसंवेदनशील, मध्यम आवाज़ सुनते ही चीखना और लगातार आती उल्टियां उसे लेटने का मौका भी नहीं देती थी। फिर अस्पताल के चक्कर लगाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। उसे दर्द निवारक औषधि, उल्टियां रोकने की दवा और एंटासिड तथा ग्लूकोज देने के बाद कुछ ऐसी दवाइयां अगले कुछ समय लेने के लिए कहा जाता है, जो डराने वाली होती थी। उसकी परेशानी को देखकर हर कोई असहाय होकर यही सोचता था कि आखिर उसे अच्छा स्वास्थ्य (Good health) देने में सहायता करें भी तो कैसे?

उसे नियमित अंतराल के बाद परेशान होता देख मैंने उसकी कुछ सहायता करने का फैसला लिया। मैं किसी वैकल्पिक उपचार तकनीक की तलाश में थी, जो उसको दर्द से राहत देकर और अच्छा स्वास्थ्य देकर, इस समस्या को हमेशा के लिए जड़ से खत्म कर दे।

संपूर्ण इलाज (Sampurn ilaj)

दुनिया में लाखों लोग माइग्रेन और ऐसी ही दूसरी बीमारियों से परेशान हैं, जिनका इलाज पारंपरिक उपचार पद्धति जिसे एलोपैथी कहते हैं, में संभव नहीं है। हम छोटी बीमारी को देखते ही गोलियां खाकर उससे निजात पाने और अच्छा स्वास्थ्य पाने की कोशिश करते हैं। मगर जब हमें अपनी इस आदत के दुष्परिणाम दिखते हैं, तो हम कुछ समझ ही नहीं पाते। यह एक ऐसा दुष्चक्र है, जिसमें फंसकर आप एक बीमारी को ठीक कर लेते हैं, लेकिन जो दवा आप ले रहे हैं उसके साइड इफेक्ट से दूसरी बीमारी को न्योता देते हैं और अच्छा स्वास्थ्य नहीं पाते। क्या आप जानते हैं कि लंबे समय तक एंटासिड लेने से किडनी स्टोन हो सकता है? ऐसा लगता है कि परम्परागत गोलियों, टॉनिकों और इंजेक्शन के दुष्चक्र से बचने का कोई रास्ता नहीं है।

एक सही और सटीक इलाज की खोज करते हुए मुझे ‘होलिस्टिक हीलिंग’ अर्थात समग्र चिकित्सा का पता चला, जो मुझे काफी पसंद आया। अल्टरनेटिव हीलिंग थेरेपिस्ट (Alternative Healing Therapist) उषा रानी के अनुसार ‘होलिस्टिक हीलिंग में हमारे शरीर के भौतिक, भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक चारों ही पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है।’

कई और विशेषज्ञों से जब मैंने बात की, तो उन्होंने भी उषा जी के विचारों से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि इन पहलुओं का संतुलन ही स्वस्थ जीवन के लिए ज़रूरी है। किसी भी व्यक्ति में यदि इन चारों पहलुओं में से किसी एक का संतुलन बिगड़ा तो उसका नतीजा बीमारी के रूप में सामने आएगा। उषा रानी के अनुसार ‘शरीर 7 चक्र या एनर्जी प्वाइंट से बना होता है। एक भी चक्र के असंतुलित होने पर बीमारी पैदा होती है और इनके संतुलन से अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। एक हीलर का काम यही होता है कि वह इस असंतुलन को साधे और मरीज की सेहत में सुधार सुनिश्चित करे।’

होलिस्टिक हीलिंग की जड़ें (Holistic healing ki jaden)

चीन को होलिस्टिक हीलिंग का जनक कहा जा सकता है, क्योंकि वहां पर ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन से इलाज किया जाता है। भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को भी पुरानी पद्धति के जनक के रूप में स्वीकारा गया है।

ट्रेडिशनल चाइनिज मेडिसिन  

ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन (Traditional Chinese medicine) इस सिद्धांत पर आधारित है कि शरीर का प्राकृतिक परिवेश के साथ नजदीकी रिश्ता होता है। यह रिश्ता बेहद महत्वपूर्ण होता है। इसमें थोड़ा बदलाव भी बीमारी लाता है। यह ‘की’ (जीवन ऊर्जा), यिंग-यैंग एक व्यक्ति के एक-दूसरे के पूरक यानी दो पहलू) थ्योरी और 5 चरण अर्थात पानी, लकड़ी, आग, मिट्टी और धातु पर आधारित है। होलिस्टिक प्रैक्टिस में स्ट्रक्चर (संरचना) यिन है और फंक्शन (कार्य) येंग है, जबकि निचला शरीर यिन और ऊपर का शरीर येंग है। इससे हमें प्रक्रियाओं और कार्यों के बीच का संबंध समझ में आता है। यिन और येंग के बीच का संतुलन अच्छे स्वास्थ्य या संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है। टीसीएम परिवार में इसके अलावा एक्यूप्रेशर, एक्यूपंचर, जड़ी-बूटियां, कप्पिंग और मोक्सीबस्टन शामिल है।

आयुर्वेद

आयुर्वेद भी होलिस्टिक हीलिंग अभ्यास है, जिसमें ‘आयुर’ का अर्थ जीवन और ‘वेद’ का विज्ञान है। इसको मिलाकर देखा जाए, तो हमें ‘जीवन का विज्ञान’ मिलता है। आयुर्वेद इलाज की बहुत ही पूरानी व्यवस्था है।

