आज जब भी कहीं युद्ध, तिलिस्म, जादुई दुनिया की मंत्रमुग्ध कर देने वाली कहानियों की बात होती है, तो ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ और ‘हैरी-पॉर्टर’ जैसी कहानियां सबसे पहले हमारे दिमाग में आती हैं। लेकिन, इन दोनों कहानियों के लिखे जाने से कई साल पहले पहले ‘चंद्रकांता’ जैसी काल्पनिक उपन्यास लिखी गई थी, जिसे देवकीनंदन खत्री ने लिखा था। इसे आज भी हिंदी के महाकाव्य के रूप में देखा जाता है। 1888 में प्रकाशित यह उपन्यास हिंदी का पहला बेस्टसेलर उपन्यास है।
1831 में बिहार के मुज्ज़फरपुर में नानी के यहां पैदा हुए देवकीनंदन खत्री का ‘चंद्रकांता’ पहला उपन्यास था। देवकीनंदन खत्री ने हिंदी उपन्यास लेखन के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल किया था। वे हिंदी में रहस्य-रोमांच से भरपूर उपन्यासों के पहले लेखक थे। देवकीनंदन खत्री की शुरुआती पढ़ाई उर्दू और फारसी में हुई, लेकिन, बाद में उन्होंने बनारस में हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी की पढ़ाई भी की।
उनके पिता लाला ईश्वरदास काफी धनी व्यापारी थे और उस समय के शासन में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे थे। इसलिए देवकीनंदन खत्री का बचपन काफी खुशनुमे माहौल में बिता। उन्हें बचपन से घूमने का काफी शौक था। बनारस के राजा ने उन्हें चकिया और नौगढ़ के जंगलों का ठेका दे दिया, जिसकी वजह से वे काफी दिनों तक वहां रहे और बीहड़ जंगलों, पहाड़ियों और ऐतहासिक इमारतों के खंडहर को देखा, जिसे उन्होंने अपने पहले ही उपन्यास में जगह दी। इसके कारण चंद्रकांता जैसे उपन्यास को उन्होंने लिखा।
इस आर्टिकल में हम ‘चंद्रकांता’ उपन्यास कैसे उस दौर में सबसे फेमस उपन्यास बना, इसके बारे में बताएंगे। साथ ही देवकीनंदन खत्री से जुड़ी अहम बातों पर भी चर्चा करेंगे।
हिंदी के प्रचार-प्रसार में चंद्रकांता उपन्यास की है बड़ी भूमिका (Hindi ke prachar-prasar mein chandrkanta upanyas ki hai badi bhoomika)
देवकीनंदन खत्री का उपन्यास हिंदी साहित्य के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। इस उपन्यास ने सब का मन मोह लिया। इस उपन्यास को पढ़ने के लिए काफी संख्या में लोगों ने हिंदी सीखी, क्योंकि उस समय की प्रमुख भाषा उर्दू और फारसी थी। उन्होंने तिलिस्म, ऐय्यार और ऐय्यारी जैसे शब्दों को हिंदी भाषी लोगों के बीच स्थापित कर लोकप्रिय बना दिया। इस उपन्यास की भाषा इतनी आसान है कि इसे पांचवीं क्लास के बच्चे भी पढ़ कर आसानी से समझ लेते हैं।
तब आसान नहीं था हिंदी भाषा का प्रचार (Tab aasan nahi tha hindi bhasha ka prachar)
देवकीनंदन खत्री ने जिस समय चंद्रकांता उपन्यास लिखी थी, उस समय भारत में सिर्फ छह प्रतिशत लोग ही साक्षर थे। वहीं, उस समय उर्दू और फारसी भाषाओं का बोलबाला था। ऐसे में हिंदी भाषा के उपन्यासों की पहुंच बहुत कम लोगों तक थी।
लेकिन, चंद्रकांता की कहानी लोगों का इतनी पसंद आई कि इसने भाषाओं के बंधन को तोड़ दिया। यह एक ऐसा उपन्यास बना, जिसने आम लोगों को उपन्यास पढ़ने के प्रति जागृत किया। साथ ही काफी संख्या में उर्दू पढ़ने और लिखने वाले लोगों को हिंदी पढ़ने के लिए मजबूर कर दिया।
चंद्रकांता को पढ़ते हुए लोग खाना-पीना तक भूल जाते थे (Chandrakanta ko padhte huye log khana-peena tak bhool jate the)
देवकीनंदन खत्री ने उस समय काल्पनिक चरित्रों को गढ़ते हुए यह उपन्यास लिखा था। लेकिन उपन्यास की कहानी और भाषा ऐसी थी कि लोग इसे पढ़ते हुए खाना-पीना तक भूल जाते थे। इस कहानी को पढ़ते हुए लोग खो जाते थे, उपन्यास की कहानी के दीवाने बन जाते थे और कहानी के शब्दों को अपनी ज़िंदगी में उतार लेते थे। इसकी लोकप्रियता को देखते हुए डायमंड बुक्स ने इसे साल 2012 में फिर से प्रकाशित किया था।
130 साल बाद उपन्यास पर बना सीरियल ‘चंद्रकांता’ (130 saal baad upanyas par bana serial ‘chandrakanta’)
इस उपन्यास पर ’चंद्रकांता’ नाम से सीरियल बनाया गया। इसका प्रसारण दुरदर्शन के डीडी नेशनल पर 1994 और 1996 में किया गया। जब यह सीरियल टीवी पर दिखाया जाता था, तो सड़कें और गलियां खाली हो जाती थीं। 130 साल बाद भी इस कहानी को टीवी पर दिखाने के लिए चुना गया, इसी से उपन्यास की महत्वता साबित होती है।
देवकीनंदन खत्री ने की हैं और भी कई रचनाएं (Devakinandan khatri ne ki hain aur bhi kai rachnayein)
देवकीनंदन खत्री का 52 वर्ष की उम्र में 1 अगस्त 1913 को निधन हो गया था। उन्होंने केवल चंद्रकांता उपन्यास ही नहीं लिखा था बल्कि चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, काजर काठरी, नरेंद्र मोहिनी, कुसुम कुमारी, कटोरा भर खून, गुप्त गोदान जैसी रचनाएं भी लिखीं, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया।
इस आर्टिकल में हमने आपको चंद्रकांता उपन्यास के बारे में बताते हुए देवकीनंदन खत्री के जीवन परिचय के बारे में भी बताया है। अगर आपने अब तक उनकी लिखीं रचनाएं नहीं पढ़ीं हैं, तो आज से ही शुरू करें।
यह आर्टिकल पढ़कर आपको कैसा लगा, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलेवेदा हिंदी से जुड़े रहें।