बचपन में जो हमारी सबसे फेवरेट थी, जैसे कहानियों की किताबें, कॉलेज के दिनों की हमारी फेवरेट जींस और प्रियजनों से मिले उपहार इन सभी सामान को घर की अलमारी में रखना ही चाहिए। जैसे-जैसे समय गुज़रता है इन तमाम सामान का इस्तेमाल कम ना के बराबर करते हैं, लेकिन ये वस्तुएं हमारे जीवन में बहुत खास हैं। यही वजह भी है कि इन्हें हम समय के गुज़रने के साथ भूल जाते हैं।
ज़रा आप ही सोचिए… सामान को जमा करने की लोगों की आदत के कारण घर में काफी सामान जमा हो जाता है, जिनका शायद ही हम कभी उपयोग कर पाएं। सामान की जमाखोरी (Hoarding) के कारण घर में काफी सामान जमा हो जाता है। ऐसे में इसे मैनेज करने में काफी दिक्कत होती है। अमरीका के मानसिक रोग विज्ञान संघ ने इस प्रवृत्ति को अनावश्यक ‘जमा’ करने की प्रवृत्ति के रूप में परिभाषित किया है। इसके अनुसार वैसे लोग जिन्हें गैरज़रूरी चीज़ें जमा करने की आदत होती, जिसकी वजह से उन्हें व उनके परिवारवालों को दिक्कत हो वैसे लोगों को जमाखोरी कहते हैं।
जमाखोरी को सरल शब्दों में बता पाना इतना भी आसान नहीं है। खासकर जब इसे संग्रह करने की प्रवृत्ति के साथ जोड़कर देखा जाने लगता है। संग्रह करने वालों के पास एक उद्देश्य होता है और वह ऐसा व्यवस्थित तरीके से करते हैं। ऐसे लोग एक-एक कर इकट्ठा किए गए चीज़ों को गर्व के साथ दूसरे लोगों को दिखाते हैं, जबकि दूसरी ओर जमाखोर लोगों के साथ ऐसा नहीं होता। उनकी चीज़ें जमा करके रखने की प्रवृत्ति बिना किसी मकसद के होती है और वे वस्तुऍं अव्यवस्थित तरीके से रखते हैं।
मैंने एक बार अपने एक मित्र से पूछा कि वह पुराने कपड़े क्यों इकठ्ठा करती है, तो उसने मुझे बताया कि वह इनका इस्तेमाल झाड़-पोंझ के लिए करती है। निश्चित रूप से मेरी मित्र को अपनी इस आदत के बारे में पता था और इसके लिए उसके पास एक व्यवहारिक तर्क भी था। हालांकि ऐसे हीं चीज़ें जमा करने की आदत रखने वाले लोगों के पास ऐसी वस्तुओं का कोई विशेष उपयोग नहीं होता। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे लोग जो एक या किसी अन्य कारण से वस्तुऍं इकठ्ठा नहीं कर पाते हैं वे आक्रामकता, बेचैनी और चिंता जैसी मानसिक स्थिति से जूझते हैं।
इंटरनेशनल ओसीडी फाउंडेशन के अध्यन की मानें, तो हर 50 में से एक व्यक्ति बेवजह चीज़ें जमा करने (जमाखोरी) के गंभीर मानसिक विकार से जूझता है। अध्ययनों से पता चलता है कि भौतिक अव्यवस्था ऐसे लोगों की अराजक मानसिक स्थिति का संकेत हो सकती है। वास्तव में कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बेवजह जमा करने की यह आदत मनोग्रसित बाध्यता विकार (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर) का ही एक लक्षण है, हालांकि यह चिकित्सा जांच का विषय है।
इसमें किसी प्रकार का कोई आश्चर्य नहीं होगा कि जमाखोरी यानी बेवजह चीज़ें जमा करने की यह प्रवृत्ति टेलीवीजन कार्यक्रमों के लिए रूचिकर विषय बन चुकी है। ऐसे ही एक कार्यक्रम ओपरा विनफ्रे शो के एक एपिसोड में एक ऐसी मां की कहानी दिखाई गई जो 10 साल से इस प्रवृति से जूझ रही थी। चौंकाने वाली बात ये है कि वो महिला इस बात से अनजान थी कि उसे यह आदत कब और कैसे लगी। जब उससे इस बारे में सवाल किया गया, तो वह अपना बचाव करने लगी। यह बेवजह चीज़ें जमा करने की आदत का एक नायाब उदाहरण था, जिसमें जुनूनी आदत और इसके बचाव में तर्क देने जैसे कुछ विशिष्ट लक्षण थे।
वर्ष 2016 में हफिंग्टन पोस्ट ने 14 साल के लड़के जोश की कहानी को छापा था, जो घर के कोने में सोता था क्योंकि उसकी मां ने जमाखोरी के ही कारण उसके बेडरूम को बेवजह जमा की गई चीज़ों से भर दिया था। यहां यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि इस तरह चीज़ें जोड़कर रखने की आदतें किसी व्यक्ति के खुद के रहने के स्थान पर ही नहीं बल्कि उसके साथ रहने वाले व्यक्ति पर भी विपरीत असर डालती हैं।
मौजूदा समय में जमाखोरी के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन और नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ द्वारा किए गए अध्ययन में यह पता चला कि जमा करके रखने की प्रवृत्ति स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती है। रिपोर्ट किए गए ऐसे 6 प्रतिशत मामले सामने आए हैं, जिनमें घर में आग लगने से मौत की घटनाएं हुईं।
यह प्रवृत्ति ज़्यादा गंभीर नहीं होगी यदि जमाखोरी की पुरानी आदत छोड़ने के लिए लोग खुद से प्रयास करें। जमाखोरी की आदत को छुड़ाने के लिए लोग चाहें तो डॉक्टरी सलाह ले सकते हैं। एक्सपर्ट की मानें तो जमाखोरी का तब तक इलाज नहीं हो पाएगा जब तक वो खुद ये ना मान लें कि वो इस प्रकार की समस्या से जूझ रहे हैं।
वैसे लोग जो ये जानते हैं कि वो जमाखोरी की आदत से जूझ रहे हैं या ऐसे लोगों को जानते हैं जो ऐसा करते हैं उनके लिए यहां कुछ ऐसे सुझाव हैं, जो इस आदत पर अंकुश लगाने में मदद कर सकते हैं:
तय करें कि आपकी आवश्यकता क्या है? (Tay kare ki aapki avashyakta kya hai?)
