गुज़रा कल, आने वाला कल

तुम जो हो, मैं था; मैं जो हूं, तुम होगे

उसने उस खूसट बूढ़े को अंतिम बार देखा था, 30 वर्षों बाद उसने जब खुद को आईने में देखा था।

खुद के प्रतिबिंब को आईने में देखते हुए खुश होकर वह खुद ही सोच रहा था, ‘कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है।’ वह वाकई में अच्छा दिखता था। पर्याप्त पैसा होने की वजह से वह यह सुनिश्चित करता था कि अपने सजने-संवरने के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। उसके मित्रों का मानना था कि वह अहंकारी है और वह इसे स्वीकार करता था। आखिरकार कुरूपता को ही विनम्रता शोभा देती है।

एक अंतिम नज़र खुद पर डालने के बाद वह अपने पसंदीदा नाइट आउट की जगह पर चल दिया। ठंड ज्यादा थी और सड़क सुनसान। मुश्किल से एक किलोमीटर (One kilometer) चलने के बाद उसे लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा था। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई तो पाया कि एक खूसट बूढ़ा उसके पीछे चल रहा था।

उसने सोचा बदसूरत बूढ़ा शायद खतरनाक नहीं है। वह बेहिचक उस वक्त तक चलता रहा जब तक उसे अपने कंधे पर एक थाप महसूस नहीं हुई। वह बूढ़ा ही था। अब दोनों के बीच कुछ इंच की दूरी थी। वह उसकी झुर्रीदार त्वचा, कुबड़ी पीठ और धब्बे देख सकता था।

वह तिरस्कार भरे स्वर में ‘बूढ़े आदमी, तुम क्या चाहते हो?’ पूछते हुए सोच रहा था, वह क्यों एक पागल व्यक्ति को लेकर परेशान हो रहा है। बूढ़ा आदमी मुस्कुराया और समय बीतता रहा।

अपने असली रूप में आते हुए, गुस्से में उस युवक ने उसे झिड़का, ‘कुछ बोलो बुड्ढ़े’।

दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं आया, लेकिन ऐसा लग रहा था कि उसकी चुप्पी अनंत काल तक बनी रहेगी। अंत में बूढ़ा बोला, ‘तुम जो हो, मैं था; मैं जो हूं, तुम होगे।’ और फिर वह चला गया।

यह आखिरी बार था जब उसने इस खूसट बुड्ढ़े को देखा था। फिर एक दिन अचानक 30 साल के बाद वह उसे उस वक्त नज़र आया, जब उसने आईना देखा। अच्छा दिखने वाला चेहरा जा चुका था। अब एक बूढ़ा उसे घूर रहा था।

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