मुंबई के एक बड़े कॉरपोरेट हाउस में मनोज 9×5 की नौकरी करता था। रात में ऑफिस में देर तक काम, फिर दोस्तों के साथ खाना खाते किसी तरह भागते-भागते 1:40 की आखिरी लोकल पकड़ अंधेरी में अपने घर पहुंचा। रात इतनी ज्यादा हो गई थी और थकान कुछ इस कदर हावी था कि बेड पर लेटले ही मनोज को नींद आ गई। वो सुबह उठा। मोबाइल उठाकर समय देखा, तो सुबह के 9 बज रहे थे, बिना नहाए, मुंह धोकर शर्ट पहना और घर से निकल गया। उसके घर से कुछ दूरी पर ही स्टेशन था, जहां से वो रोजाना लोकल ट्रेन पकड़ता था। इस बीच रास्ते में अपने आस्तीन को मोड़ते हुए किसी तरह भागकर ट्रेन पकड़ा। ऑफिस ऑवर के समय में लोकल ट्रेन (Local Train) की भीड़ कुछ उसी तरह थी, जैसे कुछ साल पहले तक छोटे शहरों में फिल्म की टिकट कटाने के लिए लाइन होती थी। मनोज इस माहौल में ढल चुका था, ऐसे में लोकल के पहुंचते ही भीड़ को चीरते हुए वो ट्रेन में घुस गया। जल्दबाजी में मनोज अपना पर्स घर में भूल आया था। उसका ऑफिस वर्सोवा बीच के पास था। कहते हैं ना मुंबई में सफर किलोमीटर में बयां नहीं किया जाता, बल्कि यहां दूरी घंटे में नापी जाती है। वर्सोवा स्टेशन पहुंचते उसे 10:20 हो चुके थे।
स्टेशन से उतरते ही वो इस तरह भागा जैसे, देर से ही सही पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके, वो जल्दबाजी में था कि ट्रैफिक सिग्नल को पार करने के दौरान एक छोटी सी बच्ची ने पीछे से थपथपाते हुए कहा, भईया, गुब्बारे ले लीजिए। मनोज जल्दबाजी में था और निकलता चाहता था, शायद ये कोई और दिन होता तो इग्नोर कर या फिर चंद मिनट रुककर लड़की को मना कर देता, उसे कुछ समझ में नहीं आया, जेब में हाथ डाला तो 50 रुपए का नोट था, उसने लड़की को थमाते हुए गुस्से में कहा, ये रख लो और मुझे जाने दो। लेकिन, उस छोटी लड़की ने चेहरे पर मुस्कान बिखेर कहा, थैंक्यू भईया। मनोज भी इसे नज़रअंदाज़ न कर सका और सिर हिला आगे बढ़ गया।
इधर, मनोज आगे बढ़ा ही था कि छोटी लड़की ने एक बुजुर्ग महिला (Buzurg Mahila), जिसने एक हाथ में झोला और एक हाथ में छाता थामा था। वो सड़क पार करने की कोशिश कर रही थीं। लड़की भागकर उनके पास गई, कहा, दादी अम्मा, क्या मैं आपका ये झोला उठा लूं? बुजुर्ग महिला ने लड़की के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, क्यों नहीं बेटी। छोटी बच्ची ने झोला पकड़ बुजुर्ग महिला को सड़क पार कराया। वहीं, बुजुर्ग ने बदले में अपने छोले से एक चॉकलेट निकाल कर बच्ची को दिया, छोटी लड़की ने भी उसे थामते हुए फिर वही प्यारी मुस्कान बिखेरते हुए कहा, थैंक्यू और अपने काम में जुट गई। गुब्बारे ले लो, गुब्बारे… गुब्बारे ले लो, गुब्बारे।
इधर, मनोज ऑफिस (Office) में अपने डेस्क के पास पहुंचा ही था कि पीछे से बॉस रंजीत आए और कहा, ये भी कोई ऑफिस आने का समय है। ऐसा करो आज आप घर चले जाओ। उनकी आवाज़ सुन ऑफिस में ठीक वैसे ही सन्नाटा छा गया, जैसे घुप्प अंधेरी रात में छा जाता है। मनोज शर्म से लाल हो चुका था, उसे तो बॉस ने बात रखने का मौका भी नहीं दिया। ऐसे में बैग लेकर मनोज निकल गया, सोचा कहां जाऊं, तो वो वर्सोवा बीच किनारे ही नारियल पेड़ के नीचे बैठ गया। रात में नींद पूरी नहीं हुई थी, ऐसे में रेत पर नारियल पेड़ के सहारे टेक लगाया ही था कि नींद आ गई।
