देवदत्त पटनायक द्वारा लिखित ‘शिखंडी एंड अदर टेल्स दे डोंट टेल यू’ ऐसे सही समय पर आई है, जब एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल एंड ट्रांसजेंडर) समूह ने अपना सम्मान पाने के लिए भारत में आवाज़ बुलंद करना शुरू किया था। आज जिसे टैबू माना जाता है, वह समलैंगिकता अनंत काल से मौजूद है। ‘शिखंडी एंड अदर टेल्स दे डोंट टेल यू’ पुस्तक में पटनायक ने समलैंगिकता (homosexuality) के मुद्दे और जेंडर फ्लूइडिटी (gender fluidity) पर चर्चा करते हुए पाठकों को हिंदू मायथोलॉजी में मौजूद समलैंगिक कहानियों की झलक दिखलाई है।
‘शिखंडी एंड अदर टेल्स दे डोंट टेल यू’ किताब की शुरुआत में ही हमारे विचित्र समलैंगिक बर्ताव को दुनियाभर की संस्कृतियों में जिस नज़र से देखा जाता है, उसकी बात की गई है। इसके बाद पटनायक ने अलग-अलग काल और संस्कृतियों में समलैंगिकों, किन्नरों की उपस्थिति की खोज-पड़ताल की है। पितृसत्ता, नारीवाद एवं किन्नरों की बात करते हुए लेखक पाठकों को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि इस विस्तृत धरा में सभी बातों को समान आदर और सम्मान के साथ स्वीकारा जाता है।
किताब में लेखक ने आगे एक महत्वपूर्ण बिंदू को छूते हुए लिखा है कि आत्मा का कोई लिंग नहीं होता। पटनायक ने इसे, किताब के सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करने वाले हिस्से में शामिल किया है। उनके अनुसार, ‘नारीवाद का विचार यह मानता है कि स्त्री और पुरुष एक समान हैं। हालांकि हिंदू धर्म ग्रंथों में देखा गया है कि आत्मा को शरीर से अलग माना गया है। आत्मा का कोई लिंग नहीं होता। लिंग शरीर के साथ ही आया है। शरीर का कोई महत्व नहीं है। अत: लिंग आत्मा से ऊपर है, इस तरह के अज्ञानी, स्त्री देह पर नर देह को, बूढ़ी देह पर युवा देह को, काली त्वचा से ज्यादा गोरी त्वचा को महत्व देते हैं। उस देह के स्वामित्व की संपत्ति, उस परिवार को, जिसका वह शरीर है, उस देह के सामाजिक स्थान को महत्व देते हैं। प्रबुद्ध लोग देह को विशुद्ध रूप से कार्यात्मक रूप में देखते हैं: वे उस देवदासी की भी पूजा करते हैं, जो अपना शरीर हर किसी को भोगने देती है और उस संन्यासी को भी पूज्य मानते हैं, जो अपने शरीर को किसी को भोगने नहीं देते।’
इसी विचार की वजह से हिंदू पौराणिक कथा में जेंडर फ्लुइडिटी, सेक्सुअल आइडेंटिटी (sexual identity) और क्वीरनेस से जुड़ी 30 कहानियां निकलती हैं।
इसमें ऐसे पुरुष देवताओं की कहानी हैं, जिन्होंने बुराई को नष्ट करने के लिए नारी का रूप धारण किया या फिर एक ऐसे राजा की कहानी है, जो बगल के मकबरे में एक पुरुष चाहता था। ऐसे लोगों की कहानी जो न तो पुरुष थे और न ही स्त्री, लेकिन फिर भी अयोध्या ने उनका खुले दिल से स्वागत किया। कहानियों से पता चलता है कि उस वक्त में भी समलैंगिकता को स्वीकारा गया था। हालांकि, यह विडंबना ही है कि हम इन अमर समलैंगिकों की तो पूजा करते हैं, लेकिन बात जब सामान्यजन की आती है, तो हम इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
यह कहानियां बगैर किसी सांस्कृतिक विचाराधारा की दृष्टि को देखे लिखी गई हैं और यह आसान शब्दों में पेश की गई हैं। इस किताब में पटनायक सवाल तो खड़े करते हैं, लेकिन किसी का पक्ष नहीं लेते। प्रवाहपूर्ण वर्णन से लेखक यह महत्वपूर्ण बात समझाने में सफल रहते हैं कि हर समलैंगिक भी प्रकृति का ही हिस्सा होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि कई जगह फुटनोट, कहानियों की तुलना में अधिक लंबे हैं। हालांकि, ये सेक्सुअलिटी जैसे विवादास्पद विषय पर लेखक के दृष्टिकोण पर नज़र डालने का काम करते हैं। लेखक ने पौराणिक कथाओं को विस्तार से खंगाला है और पूरी किताब को सुंदर दृश्यों से सजाया है। सुंदर दृश्य पटनायक की किताबों की खासियत होते हैं।
‘शिखंडी एंड अदर टेल्स दे डोंट टेल यू’ को पढ़ने की सिफारिश उन लोगों के लिए की जाती है, जो हिंदू पौराणिक कथा में रुचि रखते हैं और उन लोगों के लिए भी, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में समलैंगिक विचार को लेकर कौतुहल रखते हैं। किताब में जिस तरह समलैंगिकता की कहानियां बयां की गई हैं, उसमें आदर्शवादी दोस्ती की कहानियां भी आपके दिल में गुदगुदी कर जाती हैं। कुल मिलाकर ‘शिखंडी एंड अदर टेल्स दे डोंट टेल यू’ किताब उन सभी को यथोचित सम्मान देती हैं, जो यहां हैं, वहां हैं और बीच में हैं।