चित्रलेखा के माध्यम से भगवती चरण वर्मा का समाज पर कटाक्ष

चित्रलेखा के माध्यम से भगवती चरण वर्मा का समाज पर कटाक्ष

उपन्यास की मुख्य पात्र चित्रलेखा एक सुंदर नर्तकी है, जो अठारह साल की उम्र में विधवा हो गई थी। चित्रलेखा एक प्रेम उपन्यास है, आज की जेनरेशन को जहां आधुनिक लेखकों को पढ़ना बहुत पसंद है, वही एक वक्त था जब चित्रलेखा ने प्रकाशित होने के नौवें दशक तक पाठकों को अपना दीवाना बनाए रखा।

खुद को भावनात्मक तौर पर मजबूत कहने वाले भगवती चरण वर्मा ने भावनाओं के इसी संगम से एक उपन्यास को जन्म दिया, जो नौ दशकों तक लोगों के दिलों पर अपना कब्ज़ा जमाए हुए है, वो उपन्यास है ‘चित्रलेखा’।

चित्रलेखा 1934 में लिखा गया एक ऐसा उपन्यास है, जिसमें प्यार, वासना और त्याग जैसे भावों को भगवती चरण वर्मा ने बखूबी दिखाया है। उपन्यास की मुख्य पात्र चित्रलेखा एक सुंदर नर्तकी है, जो अठारह साल की उम्र में विधवा हो गई थी। 

चित्रलेखा एक प्रेम उपन्यास है। आज की जेनरेशन को जहां आधुनिक लेखकों को पढ़ना बहुत पसंद है, वही एक वक्त था, जब चित्रलेखा ने प्रकाशित होने के नौवें दशक तक पाठकों को अपना दीवाना बनाए रखा। इतने लंबे वक्त तक पाठकों ने चित्रलेखा को अपना प्यार दिया कि इस किताब की ढाई लाख से भी ज़्यादा कॉपियां बिक चुकी थी। ये उपन्यास समाज की रूढ़ीवादी सोच और पुरानी मान्यताओं पर एक सीधा प्रहार है। तो चलिए सोलवेदा के साथ जानते हैं चित्रलेखा उपन्यास (Chitralekha Novel in hindi) और इसके लेखक भगवती चरण वर्मा के बारे में।

चित्रलेखा उपन्यास से प्रेरित होकर बनी फिल्में (Chitralekha upanyas se prerit hokar bani filmein)

चित्रलेखा, भगवती चरण वर्मा की इतनी पसंदीदा रचना बन गई थी कि इस पर केदार शर्मा के निर्देशन में फिल्म भी बनाई गई, जिसमें मिस मेहताब ने चित्रलेखा का किरदार निभाया। वहीं अभिनेता नंद्रेकर, बीजगुप्त के किरदार में थे। चित्रलेखा कहानी में कुछ और भी मुख्य किरदार थे, जिनमें से एक थे कुमार गिरी। कुमार गिरि का किरदार अभिनेता ए.एस ज्ञानी ने निभाया। इस फिल्म को दर्शकों का बहुत प्यार मिला, जिससे चित्रलेखा लंबे समय तक दर्शकों और पाठकों को याद रही।

साल 1964 में फिर से चित्रलेखा पर फिल्म बनाई गई, जिसमें अभिनेता अशोक कुमार, मीना कुमारी और प्रदीप कुमार जैसे मुख्य किरदार नज़र आए थे। हालांकि, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपना जादू बिखेरने में नाकाम रही, पर चित्रलेखा उपन्यास (Bhagwati Charan Verma Novel) का स्वाद पाठकों की जुबान कभी भूल नहीं पाई।

उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा (Upanyasakar Bhagawati Charan Verma)

