कल नहीं है

ज़िंदगी में कल कभी नहीं आता…

करीब 11 महीने बाद अब कोई डांस करने वाला नहीं था। माहौल अब पूरी तरह शांत हो गया था। एक दिन अविनाश अपने काम में लीन था, तभी अचानक से उसका ध्यान टेबल पर पड़ी अपने पिता जी की तस्वीर की तरफ चला गया।

झिलमिलाती लाइटों के बीच साउंड सिस्टम पर तेज़ आवाज़ में गाने बज रहे थे। नारायण पूरी मस्ती में इन गानों पर झूम रहे थे। ऐसा लग रहा था, मानो उनके लिए कल का दिन कभी नहीं आएगा। इस दौरान उनके चेहरे पर मुस्कान साफ झलक रही थी। म्यूजिक की धुन पर वे अपनी कमर को बहुत ही करीने और सावधानीपूर्वक लचका रहे थे, कहीं ऐसा न हो कि कमर में दर्द उखड़ जाए। 70 साल की उम्र में भी डांस के मामले में वे युवाओं को भी मात दे रहे थे।

जब वे डांस कर रहे थे, तो उस वक्त नारायण की पत्नी भी वहां थीं। उनके साथ उनके बेटे, बहू और उनकी 6 साल की पोती भी मौजूद थी। पार्टी में मौजूद अन्य लोग भी नारायण को देख उनकी तरह ही डांस करने और उनके एनर्जी लेवल (Energy level) को बरकार रखने का भरपूर प्रयास कर रहे थे। विशेषकर उनकी 6 साल की पोती। उसे इसकी थोड़ा-सी भी फिक्र नहीं थी कि उसके इर्द-गिर्द आखिर क्या चल रहा है। इस दौरान साउंड सिस्टम पर एक से बढ़कर एक गाने बज रहे थे और डांस फ्लोर पर पैरों के थिरकने के अलावा कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था।

यह देखकर नारायण की पत्नी उर्मिला बोल पड़ी- “आज के लिए बस इतना काफी है। अब रहने भी दीजिए। आप 20 साल के कोई लड़के थोड़े न रह गए हैं। आपको अब थोड़ा आराम फरमाने की आवश्यकता है।”

“येस डैड, अब आप आराम कर लीजिए,” नारायण के बेटे अविनाश ने थोड़ा चिंता जाहिर करते हुए यह बात कही।

“अरे बाबा, मैं तुम लोगों से पहले भी कई बार कह चुका हूं कि यदि मैं मर भी रहा हूं, तो उन सारे शौक को पूरा करके ही मरूंगा, जिनसे मुझे बेइंतहा मोहब्बत है। चाहे वह डांस करना हो या घूमना-फिरना। अपनी पत्नी और बेटे की तरफ देखते हुए नारायण ने बड़े ही प्यार से कहा-“जब तक मेरी सांस है, तब तक मैं अपना एक-एक पल अपने ढंग से जीना चाहता हूं।”

इतना सुनते ही उर्मिला की आंखों में आंसू झलक पड़े और रोते हुए कहने लगी- ओह! नारायण ये कैसी बात कर रहे हो। नारायण की बात सुनकर घर में थोड़ी देर पहले जो खुशी का माहौल था, वह जल्द ही उस पर गम के बादल छा गए। जीवन की यही सच्चाई है और उस परिस्थिति से निपटने का वक्त अब आ चुका था।

नारायण ने फर्श की तरफ अपनी नज़रें झुकाते हुए हल्की आवाज़ में कहा-“डॉक्टर पहले ही कह चुके हैं कि मैं दो महीने से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाऊंगा, लेकिन मेरे हिसाब से तो ये 60 दिन हैं। मैं एक-एक दिन अपने परिवार के साथ खुशी के साथ बिताना चाहता हूं।” ये कहते हुए नारायण अपने इमोशन पर काबू करने की पूरी कोशिश कर रहे थे।

इस गम के माहौल में नन्हीं-सी बच्ची ने बड़ी ही निच्छलता से पूछा- “दादाजी, हम लोग और डांस करें?” “ओह मेरी प्यारी बच्ची… हां, क्यों नहीं”, नारायण ने जवाब दिया और एक बार फिर डांस करने के मूड में आ गए। इसके बाद वे अपनी पोती के साथ डांस करने में मशगुल हो गए।

करीब 11 महीने बाद अब कोई डांस करने वाला नहीं था। माहौल अब पूरी तरह शांत पड़ गया था। एक दिन अविनाश अपने काम में लीन था, तभी अचानक से उसका ध्यान टेबल पर पड़ी अपने पिता जी की तस्वीर की तरफ चला गया। उसने तस्वीर को अपने हाथों में रख सोचने लगा कि वाकई में मैं कितना खुदकिस्मत वाला हूं। तस्वीर को निहारते हुए उसके मन में इच्छा जगी कि अपने पिता जी से बात करे, लेकिन उसे क्या मालूम था कि यह तो संभव ही नहीं है।

इसी बीच फोन की घंटी बज उठी। उधर से उसकी मां की आवाज़ सुनाई पड़ी।

अविनाश बोल पड़ा- “मम्मी, तुम किधर हो? तुम कब तक घर पहुंचोगी?

“ये तुम्हारी आवाज़ ऐसी क्यों आ रही है। क्या बात है, सब ठीक है ना?” उर्मिला ने फोन पर अपने बेटे से पूछा।

“ऐसा कुछ नहीं है मां। बस पता नहीं आज पिता जी बहुत याद आ रहे थे,” अविनाश ने जवाब दिया।

हैल्लो.. हैल्लो… मेरी आवाज़ सुनाई दे रही है मां? खराब नेटवर्क के चलते अचानक फोन कट गया।

थोड़ी देर बाद किसी ने दरवाजा खटखटाया।

“पिता जी आप यहीं है? इंडोनेशिया की यात्रा आपकी कैसी रही?” अविनाश ने गेट खोलते हुए पूछा।

“बहुत ही शानदार रहीं, पर वैसी नहीं जितनी की घर आने की उत्सकुता थी। हम लोगों ने तुम्हें बहुत मिस किया था”, नारायण ने बड़े ही प्यार से मुस्कुराते हुए जवाब दिया। विगत चार महीनों के भीतर नारायण की यह दूसरी यात्रा थी। डॉक्टरों के अनुमान को धता बताते हुए वे अभी भी जीवित थे, जैसे उनके लिए कोई आने वाला कल है ही नहीं। ज़िंदगी के आखिरी पड़ाव पर भी नारायण ने खुशी से जीने के तरीके ढूंढ लिए थे।

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