प्रकृति में है उपचार की असीम शक्तियां

जब मनुष्य ने दवाओं का अविष्कार नहीं किया था, तब उस वक्त प्रकृति को भली-भांति मालूम था कि हमें किसी रोग का कैसे उपचार करना है। मानव शरीर अपनी सेल्फ हीलिंग व और उपचार की व्यवस्था खुद करता है और प्राकृतिक तत्व इन तंत्रों को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं।

अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजम्

अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा

आपः पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे मम

हिंदू धर्म के प्राचीनतम और पवित्र ग्रंथ हैं वेद। हमारे चार वेदों में से एक अथर्ववेद में इस श्लोक का बखूबी जिक्र है, जिसका मतलब है, “जल में अमृत है, जल में औषधि है। भगवान सोम ने मुझे बताया कि सभी प्रकार की औषधियां जल में ही निहित हैं। हे! जल मुझे उन औषधियों से भर दे, जो रोगों को दूर करती हैं। ”प्रकृति की जीवनदायिनी शक्तियों के बारे में सोलवेदा के साथ बातचीत के क्रम में वेदों के जानकार डॉ गिरिधर शास्त्री ने इस श्लोक का जिक्र किया है।” हमारे वेदों की कई स्तुतियां भी प्रकृति (Nature) के औषधीय मूल्यों का संवर्द्धन करती हैं। ठीक वैसे ही जैसे देवी-देवताओं की उपासना के बारे में बताती हैं। वे कहते हैं कि वेदों के अनुसार, हमारा शरीर पंचतत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है। इन पंचतत्वों में उपचार (Prakriti mein Upchar) की असीम शक्तियां हैं।

लगभग 400 ईसा पूर्व यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स ने प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति (Prakritik chikitsa paddhati) और उसके निदान की शक्तियों के बारे में खूब प्रचार-प्रसार किया। ऐसा माना जाता है कि उपचार करने की उनकी शैली सिर्फ औषधि और बिना चीरफाड़ वाले उपचार तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि वे रोगों को ठीक करने के लिए जीवनशैली में बदलाव और हर्बल उपचार में भी विश्वास करते थे।

इससे स्पष्ट हो गया है कि प्राकृतिक चिकित्सा का सिद्धांत कोई नया नहीं है, बल्कि यह पहले से ही मौजूद है। इससे पहले कि मनुष्य रोगों के उपचार के लिए किसी मेडिसिन की खोज करते, उससे पहले से ही हमारी प्रकृति (Hamari Prakriti) बखूबी जानती थी कि बीमारियों का इलाज कैसे करना है। आज आधुनिक दौर में भी यह उपचार पद्धति जारी है। आमतौर पर पार्क में टहलने या समुद्र तट पर खेलने के बाद हमारा मन काफी बेहतर महसूस करता है। हम इस फील-गुड फैक्टर का श्रेय नेचर को देते हैं और यह बात जायज भी है। वायु के अणुओं और मनोदशा के नतीजों के बीच संबंधों पर हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि प्राकृतिक वातावरण नेगेटिव आयनों-ऑक्सीजन मोलेक्यूल के साथ जुड़ा हुआ है, जो तनाव को कम करने में सहायक होते हैं। इस प्रकार अब हम लोगों ने विज्ञान को समझना शुरू कर दिया है कि प्रकृति में लुत्फ उठाने के बाद आखिरकार हम लोग इतना तरोताजा महसूस क्यों करते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जानें प्रकृति के उन तत्वों के बार में, जिनमें उपचार के गुण मौजूद हैं।

जल

जब कभी हम समुद्र तट के किनारे टहलते या घूमते हैं, तो उस वक्त हम समुद्र के जल की अहमियत के बारे में ज्यादा सोचते-विचारते नहीं हैं। मगर आपको मालूम होना चाहिए कि जल के विभिन्न स्त्रोत हाइड्रोथेरेपी के नेचुरल एजेंट के रूप में काम करते हैं। इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि जॉर्डन और इज़राइल के बीच स्थित डेड सी (मृत सागर) इन दिनों नेचुरल स्पॉ के रूप में तब्दील हो चुका है। यह दूसरे समुद्रों की तुलना में 33 प्रतिशत अधिक खारा है। यह दुनिया की सबसे खारा झील के रूप में जाना जाता है। शरीर की खुजली से निजात पाने के लिए दुनिया भर से लोग यहां आते हैं।

इज़राइल स्थित सोरोका मेडिकल सेंटर की रुमेटोलॉजी डिपार्टमेंट की तरफ से किए गए एक शोध से पता चला है कि डेड सी का खारापन पुरानी बीमारियों विशेष रूप से ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित लोगों को दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है। एक दूसरे अध्ययन के मुताबिक, इस खारी झील में कई ऐसे गुण हैं, जो सोरायसिस के निदान में मददगार हैं।

जोंक

हममें से कई ऐसे लोग हैं, जो स्वभाव से अतिसंवेदनशील होते हैं। उनके शरीर पर अगर किसी तरह का कीड़ा-मकोड़ा चढ़ जाता है, तो उनका जी मिचलाने लगता है। शरीर पर कीड़े-मकोड़े रखने की बात सोचकर ऐसे लोगों की रूह कांप जाती है। अगर आपके शरीर पर कीड़े-मकोड़े रखने के बाद भी कोई फर्क महसूस नहीं होता है, तो प्रकृति ने हमें ऐसे कई लाइव बॉयोटिक एजेंट मुहैया करा रखी है, जो हमारी बीमारियों को दूर करने में मददगार हो सकते हैं।

