भावनात्मक डंपिंग, इमोशनल डंपिंग

क्या है इमोशनल डंपिंग? इसे कंट्रोल करने के 5 तरीके जानें

अपनी भावनाएं दूसरों के साथ शेयर करना अच्छा है, लेकिन तभी तक जब तक कि उससे सामने वाले को कोई परेशानी न हो। बस आप अपनी बात दूसरों तक हेल्दी तरीके से पहुंचाएं।

जब हमारी ज़िंदगी में समस्या आती है तो हम परेशान हो जाते हैं। हम पर गुस्सा, निराशा जैसे कई इमोशन हावी हो जाते हैं। जाहिर है ये हमें और दुखी कर सकते हैं। हम सोचते हैं कि इसे कैसे कम किया जाए। ऐसी हालात में हम अपने करीबी लोगों की हेल्प लेते हैं। हालांकि अपना दुख और परेशानी शेयर करते वक्त कई बार अपने आसपास बैठे शख्स को भूल जाते हैं। हम भूल जाते हैं कि वो भी किसी बात से परेशान हो सकते हैं। बिना सोचे समझे हम अपनी सारी बात और नाराज़गी उसके सामने बयां कर देते हैं। कई बार तो उसे भी इसके लिए जिम्मेवार ठहराते हैं। इससे मदद करने के बदले वो व्यक्ति ही परेशान हो जाता है। इस प्रोसेस को भावनात्मक दोषारोपण (Emotional Blame) या इमोशनल डंपिंग कहते हैं।

यह अपनी बात रखने या शेयर करने के ठीक उलट है। इमोशनल डंपिंग दूसरे व्यक्ति के मेंटल कंडीशन पर ध्यान दिए बिना किया जाता है। चूंकि वे इमोशनल, पॉजिटिव बातचीत के लिए तैयार नहीं हो सकते। ऐसे में उनके लिए विचारों, भावनाओं और पॉजिटिव एनर्जी को संभालना मुश्किल हो जाता है। अपनी भड़ास निकालकर आप बेहतर महसूस कर सकते हैं, लेकिन सामने वाले को लग सकता है कि एक बोझ उसपर डाल दिया गया। साइकेट्रिस्ट और द एम्पाथ सर्वाइवल गाइड के लेखक जूडिथ ऑरलॉफ ने यूएसए टुडे को बताया, “लोग ट्रॉमा डंपिंग के बाद बेहतर महसूस कर सकते हैं, लेकिन जिस व्यक्ति के साथ वो इसे बांटते हैं वह भयानक होता है।”

इमोशनल डंपिंग एक पीड़ित मानसिकता से निकलती है। इसमें आप अपने किसी भी काम या मेंटल कंडीशन के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। कई चीज़ों के लिए दूसरों को ज़िम्मेवार ठहराते हैं। जैसे आपकी इस हालत के लिए वही दोषी हैं। यदि आप बार-बार ऐसा करेंगे तो यह आपके रिश्तों को खत्म कर सकता है। हम यह नहीं कह सकते कि अपनी भावनाओं को न रखें। अपनी भड़ास निकालना या बांटना तब तक ठीक है जब तक कि सामने वाले को इससे दिकक्त न हो। बात सिर्फ इतनी है कि आप यह काम कितने बेहतर तरीके से कर सकते हैं। चीज़ों को आसान बनाने के लिए यहां कुछ रणनीति है, जो इमोशनल डंपिंग छोड़ने में आपकी मदद कर सकती है।

आपको क्या परेशान कर रहा है? (Aapko kya pareshan kar raha hai?)

जो आपको परेशान कर रहा है, सबसे पहले उसकी वजह तक जाएं। लेकिन सबसे पहले आपको गुस्से पर कंट्रोल करना होगा। जब आप ऐसा करते हैं तो आसानी से समस्या की पहचान हो जाती है। ऐसा करने के बाद आपको दूसरों पर दोषारोपण या इमोशनल डंपिंग नहीं कर सकेंगे। आप अपने दोस्तों से कॉन्टैक्ट और इस बारे में चर्चा कर सकते हैं। इससे आपको परेशान करने वाले विचारों से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी। वहीं उनके साथ आपके संबंध भी पहले की तरह ही रहेंगे।

अपने पास हमेशा एक मैगजीन रखें (Apne paas hamesha ek magazine rakhe) 

यह जरूरी नहीं कि हमेशा आपको किसी व्यक्ति के साथ अपने विचारों, भावनाओं को शेयर करने की ज़रुरत हो। इमोशनल डंपिंग को रोकने के लिए कुछ पढ़ते-लिखते रहना बहुत जरूरी है। आप सभी परेशान करने वाली बातों लिख सकते हैं। इससे पता चलेगा कि आखिरकार किन चीज़ों से आपको दिक्कत है। अब आप इससे निपटने के लिए सही स्टेप ले सकते हैं। इसके अलावा किताबें पढ़ने से आपकी समस्याएं कम हो सकती हैं। बेकार की चिंता खत्म होने से आपका मूड बेहतर होगा|

खुश रहने की कोशिश करें (Khush rahne ki koshish kare)

गुस्सा अपनी भावनाओं को दिखाने का एक असरदार तरीका है। लेकिन आप हमेशा खुश रहने की कोशिश करें यही सबसे बेहतर है। जब आप ऐसी कोशिश करते हैं तब आपका मन बिलकुल शांत रहता है। आप निगेटिव चीज़ों से दूर रहते हैं। ऐसे में आप आने वाले कल की चिंता छोड़ पूरे मन से ज़िंदगी जीते हैं। एक शांत और खुश मन आपको इमोशनल डंपिंग सहित कई समस्याओं को पहचानने में मदद कर सकता है, जिससे आप हेल्दी तरीके से इन समस्याओं को दूर कर सकते हैं।

सामने वाले से इसकी परमिशन लें (Samne wale se iski permission le)

अपनी भावनाओं को शेयर करना अच्छी आदत है, क्योंकि इससे आपको समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है। यह आपके बोझ को कम कर सकता है और आपको बेहतर महसूस करा सकता है। लेकिन, किसी से इस बारे में बात करने से पहले उसकी परमिशन लें। यदि वे आपके मित्र या आपके पार्टनर हैं, तो आप बस इतना कह सकते हैं कि “क्या मैं आपसे दो मिनट के लिए वो बात शेयर करूं, जो मुझे तंग कर रही है?” अगर वे इसकी परमिशन देते हैं तो खुले दिल से बात करें। यदि वे इसकी परमिशन नहीं देते हैं तो आप दूसरे तरीके से अपनी बात रख सकते हैं।

किसी प्रोफेशनल की हेल्प लें (Kisi Professional ki help le)

कई बार समस्याओं को सुलझाने का अच्छा तरीका होता है एक्सपर्ट डॉक्टर की सलाह लेना। कई समस्याएं ऐसी होती हैं जिसका सॉल्यूशन दोस्तों, परिवार के सदस्यों के पास नहीं होता। आखिरकार वे इसके एक्सपर्ट नहीं हैं। एक साइकेट्रिस्ट के साथ एक-दो सेशन में आप बड़ी से बड़ी परेशानी से निकल सकते हैं।

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