छायावादी कवि और प्रेमचंदोत्तर युग के प्रमुख उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा का जन्म उन्नाव ज़िले के सफीपुर कस्बे में 30 अगस्त 1903 को एक विखंडित होते ज़मींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम देवीचरण वर्मा था, जो पेशे से वकील थे। 1908 में फैली प्लेग महामारी में उनकी मृत्यु हो गई, जिससे घर की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई। इसका उनकी शिक्षा-दीक्षा पर असर पड़ा। 

वह बचपन से ही कविता लिखने लगे थे। कविता लिखने का शौक़ बढ़ा तो अपने स्कूल की हस्तलिखित पत्रिका के नियमित लेखक बन गए। उनकी रचनाएं ‘प्रताप’ और ‘शारदा’ जैसी पत्रिकाओं में छपने लगीं। साहित्य में डूबे रहने की वजह से हाईस्कूल और इंटर दोनों ही परीक्षाएं दूसरी बार में पास की। वकालत पास करके, हमीरपुर में वकालत के दौरान, भद्री राजा बजरंगबहादुर सिंह के संपर्क में आए और कुछ समय उनके साथ रहें। इसी समय वो ‘चित्रलेखा’ के लेखन-कार्य में ज़ोर-शोर से जुट गए थे। 

‘चित्रलेखा’ के प्रकाशन और उसकी बिक्री से उनका जीवन बदल गया। अगले कुछ साल कलकत्ता फ़िल्म कॉर्पोरेशन और ‘विचार’ पत्रिका से जुड़े रहें। फिर फ़िल्म निर्देशक केदार शर्मा ने ‘चित्रलेखा’ फिल्म का निर्माण शुरू किया तो सिनेरियो लेखक के रूप में ‘बम्बई टाकीज़’ से जुड़ गए। अब वह पत्रकारिता भी करने लगे थे। 1950 तक ‘पतन’, ‘चित्रलेखा’ और ‘तीन वर्ष’ जैसे उपन्यासों के प्रकाशन के साथ भगवती चरण वर्मा हिंदी उपन्यासकार के रूप में पाठकों में पहचाने जाने लगे। लखनऊ और दिल्ली के आकाशवाणी केंद्रों से भी उनके संबंध बन गए। बाद के दिनों में उन्होंने अन्य कामों को छोड़ दिया और बस साहित्य की साधना में लगे रहे। 

भगवती चरण वर्मा खुद कहते हैं कि, उनकी रचनाएं भावनाओं से भरी हुई हैं। उनमें भावनाओं को समझने का खास ज्ञान है और वो भावनात्मक रूप से मौजूद हैं, इसलिए ही तो वो अपनी रचनाओं में मन के हर भाव को खुल कर लिख पाए हैं।

चित्रलेखा की सफलता से भगवती चरण वर्मा उपन्यासकार कहलाएं (Chitralekha ki safalta se Bhagwati Charan Verma upanyasakar kahalayein)

भगवती चरण वर्मा का सबसे पहला उपन्यास ‘पतन’ था। लेकिन, उनके दूसरे उपन्यास ‘चित्रलेखा’ ने उन्हें साहित्यिक जगत में सफल होने में मदद की। इस उपन्यास के बाद ही भगवती चरण वर्मा उपन्यासकार कहलाएं। चित्रलेखा इतना लोकप्रिय उपन्यास है कि इसको सभी भाषाओं के पाठकों ने पढ़ा है। चित्रलेखा प्यार, वासना और पाप-पुण्य के इर्द-गिर्द घूमता एक उपन्यास है। इस उपन्यास का वक्त-वक्त पर भारत की बहुत-सी भाषाओं में अनुवाद किया गया है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग चित्रलेखा (चित्रलेखा नोवेल इन हिन्दी) को पढ़ सकें।

क्या है चित्रलेखा की कहानी? (Kya hai Chitralekha ki kahani?)