इधर, ऑफिस में रंजीत सर का मूड भी कुछ ठीक नहीं था और उन्हें फ्लाइट लेकर बिजनेस मीटिंग के सिलसिले में दूसरे शहर जाना था। ड्राइवर को उन्होंने फोन कर कहा, गाड़ी निकालो, घर चलना है। कार में बैठे-बैठे ऑफिस से घर तक का सफर करते हुए उन्होंने सोचा डायरी निकाल मीटिंग के लिए कुछ नोट्स बना लेता हूं। उन्होंने डायरी निकाली, फिर पेन निकालने के लिए अपने शर्ट के जेब में हाथ डाला, तो पेन ही नहीं था, फिर ड्राइवर से पूछा रमेश जी… आपके पास पेन है क्या?… जवाब आया, नहीं सर… आगे ट्रैफिक सिग्नल पड़ेगा, वहां ले लेंगे, वहां मैंने बच्चों को पेन बेचते हुए देखा है। सो कुछ दूरी तय करने के बाद ट्रैफिक सिग्नल पर कार रोका ही था कि वही लड़की फिर गुब्बारे लेकर कार के पास आ गई। कहा, अंकल-अंकल गुब्बारे ले लो। रंजीत ने शीशा नीचे कर पूछा, गुब्बारे नहीं चाहिए, पेन है क्या? लड़की ने पीछे मुड़ आवाज़ लगाई, अरे अजय, इधर आना। अजय ने काफी पेन थाम रखे थे, वो भागते-भागते आया और लड़की ने रंजीत को पेन थमा कहा, 10 रुपए हुए अंकल। रंजीत सर ने जेब में हाथ डाला तो 2 हजार रुपए का नोट निकला, लड़की ने कहा, रहने दीजिए अंकल। आप पेन रख लीजिए। तबतक ग्रीन सिग्नल हो चुका था और लड़की जाने वाली ही थी कि रंजीत ने कहा, थैंक्यू बेटी… और ड्राइवर को गाड़ी चलाने के लिए कहा।
घर पहुंच रंजीत अपना सामान पैक कर ही रहे थे कि उनकी मां ने कहा, पता है आज सिग्नल पर एक लड़की मिली। बड़ी प्यारी थी। उसने मुझे न सिर्फ रोड पार कराया, बल्कि मेरा भारी झोला भी पकड़ा। मां की ये बातें सुन रंजीत भी अपनी कहानी सुनाना चाहता था, लेकिन वो जल्दबाजी में था सो, सोचा फिर कभी सुनाऊंगा। सामान पैक कर जल्दी-जल्दी खाना खाकर निकल गया एयरपोर्ट की ओर।
इधर, शाम ढल चुकी थी और वर्सोवा बीच किनारे मनोज की नींद खुली। सुबह से शाम हो चुकी थी और मनोज को भूख भी जोरों की लगी थी, जेब में हाथ डाला तो खाली था, पर्स टटोला, तो देखा कि पर्स घर पर ही छूट गया था। कहते हैं न जब भूख लगी हो, तो सुंदर से सुंदर नज़ारे का आनंद भी नहीं आता। खैर, शाम ढलने को आई थी, सूरज लाल सिक्के के समान समुद्र में धीरे-धीरे समा रहा था, ठीक उसी तरह जैसे इशारा कर बता रहा हो अंधेरी रात के आने का। वहीं, बीच पर काफी लोग थे। कई लोग कान में ईयरफोन डालकर रनिंग करते हुए और एक्सरसाइज करते हुए दिख रहे थे। आसपास भेल, कांदा भजी, आलू मसाला चाट, आलू चाट, दही बटाटा की खुशबू मनोज की भूख को और बढ़ा रही थी। इतने में उसे वही लड़की दिखी। वो भेल बेच रही थी, वो मनोज के पास आई और कहा, भईया खाइएगा। मनोज ने कहा, मन तो है, पर मेरे पास पैसे नहीं है। लड़की ने फिर चेहरे पर वही मुस्कान बिखेरकर कहा, कोई बात नहीं भईया। कहकर अच्छे से मसालेदार भेल बनाकर दिया। भेल इतना स्वादिष्ट था कि उसे खाकर मनोज की भूख छू मंतर हो गई। इतने में उसका फोन भी बज उठा, देखा तो बॉस का फोन था, उन्होंने कहा, अच्छा मनोज आज लेट क्यों आए थे? इससे पहले कि मनोज कुछ बोलता, उन्होंने फिर कहा, आगे से ऐसा मत करना… कहकर फोन रख दिया।
कहते हैं ना छोटी-छोटी खुशियां (Choti-Choti Khushiyan) ही घूमकर वापिस आती हैं। इसलिए जब भी संभव हो आप एक-दूसरे की मदद करते रहें। पॉजिटिविटी से भरी ऐसी ही कहानियां पढ़ने के लिए सोलवेदा पर पढ़ें ढेरों लेख।