शुगर से पीड़ित लोगों के जख्म को ठीक करने में जोंक थेरेपी काफी उपयोगी साबित हुई है। दरअसल, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट से पता चला है कि मरीजों के शरीर से खून निकालने के लिए डॉक्टर आजकल के आधुनिक तकनीकों जैसे सीरींज व अन्य उपकरण का इस्तेमाल करने की बजाय जोंक को अधिक तव्वजों देते हैं। ऐसा माना जाता है कि जोंक के स्लाइवा यानी लार में कई फायदेमंद कंपाउंड्स पाए जाते हैं।

भले ही आप यकीन करें या न करें, लेकिन मधुमक्खियों में भी उपचार करने के असीम गुण मौजूद हैं। बी वेनम थेरेपी के ज़रिए मरीज के शरीर के उस हिस्से पर शहद लगाया जाता है, जहां दर्द या अन्य कोई परेशानी है। मरीज के शरीर पर शहद लगाकर मधुमक्खियों को डंक मारने के लिए आकर्षित किया जाता है। किसी प्रकार के दर्द से निजात पाने, सूजन, अर्थराइटिस, हाइ ब्लड प्रेशर और अस्थमा जैसी समस्याओं से निजात पाने में यह थेरेपी काफी कारगर है।

रेत

समुद्र तट पर टहलने के दौरान अगर कभी हमारे शरीर पर रेत के कण पड़ जाते हैं, तो इससे काफी चिड़चिड़ापन महसूस होता है और चुनचुनाहट होने लगती है। मगर आजकल सैंड बाथ उपचार से लोगों का इलाज किया जा रहा है। किसी समस्या से निजात दिलाने में यह थेरेपी काफी उपयोगी साबित हुई है। मनुष्य ही नहीं जानवर भी अपने शरीर पर मौजूद विषैले तत्वों को साफ करने के लिए रेत या कीचड़ में लोटते हैं।

सैंड बाथ की जो प्रक्रिया है, वह कुछ लोगों के लिए काफी कष्टदायक लग सकती है। लेकिन, जिन लोगों ने अपनी परेशानियों से राहत पाने के लिए सैंड बाथ के अनुभव को महसूस किया है, उनके लिए यह कष्ट उतना मायने नहीं रखता है। जापानी द्वीप क्यूशू पर लोग सैंड बाथ के दौरान समुद्र तट पर अपनी गर्दन को गहराई तक गाड़ने की बजाय ज्वालामुखीय रेत से अपने शरीर को ढंकते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह नपुंसकता या बांझपन, शुगर, एनीमिया और अस्थमा के इलाज में सहायता करता है।

आग

ऐसा माना जाना है कि मध्यकाल में आग का इस्तेमाल उपचारों के लिए भी किया जाता था। उस समय लोग घावों को ठीक करने के लिए आग का इस्तेमाल करते थे। हालांकि, आज के समय में घावों के उपचार के लिए कई आधुनिक तरीके इजाद हो चुके हैं, जो काफी अच्छे हैं। बावजूद इसके आज के समय भी प्राकृतिक उपचार में आग का खास महत्व है। इससे पहले ही आग का नाम सुनकर आप डर जाएं कि भला यह इलाज में कैसे काम करता है। आपको हम बात दें कि सूर्य भी आग का भी एक रूप है।

मुहांसे से लेकर सोरायसिस और डिप्रेशन से लेकर पीलिया तक, शायद ही ऐसी कोई बीमारी है, जिसे सूर्य का प्रकाश ठीक नहीं कर सकता। इसके लिए कुछ ज्यादा नहीं करना है, बस सुबह में आधा-एक घंटा आपको धूप में बैठना है। इसके अलावा विटामिन डी का सबसे प्रमुख स्त्रोत है सूर्य का प्रकाश। हमारे पूर्वजों को सूर्य की शक्तियों के बारे में अच्छी तरह पता था। शायद इसीलिए ऋषि-मुनियों ने हड्डियों को मज़बूत बनाने के लिए सूर्य नमस्कार पर बल दिया।

पौधे

हम सभी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि आयुर्वेद पद्धति में इलाज के लिए सबसे अधिक पेड़-पौधों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। हममें से कई लोग खुद को सुंदर दिखने के लिए हर्बल रेमेडी का इस्तेमाल करते हैं। सौंदर्यता के लिए नीम का पौधा सबसे उपयोगी है। नीम के पौधे में काफी औषधीय गुण होते हैं। नीम का कील-मुहांसों और एलर्जी के इलाज में काफी लाभकारी है।

नीम सिर्फ खूबसूरती के लिए ही उपयोगी नहीं है, बल्कि इसके कई फायदे हैं। कई रिसर्चर ने बात को प्रमाणित कर दिया है कि हमारे आसपास के वायुमंडल को शुद्ध करने में नीम का पेड़ का काम करता है। साथ ही यह भी साबित हो गया है कि दूसरे पेड़ों की अपेक्षा नीम के पौधे अधिक ऑक्सीजन पैदा करते हैं। इससे हमारा पर्यावरण हमेशा प्रदूषणमुक्त और शुद्ध रहता है। इसीलिए नीम को सबसे जीवनदायी पौधे के रूप में जाना जाता है।

इन तमाम बातों यह स्पष्ट है कि प्रकृति के पास प्रचुर मात्रा में ऐसे तत्व मौजूद हैं, जो बीमारियों को दूर करने में हमारी मदद कर सकते हैं। अगर हम प्राकृतिक उपचार पद्धति को तरजीह देते हैं, तो ऐसा करके हम शायद प्रकृति के प्रति अधिक सजग होंगे। अगर, हम एलोपैथिक में मौजूद गोलियों का सेवन कम कर सभी प्राकृतिक चीजों से इलाज के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी हासिल कर लें, तो हमेशा निरोग और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।