जिंदगी की परिभाषा

जिंदगी की परिभाषा

मैं जानती हूं कि मैं गलत नहीं हूं, आप और पापा जानते है कि मेरी शादी टूटने में मेरी कोई गलती नहीं थी और इतना मेरे लिए काफी है। सोसाइटी, लोग रिश्तेदार क्या सोचते हैं, हमें इस बारे में नहीं सोचना चाहिए..

शाम के 6 बजने जा रहे थे और दीप्ति लगभग 3 घण्टे से अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थी। इसी वजह से दीप्ति की माँ राधिका और पिता अखिल परेशान बैठे थे।

दीप्ति की मां ने कुछ सोचते हुए अखिल से कहा, “आपको नहीं लगता हमें अब दीप्ति की दूसरी शादी के बारे में सोचना चाहिए। एक साल होने को है, कब तक वो अपने तलाक़ का बोझ ढोती रहेगी। कल भाईसाहब ने जो भी कहा उसके बाद से दीप्ति अब तक अपने कमरे से बाहर नहीं आई है। आखिर भाईसाहब होते कौन हैं, हमारी बेटी के चरित्र पर उंगली उठाने वाले?”

अखिल ने जबाव देते हुए कहा “आपकी नाराजगी जायज़ है राधिका जी, लेकिन लोगों के ताने और कड़वी बातों के दबाव में आकर इस बार मैं अपनी बेटी की जिंदगी का फ़ैसला जल्दबाजी में नहीं लूंगा। एक बार मेरे गलत फैसले की वजह से उसकी हंसती-खेलती जिंदगी बर्बाद हो चुकी है। अब आगे वो जैसा चाहेगी, वैसा ही होगा। माँ-बाप होने के नाते हमें बस अपनी बच्ची के साथ खड़े रहना है।”

अखिल और राधिका अभी बातें ही कर रहे थे कि कमरे के दरवाजा खुला और लगभग 24 साल की प्यारी-सी एक लड़की, नेवी ब्लू कलर की प्लेन साड़ी में हल्के मेकअप के साथ, बालों का जूड़ा बनाए हुए बाहर निकली।

उसने मुस्कुराते हुए कहा, “मम्मा, पापा आप दोनों अब तक रेडी नहीं हुए, 6 बज गए हैं। हमें शादी में पहुंचने में देर हो जाएगी। चलिए, जल्दी रेडी हो जाइए आप दोनों, तब तक मैं चाय बना लेती हूं, चाय पीकर निकलेंगे।”

दीप्ति मुस्कुराते हुए किचेन की तरफ बढ़ी ही थी कि राधिका बोली, “बेटा, तेरा मन नहीं है तो कोई बात नहीं, मैं और तेरे पापा चले जाएंगे। तब तक तू अपनी सहेली को बुला ले।”

दीप्ति ने मुस्कुराकर अपनी मां के हाथों को पकड़ते हुए कहा, “मम्मा, आप जो सोच रही हैं, वो मैं समझ रही हूं, लेकिन भरोसा कीजिए, मैं शादी में जाना चाहती हूं। शिखा मेरी कजन सिस्टर ही नहीं बल्कि मेरी बहुत अच्छी दोस्त भी है। मैं लोगों के डर से छिपकर घर में कैद नहीं हो सकती। मैं जानती हूं कि मैं गलत नहीं हूं, आप और पापा जानते है कि मेरी शादी टूटने में मेरी कोई गलती नहीं थी, और इतना मेरे लिए काफी है। सोसाइटी, लोग रिश्तेदार क्या सोचते हैं, हमें इस बारे में नहीं सोचना चाहिए। देर से ही सही लेकिन अब मेरी समझ में ये बात आ चुकी है कि आप चाहे कितने भी सच्चे और ईमानदार हों, लेकिन अगर किसी की सोच ही गलत है तो वो आपके बारे में न कभी अच्छा ना सोच सकते हैं और न बोल सकते हैं। लेकिन, ऐसे लोगों को मैं अपनी जिंदगी का फैसला लेने का हक नहीं दूंगी। शादी मेरे जीवन की परिभाषा नहीं बदल सकती। अपनी जिंदगी अब मैं अपने शर्तों पर जीना चाहती हूं।”

दीप्ती के चेहरे की नई चमक और आत्मविश्वास देखकर राधिका और अखिल के चेहरे भी चमक उठे।

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