फ्रेडरिक विल्हेम नीत्शे जिनके काम ने पश्चिमी दर्शनशास्र को बहुत प्रभावित किया था। उन्होंने कहा था कि “महान बुद्धिजीव हमेशा संदेहवादी होते हैं।” हालांकि इस विचार को जर्मन दर्शनशास्त्री ने 19वीं शताब्दी में प्रस्तुत किया था लेकिन यह आज भी प्रभावशाली है। हम अपने मन को हमेशा तार्किक और विश्लेषणात्मक होने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हम कुछ ऐसा मानने को तैयार ही नहीं होते हैं जिसे हमारा तार्किक दिमाग स्वीकार न करे। इस प्रकार आध्यात्मिकता (Spirituality) और विज्ञान के बीच की खाई चौड़ी होती जाती है।
आध्यात्मिक नेता सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने अपनी हालिया पुस्तक ‘इनर इंजीनियरिंग : ए योगीज़ गाइड टू जॉय’ (आंतरिक इंजीनियरिंग : एक योगी का मार्गदर्शन) में इन दोनों लोकों को मिलाने का प्रबंधन किया है। योगी पाठकों को जागरूकता से खुद को देखने के लिए अपनी रहस्यमय प्रयोगशाला में आध्यात्मिकता का एक सफेद कोट पहन कर योग के माध्यम से निडर होकर प्रयोग करने के लिए आमंत्रित करते हैं। वह आध्यात्मिकता से जुड़े सदियों पुराने मिथक को निडर होकर खारिज करते हैं और इस बात पर ज़ोर देते हैं कि कुछ भी अंधविश्वास पर टिका हुआ नहीं होना चाहिए। सब कुछ हमें हमारे अनुभवों से सीखना चाहिए।
पुस्तक सद्गुरु की आत्मकथा से शुरू होती है। उनका प्रिय कथन हमारे अपने बचपन की यादों को ताज़ा कर देता है। उदाहरण के लिए हमने भी कभी स्कूल बंक किया होगा, आवारा पिल्लों को घर लाए होंगे, जब पेड़ों को काट दिया जाता होगा तो हम रोते होंगे और सूरज के डूबने तक साइकिल पर भटकते रहते होंगे। संयोगवश हम भी उनकी तरह “एक जींस पहने हुए, बीटल्स संगीत सुनने वाले एक संदेहवादी व्यक्ति” रहे होंगे। पाठक के साथ स्थापित अतीत की यादों से भरा यह संपर्क किसी दृढ़ निंदक को भी काले या सफ़ेद रंग के परे रंगीन यादों में जाने पर मजबूर कर देता होगा। सद्गुरु के ज्ञानोदय का अनुभव एक संदेहवादी दिमाग को अंधेरे में छिपे हुए असंख्य रंगों को देखने के लिए उसे उकसा देता है।
पुस्तक का उत्तरार्द्ध मनुष्य के शरीर, मन और ऊर्जा की भौतिक परतों का विधिपूर्वक उल्लेख करता है। सद्गुरु ने अपनी खास बुद्धि, हास्य रस और आधुनिक भाषा के माध्यम से जटिल अवधारणाओं को भी सहजता और प्रभावशाली ढंग से समझाया है। न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्टसेलर (लोकप्रिय उपन्यास), रोज़मर्रा की प्रथाओं जैसे साधना को करने की सिफारिश करने के लिए एक अलग अंदाज़ दिखाता है। यह पाठकों को योग को एक प्रयोग की तरह करके स्वयं ही परिणाम देखने के लिए प्रेरित करता है।
अंत में ‘इनर इंजीनियरिंग : ए योगीज़ गाइड टू जॉय’ का आध्यात्मिकता की ओर सुलभ और व्यावहारिक दृष्टिकोण और योग विज्ञान के माध्यम से संपूर्ण भलाई इस पुस्तक को पढ़ना अनिवार्य बना देते हैं। अपने अंतर मन की सीमाओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए यह अपने तर्कपूर्ण मन को उसके बंधनों को समझते हुए अपनी निर्धारित सीमाओं से परे जाने के लिए जागरूक करता है। यह हमसे आग्रह करता है कि हम अपने भीतर के बच्चे को जगाकर, असीम आनंद की तलाश करने के सफ़र पर जाने का अधिकार अपने हाथ में लें।