श्री श्री आयुर्वेद के संस्थापक निदेशक डॉ मणिकांतन मेनन के अनुसार, युगों पुरानी यह परम्परा शरीर, मन और आत्मा के बीच सामंजस्य को बनाए रखने का अभ्यास है। जब भी कोई मरीज आयुर्वेद को चुनता है, तो हम न केवल बीमारी का इलाज करते हैं, बल्कि हम इन 3 कारकों की सेहत अर्थात तीनों फैक्टर्स की वेलनेस को भी देखते हैं। कभी-कभी बीमारी साइकोसोमेटिक (मनोदैहिक psychosomatic) होती है, ऐसे में हमें दिमाग का इलाज करने की भी ज़रूरत पड़ती है।

इस अभ्यास में प्रकृति के पंचतत्वों पर जोर दिया जाता है, जिसमें पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश शामिल है। इन्हें पंचमहाभूत भी कहा जाता है। ये तत्व मिलकर 3 दोषों (ऊर्जाओं) का निर्माण करते हैं- वात, पित्त और कफ। इन दोषों में किसी का भी लम्बे समय तक असंतुलन होने से इंसान बीमार हो जाता है। अच्छा स्वास्थ्य पाने के लिए अपने दोषों को संतुलित रखे।

यहां तक की सेंट्रल अमेरिका के लोग भी मानते थे कि अच्छे स्वास्थ्य का रहस्य संतुलन में ही छुपा है। उनका दावा था कि बीमारियां दरअसल असंतुलन का परिणाम हैं। अत: वे शरीर एवं आत्मा के बीच संतुलन बनाने और अच्छे स्वास्थ्य के लिए जड़ी-बूटियों, पौधों व मालिश का सहारा लेते थे।

हमें परम्परागत औषधियां क्या बताती हैं? (Hamen paramparagat aushadhi kya batata hai?)

होलिस्टिक हीलिंग में जहां बीमारी की जड़ तक जाया जाता है, वहीं परंपरागत पद्धति में केवल बीमारी के लक्षणों का उपचार कर सतही राहत दी जाती है। उषा रानी ने इसे और रोचक तरीके से बताते हुए कहा कि, ‘होलिस्टिक हीलिंग’ में एलोपैथिक तरीके के ‘फिक्स-इट-सोल्युशन’ से आगे जाकर वे उपचार करती हैं। इसके बदले बीमारी की जड़ में जाकर जो इलाज किया जाता है, वह मन और शरीर का उपचार होता है। यह एक बार का समाधान नहीं है, बल्कि इसे निरंतर करना होगा ताकि आप एक सेहतमंद जीवन व संपूर्ण स्वास्थ्य पा सकें। उदाहरणार्थ यदि आप किसी होलिस्टिक हीलर के पास बदहजमी का उपचार करवाने जाते हैं, तो पहले वह बीमारी जहां से शुरू हुई अर्थात पेट का उपचार करेंगे। यदि फिर भी रोग बना रहेगा, तो वह आपके पेट के आसपास नाड़ियों के नेटवर्क का उपचार करेंगे। यदि इसमें भी सुधार नहीं हुआ. तो फिर वह दूसरी होलिस्टिक तकनीक की तरफ जाएंगे।

होलिस्टिक हीलिंग ही क्यों?

हम उस दौर में रह रहे हैं, जिसमें बदलते मौसम, कीटनाशकों, प्रोसेस्ड फूड, एलर्जी, जेनेटिक म्युटेशन्स और ग्लोबल वार्मिंग की बीमारियों की चपेट में लगातार आते रहते हैं।

हमारा बेढंगा काम करने का तरीका और एक जगह बैठे रहने की जीवनशैली भी बीमारियों को बढ़ावा दे रही है। हेल्थ केयर खर्च में लगातार वृद्धि, अस्पताल के बढ़ते जा रहे बिल, सर्जरी का डर और उसके बाद होने वाली परेशानी के साथ हम जिस भावनात्मक दौर से गुजरते हैं, उसे देखकर ही लोग अब वैकल्पिक हीलिंग प्रैक्टिस का रुख कर रहे हैं।

एक मरीज का उद्देश्य अब ‘उपचार करवाया जाए कि सेहतमंद हुआ जाए’ होता जा रहा है। उषा कहती हैं कि ‘होलिस्टिक हीलिंग में एलोपैथी जैसा इलाज तो संभव नहीं है, लेकिन यह आपके जीवन पर सकारात्मक बदलाव ज़रूर लाती है।’ वह चेताती हैं, ‘मरीज़ों को यह ध्यान रखना चाहिए कि हीलिंग रातों-रात नहीं होती। कुछ मरीज़ों को केवल एक सीटिंग में ही आराम हो जाता है, तो कईयों के लिए 10 सिटिंग भी लग सकती है।’

होलिस्टिक हीलर मानते हैं कि जब हर किसी के शरीर की संरचना एकदम अलग होती है तो स्वास्थ्य की समस्याएं भी अलग होंगी। अत: अलग-अलग लोगों का इलाज अलग-अलग तरीके से ही करना होता है। अगर आप परेशान हैं और आप विशेषज्ञों से इलाज करवाकर थक गए हैं, तो होलिस्टिक हीलिंग आपके लिए वरदान साबित हो सकती है।