समझें ऑटिज्म को: कैसे यह एक बीमारी नहीं बल्कि विकार है?

हमारे समाज में अक्सर लोग ऑटिज्म को एक बीमारी समझ लेते हैं, लेकिन सच तो यह है कि यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, न कि कोई संक्रमण या मानसिक बीमारी।

क्या अपने कभी किसी बच्चे को देखा है, जो अपनी ही दुनिया में मग्न रहता है? जो तेज़ आवाज़ से परेशान हो जाता है, अचानक से छूने पर असहज हो जाता है या किसी खास चीज़ में इतना डूब जाता है कि उसे बाकी दुनिया की खबर ही नहीं रहती? हो सकता है, वह बच्चा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम पर हो। हमारे समाज में अक्सर लोग ऑटिज्म को एक बीमारी समझ लेते हैं, लेकिन सच तो यह है कि यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, न कि कोई संक्रमण या मानसिक बीमारी।

ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति दुनिया को आम लोगों से थोड़ा अलग नज़रिए से देखते हैं। कुछ को सामाजिक बातचीत में कठिनाई होती है, तो कुछ को शोर या ज़्यादा रोशनी से परेशानी होती है। लेकिन कई बार, इन्हीं लोगों में असाधारण प्रतिभाएं भी होती हैं, कोई गणित में गज़ब का हुनर दिखाता है, तो कोई संगीत या चित्रकला में निपुण होता है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि हम ऑटिज्म को लेकर गलतफहमियां दूर करें। यह कोई समस्या नहीं है, जिसे खत्म करना है, बल्कि इसे समझने और अपनाने की ज़रूरत है। हर इंसान अलग होता है, और ऑटिज्म से ग्रसित लोग भी बस अपनी अनोखी शैली में इस दुनिया को देख रहे होते हैं।

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको विश्व आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) के मौके पर ऑटिज्म के बारे में बताएंगे और जानेंगे कि कैसे इसे हम बेहतर समझ सकते हैं।

विश्व आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? (Vishva Atamkendrit Jagrukta Divas kab aur kyun manaya jata hai?)

हर साल 2 अप्रैल को पूरी दुनिया में विश्व आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद लोगों को ऑटिज्म के बारे में जागरूक करना और आत्मकेंद्रित लोगों को समझने, अपनाने और उनके प्रति भावनात्मक संवेदनशीलता बढ़ाने का है। यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है, जिससे प्रभावित लोगों के सोचने, समझने और संवाद करने के तरीके अलग होते हैं। कुछ लोग अधिक संवेदनशील होते हैं, कुछ को बोलने में दिक्कत होती है, तो कुछ को सामाजिक व्यवहार समझने में मुश्किल आती है। लेकिन उनकी अपनी अनोखी दुनिया होती है, जहां रचनात्मकता, अद्भुत प्रतिभाएं और मासूमियत होती है। इस दिन का असली मकसद यही है कि आत्मकेंद्रित लोगों की समझ बढ़े, स्वीकृति बढ़े और उन्हें भी बराबरी का हक मिले। स्कूलों, कार्यस्थलों और समाज में उन्हें अपनाया जाए, ताकि वे भी अपनी क्षमता के अनुसार अपनी ज़िंदगी को खुलकर जी सकें।

ऑटिज्म क्या है? (Autism kya hai?)

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक ऐसा न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन है, जिसका असर व्यक्ति के व्यवहार, संवाद, और सामाजिक कौशल पर पड़ता है। यह हर व्यक्ति में अलग-अलग रूप में दिख सकता है, कोई कम बोलता है, कोई एक ही विषय पर ज़्यादा ध्यान देता है, तो कोई शोरगुल से परेशान हो जाता है। यह कोई कमी नहीं, बल्कि एक अनोखी विशेषता है।

बीमारी और विकार में क्या फर्क है? (Bimari aur vikar mein kya fark hai?)

बीमारी वह होती है जिसे दवा या इलाज से पूरी तरह ठीक किया जा सकता है, जबकि विकार ऐसा होता है, जिससे व्यक्ति अलग तरह से काम करता है, लेकिन यह कोई नुकसानदेह चीज़ नहीं होती। ऑटिज्म को ठीक करने की ज़रूरत नहीं, बल्कि इसे समझने और अपनाने की ज़रूरत है।

क्यों खास होते हैं ऑटिज्म से जुड़े लोग? (Kyun khas hote hain Autism se jude log)

ऑटिज्म से जुड़े लोग अपनी दुनिया में गहरे उतर जाते हैं। कई मामलों में वे किसी खास विषय में गजब की महारत हासिल कर लेते हैं, मैथ, साइंस, संगीत, कला या टेक्नोलॉजी में उनका योगदान सराहनीय होता है। अल्बर्ट आइंस्टीन, आइजैक न्यूटन, निकोला टेस्ला और एलोन मस्क जैसे महान व्यक्तियों के बारे में भी कहा जाता है कि वे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम पर थे।

समाज को नज़रिया बदलने की है ज़रूरत (Samaj ko nazariya badlane ki hai zaroorat)

समस्या ऑटिज्म में नहीं, बल्कि समाज की सोच में है। अक्सर लोग उन्हें अलग मानकर दूरी बना लेते हैं, लेकिन उन्हें प्यार, समझ और सही माहौल दिया जाए, तो वे भी अपनी पूरी क्षमता से निखर सकते हैं। उनके साथ धैर्य और करुणा से पेश आना बेहद ज़रूरी है।

इस आर्टिकल में हमने ऑटिज्म के बारे में बताया। साथ ही इससे जुड़ी जानकारी दी। यह जानकारी आपको कैसी लगी, हमें कमेंट करके बताएं। साथ ही इसी तरह की जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

टिप्पणी

टिप्पणी

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।