रेलवे स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। भीकू काका मंच पर सुस्ता रहे थे। प्रिया ने देखा कि वह आज सामान्य दिनों जैसा नहीं दिखाई दे रहे थे। भीकू काका आज ट्रेन से उतर रहे यात्रियों को देख तो रहे थे, लेकिन उनकी आंखें न जाने किसी और ही दुनिया में खोई लग रही थी।
प्रिया ने याद किया कि यह तो उसके काका नहीं हैं। नियमित रूप से इसी मार्ग से यात्रा करने वाली प्रिया ने उस बुजुर्ग कुली को हमेशा ही उत्साह से भरपूर और फुर्तीला देखा था। वह हमेशा ही जितना ज्यादा संभव होता उतने सूटकेस और बैग उठाकर चलते हुए दिखाई देते थे। प्रिया उनकी बूढ़ी उम्र के बावजूद उनके दृढ़ निश्चय को देखकर उनकी फैन बन गई थी। आखिरकार उन्हें अपने बेटे की शिक्षा के खर्च का बोझ जो उठाना था।
काका अपने बेटे के लिए एक बेटर लाइफ चाहते थे। उन्होंने उससे अपना राज साझा करते हुए कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि वह अच्छी शिक्षा लेकर व्हाइट कॉलर जॉब (White collar job) करे’। वह अपने बेटे के लिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान भी नहीं रखते थे। हर दूसरे सप्ताह उनकी कमज़ोर हड्डियों पर प्लास्टर चढ़ा रहता था, जो उन्हें ठीक करने के लिए लगाया जाता था। लेकिन फिर भी वह अपना काम जारी रखते थे। प्रिया उनको लेकर चिंतित थी। वह बुजुर्ग थे और अब उनके लिए भारी सूटकेस का बोझ उठाना मुश्किल होता जा रहा था।
काका का सपना उस वक्त हकीकत में बदल गया जब उनके बेटे को दुबई में नौकरी मिली थी। जब काका ने मिठाई के बॉक्स को खोलते हुए बच्चों जैसी खिलखिलाती हुई हंसी के साथ उसे इस बात की जानकारी दी तो वह बेहद खुश हो गई थी। काका ने कहा था, ‘मैं भी दुबई जाऊंगा। मेरा बेटा मुझे लेकर जाएगा’। प्रिया को काका से लगाव हो गया था। वह उनमें एक जिम्मेदार पिता देखती थी, जो उसके पास कभी नहीं थे।
लेकिन पिछले 5 वर्षों से बुजुर्ग काका वह पुराने काका नहीं लग रहे थे। उनके बेटे ने अब उनसे संपर्क करना भी बंद कर दिया था। प्रिया ने काका को टूटते हुए देखा था। धीरे-धीरे वह खोखले होते जा रहे थे।
एक दिन उसने अपना मन बना लिया और बोली, ‘काका, लेट्स गो।
प्रिया ने उन्हें धीरे से उठाया तो वह बेखबर बने रहे। प्रिया उन्हें अपने घर लेकर आ गई। वह जानती थी कि वह शायद कभी भी उनका दुख दूर नहीं कर पाएगी, लेकिन वह उन्हें एक नया परिवार मिलने के समान था, जिसकी कोशिश तो ज़रूर कर सकती है।