रिसर्च से इस बात का पता चलता है कि इस प्रवृत्ति वाले ज्यादातर लोग ऐसी चीज़ें खरीदते हैं, जिनका उपयोग वे कभी नहीं करते। ऐसी वस्तुओं को हटाने का उनका मन नहीं होता इसलिए। वे इसे ‘बाद में इस्तेमाल’ करने के इरादे से जमा करके रख लेते हैं। इससे वो जिस घर में रह रहे होते हैं वही घर उनके लिए छोटा पड़ने लगता है। ऐसे में ये ज़रूरी है कि कोई भी सामान खरीदने के पहले खुद से ये सवाल करें कि क्या उस सामान की मुझे सही में ज़रूरत है? मैं इसे कहां रखूंगा? मैं इसका उपयोग कब करूंगा? यदि हां… तभी आप उस सामान को खरीदें। जमाखोरी की आदत से बचने के लिए यदि आप ये तमाम सवाल खुद से नहीं पूछेंगे तो दिक्कत आपको ही होगी।
सीमित स्थान का ध्यान रखें (Simit sthan ka dhyan rakhen)
दिनभर लंबे समय तक काम करने के बाद एक गंदे और कम जगह वाले घर में लौटकर आने की सोचें। ऐसे में आपको यहां-वहां किसी तरह कुछ करके अपने लिए जगह बनानी पड़ती है। एक ऐसी अलमारी के बारे में सोचें, जो आपके बिना ज़रूरत वाले कपड़ों से पूरी तरह भरी है और उसमें से आपको अपनी कोई चीज़ ढूंढनी है। यह भूसे के ढेर में से सूई ढूंढने के समान है। ऐसे में यदि आप अपनी सीमित जगह के प्रति अलर्ट रहेंगे, तो आप उन चीज़ों की संख्या कम कर सकते हैं, जिन्हें आपने पहले से बेवजह जमा करके रखा हुआ है।
हादसों से बचने के लिए अव्यवस्था को खत्म करें (Hadson se bachne ke liye vyavastha ko khatm karen)
दुनियाभर के अग्निशमन विभाग अपने आसपास अव्यवस्था मुक्त माहौल बनाए रखने की सलाह देते हैं। इससे दो उद्देश्यों की पूर्ति होती है। पहला आप बिना अपना कीमती वक्त गवाएं सुरक्षित निकल सकते हैं और दूसरा इससे आग के तेज़ी से फैलने की संभावना भी कम हो जाती है। ऐसा करने से आप अपनी और अपने प्रियजनों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे पाते हैं। अपनी और अपने प्रियजनों की सुरक्षा को सबसे पहले स्थान पर रखते हुए आप अपने दिमाग और अपने घर को और अधिक व्यवस्थित रख सकते हैं।
दूसरों के लिए भी जगह बनाएं (Dusron ke liye jagah banaye)
हर कोई एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण का हकदार है। सोचें कि आप अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को खाने पर आमंत्रित कर रहे हों, पर उनके लिए घर में पर्याप्त जगह की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। वह निसंदेह ऐसे में कुछ नहीं कहेंगे लेकिन अस्त-व्यस्त घर को देखकर उन्हें खराब ज़रूर लगेगा। वे अगली बार शायद आपके यहां आने से भी हिचकें। तो ऐसे में आप किसे अपने आसपास रखना चाहेंगे, यह एक बड़ा सवाल है? अपने प्रियजनों को या बेकार की चीज़ों के ढेर को? जब आप दूसरों की सुविधा को प्राथमिकता देने लगेंगे, तो अपने आप ही बेकार की चीज़ों का ढेर लगाना बंद कर देंगे।
अपनी खरीदारी की आदतों, रहने की सीमित जगह व अपने प्रियजनों की सुविधा को जब आप महत्व देने लगेंगे, तो यह आगे चलकर आपकी बेवजह चीज़ें जमा करने की आदत (जमाखोरी) पर अंकुश लगाने में मददगार होगी। यह समस्या का इलाज तो नहीं है लेकिन एक अच्छी शुरुआत ज़रूर हो सकती है।