वह यूं ही कभी-कभार बस्ती से दूर स्थित एक सुपर बाज़ार में बड़ा-सा थैला लेकर जाती थी। इस थैले में महीने भर का परचून का सामान आसानी से समा जाता था। उसका वह सुंदर डिज़ाइन वाला थैला उसके कंधे पर इस तरह लटकता था, जैसे कोई झूलता हुआ आर्किड का फूल हो। अपनी ज़रुरत की चीज़ों को सावधानीपूर्वक चुनती हुई जब वह सुपर बाज़ार के गलियारों से गुज़रती तो उसके सेंट की सुगंध हवा में देर तक तैरती रहती थी। जब पेमेंट विंडो पर बैठी हुई कैशियर ने शॉपिंग ट्रॉली की सारी चीज़ें उसके थैले में भर दी, तो उसने पेमेंट करने के लिए अपना क्रेडिट कार्ड निकाला। उसकी हीरों जड़ी बेशकीमती घड़ी (Precious Watch), बहुमूल्य व दुर्लभ बटुए को देखकर कैशियर ने बड़ी ही प्रशंसा भरी नज़रों से उसे मन-ही-मन सराहा।
जैसे ही वह सुपर बाज़ार से बाहर निकली उसकी नज़र बाहर खड़े एक भुट्टे बेचने वाले पर पड़ी। जब उसने अपने ड्राइवर को अपनी ओर आते देखा, तो वह तेज़ी से भुट्टेवाले की तरफ बढ़ी और उससे एक भुट्टा पैक करने के लिए कहा। भुट्टेवाले ने फटाफट एक भुट्टा पैक किया और मैडम को थमा दिया।
“कितने पैसे हुए?,” उसने भुट्टेवाले से पूछा। “30 रुपए मैडम,” उसने फौरन जवाब दिया। “एक भुट्टे के 30 रुपए? यह तो बेतुकी बात है। दाम कम करो। 15 रुपए ले लो।” वह बोली।
गरीब भुट्टेवाले ने उसकी ओर देखा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे। उस बेचारे के लिए एक-एक पैसा बहुत मायने रखता था। “नहीं मैडम, 15 रुपए तो बहुत कम हैं। मुझे घर पर 5 लोगों का पेट भरना होता है।” भुट्टे वाले ने सफाई दी। पर वह अपनी बात पर अड़ी रही। “चलो 20 कर लो। नहीं तो अपना भुट्टा वापस ले लो। मुझे नहीं चाहिए।” अब तक काफी हो हल्ला हो चुका था। बेचारे भुट्टेवाले के पास उसकी बात मानने के अलावा कोई चारा न था।
सुपर बाज़ार के पेमेंट विंडो के पीछे एक महिला कैशियर खड़ी थी। पारदर्शी खिड़की में से वह यह सब दृश्य देख रही थी। उसे बेचारे भुट्टेवाले पर बड़ी दया आ रही थी। मैडम के व्यवहार पर उसे हंसी आ रही थी।
हीरों से जड़ी हुई घड़ी पहन लेने और बेशकीमती पर्स लटका लेने भर से कोई दौलतमंद नहीं बन जाता। सच में दौलतमंद बनने के लिए चाहिए होता है- एक अदद बड़ा दिल।