चित्रलेखा एक रूप सुंदरी की कहानी है। जिसका रूप किसी की भी साधना भंग करने के लिए काफी है। इस उपन्यास में कुमार गिरि नाम के एक तपस्वी जब चित्रलेखा को देखते हैं तो अपनी भक्ति छोड़, कामवासना के ख्यालों में खो जाते हैं। वहीं चित्रलेखा बीजगुप्त नाम के एक युवक की प्रेमिका है। चित्रलेखा जो कि एक विधवा और नर्तकी है, उसका ऐसे किसी मर्द के साथ बिना शादी किए रहना समाज के नियमों के खिलाफ है। इसलिए चित्रलेखा बीजगुप्त को छोड़कर नीलगिरी संत के चरणों में चली जाती है, पर वहां वो नीलगिरी की वासना का शिकार हो जाती है। 

यह भी जानने की बात है कि बीजगुप्त और नीलगिरी आपस में दोस्त हैं। इसके अलावा कहानी में और भी पात्र हैं। उपन्यास का एक अहम हिस्सा पाप और पुण्य के बीच घूमता है। पाप क्या है और पापी को क्या दण्ड मिलना चाहिए?, जैसे सवालों से उपन्यास की शुरुआत होती है। उपन्यास का एक किरदार, महाप्रभु रत्नाम्बर अपने दो शिष्य श्वेतांक और विशालदेव को यह पता लगाने के लिए कहते हैं कि पाप क्या है? और ये पता लगाने के लिए उन दोनों को दो लोगों की मदद चाहिए होगी और वो दो लोग नीलगिरी और बीजगुप्त हैं। कुमारगिरी एक योगी है, जिसको लगता है उसने संसार की सब कामवासनाओं को जीत लिया है और दूसरा बीजगुप्त एक भोगी है जिसकी आंखों से ही प्यार झलकता है। महाप्रभु अपने दोनों शिष्यों को बीजगुप्त और नीलगिरी के पास एक साल का वक्त देखकर भेज देते हैं। 

एक दिन सम्राट चन्द्रगुप्त के महल में एक कार्यक्रम था, जहां चित्रलेखा नाचते वक्त नीलगिरी पर मोहित हो जाती है। चित्रलेखा के अलावा एक और स्त्री यशोधरा इस कहानी के मुख्य पात्रों में आती है, पर वो सुंदर होते हुए भी चित्रलेखा की सुंदरता की बराबरी नहीं कर पाती।  पाटलिपुत्र के एक महान सामंत हैं आर्यश्रेष्ठ मृत्युंजय। उनकी इकलौती पुत्री थी यशोधरा।‌ मृत्युंजय यशोधरा की शादी बीजगुप्त से कराना चाहते थे। पर बीजगुप्त तो चित्रलेखा के प्यार में दीवाना घूम रहा था, इसलिए वो यशोधरा से शादी करने के लिए इनकार कर देता है। इस इनकार को जानकर चित्रलेखा बीजगुप्त को छोड़ देती है, ताकि यशोधरा और बीजगुप्त की शादी हो सके। 

दूसरी तरफ नीलगिरी चित्रलेखा को अपनी वासना का शिकार बना लेता है और इधर बीजगुप्त यशोधरा से शादी करने के लिए तैयार हो जाता है। पर जब बीजगुप्त को मालूम पड़ता है कि यशोधरा से श्वेतांक भी प्यार करता है, तो वो उन दोनों की शादी करवा देता है। चित्रलेखा नीलगिरी की शिकार होकर बहुत पछताती है और अंत में बीजगुप्त और चित्रलेखा फिर मिल जाते हैं। 

श्वेतांक और रत्नाम्बर ने पाप और पुण्य का भेद खोज पाया या नहीं? श्वेतांक और यशोधरा की शादी के लिए बीजगुप्त कैसे मान गया? और चित्रलेखा बीजगुप्त से कैसे मिली? ऐसे ही बहुत से सवालों के जवाब तो आपको उपन्यास चित्रलेखा में ही मिलेंगे। अगर आप भी उपन्यास पढ़ने के शौकीन हैं और प्रेम विषय पढ़ना पसंद करते हैं तो भगवती चरण वर्मा का लिखा उपन्यास चित्रलेखा अच्छा विकल्प है।

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