पहली मुलाकात

सास से पहली मुलाकात

कैसे टीना की सास उसके लिए सबसे बड़ा ‘सपोर्ट सिस्टम’ (Support System) बन गई? आइए, टीना और उसके सास की पहली मुलाकात देखें।

दिन तय हो चुका था। उसकी शादी हो रही थी। वह इसे लेकर बेफ़िक्र नहीं हो सकती थी। टीना ने अपने कैरियर (Carrier) को बनाने के लिए वर्षों मेहनत की थी, वह अब साकार होने वाली थी। लेकिन नहीं, कोई उसकी नहीं सुन रहा था। उसे बताया गया था कि वह अब 26 साल की हो रही है और उसे अपना घर बसाना ही होगा। बहुत हो गया कैरियर बनाना।

तो टीना इस वक्त एक सुनार की दुकान में अपनी भावी सास के साथ चुपचाप खड़ी थी। सास ने पारंपरिक सोने की चूड़ियों की ओर देखते हुए कहा, ‘तुम मुझे आई (मां) कहकर बुला सकती हो’।

आई कन्नडिग्गा कोंकणी समुदाय की थीं, उनका ब्याह उत्तर भारतीय परिवार (Uttar Bhartiya parivar) में हुआ था। तो एक बात तो तय थी कि उन्होंने अपने ससुराल में तालमेल बिठाने के लिए काफी मेहनत की होगी। आई एक स्वाभिमानी महिला थीं, जिसे देखकर यह अहसास होता था कि वह दृढ़ और खुद को श्रेष्ठ समझती हैं। जैसे-जैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, टीना भी खुद के भीतर एक जिद का अहसास करने लगी थी, जो कि उसकी सास की शख्सियत के साथ मेल खाने लगी थी।

लेकिन पहली मुलाकात (First Meeting) से ही टीना को जो बात असहज कर रही थी, वह यह कि उसकी सास ज्यादा बातचीत में शामिल नहीं होती थीं और कभी-कभार ही मुस्कुराती थीं।

शादी का दिन आ गया और यह दिन पूरी तरह रीति-रिवाजों और लोगों से भरा हुआ था। जब विदाई का वक्त आया, तो टीना को यह पता था कि वह अगले ही दिन अपनी मां के घर लौट आएगी। (यह एक ऐसे व्यक्ति से शादी करने का सुख था, जो आपके घर से केवल एक किलोमीटर की दूरी पर रहता था)।

जब टीना ने अपने नए घर की चौखट लांघी, तो एक अनजाने डर ने उसे घेर लिया। उसे उसके ससुराल वालों, रिश्तेदारों ने घेर लिया और उसे एक ऐसी भाषा सुनाई दी, जो उसने कभी सुनी और समझी नहीं थी।

एक वयस्क और परिपक्व महिला होने के बावजूद टीना वहां से भाग कर किसी कोने में बच्चे की तरह छुप जाना चाहती थी।

एक अनजाने कमरे में अटैचियों के ढेर के बीच बैठी टीना को अब एक डर और विचित्र परिस्थिति के आभास ने घेर लिया था। थकान और भावनात्मक रूप से ओतप्रोत टीना की आंखों से आंसू बह निकले थे। अचानक उसने अपने कंधे पर किसी की मजबूत बाहों के स्पर्श को महसूस किया। उसमें सोने की पारंपरिक चूड़ियां जच रही थी। ये बाहें अजनबी थी, लेकिन सुरक्षा का अहसास भी दे रही थी। इसी अहसास से वह स्वत: आई से लिपट गई और उनके आंचल में अपना मुंह छुपा लिया।

टीना के कानों में आवाज गूंजी, ‘मुझे पता है तुम कैसा महसूस कर रही हो। डरो मत, मैं हूं यहां। डरने की कोई बात नहीं है।’ जिसे टीना अपना विरोधी समझ रही थी, वह अचानक ही उसकी सहयोगी बन गई थीं। सही मायने में आज टीना की उसकी सास के साथ पहली मुलाकात थी और यह पहली मुलाकात, पहली वाली मुलाकात से काफी अलग थी।

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