नेहा और बॉस्को का रिश्ता कुछ ऐसा था, जैसे एक फली में दो मटर होते है। रोजाना दोनों अपने घर के पास चारों ओर घंटों दौड़ते हुए बिताते थे। एक-दूसरे के साथ खूब खेलते थे। उन दोनों को एक-दूसरे से कभी अलग नहीं किया जा सकता था। नेहा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। जबकि, बॉस्को उसका प्यारा छोटा गोल्डन रिट्रीवर डॉग था। बॉस्को नेहा का सबसे प्यारा दोस्त था, जिसे वह किसी भी समय कुछ कह सकती थी।
समय बीतने के साथ ही नेहा 11 साल की हो गई, जबकि उसके दोस्त बॉस्को की उम्र आखिरी पड़ाव पर पहुंची गई थी। नेहा अच्छी तरह जानती थी कि उसका प्यारा दोस्त बीमार है और अब वह कुछ दिनों का ही मेहमान था। लेकिन, नेहा बॉस्को को अंतिम विदाई देने के लिए अभी भी तैयार नहीं थी। वो ऐसा कैसे कर सकती थी? उससे गले लगकर पुचकारना, उसके साथ दूर तक टहलना, गेंद को उछालना और फिर ले आना और घरवालों से बॉस्को की शरारतों को छिपाना- इन अनमोल यादों ने सच में नेहा के बचपन को बेहद खास बना दिया था।
बॉस्को की मौत ने नेहा को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया। वह काफी सदमे में चली गई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि उसकी पूरी फैमिली को दूसरे शहर में शिफ्ट होना पड़ा, जहां उनके लिए हर कोई अजनबी था। उसे अकेलापन काफी काटने को दौड़ता था। उसकी जेहन में शामिल बॉस्को का लगातार भौंकना, लार टपकाना, मासूम आंखें और नखरे अक्सर याद आते थे।
नेहा के स्कूल में पढ़ने वाले दूसरे बच्चे उसकी तरह ही हमउम्र थे। कभी संयम में रहते, तो कभी एक-दूसरे को नुकसान पहुंचा देते थे। ऐसी स्थिति में नेहा को दोस्ती करने में भी काफी मुश्किल आ रही थी। नन्ही नेहा एक दोस्त के लिए तरस रही थी, जो बॉस्को की मौत के बाद उसकी ज़िंदगी में आए खालीपन की भरपाई कर सके।
एक दिन दोपहर में स्कूल से आने के बाद नेहा अपने कमरे की खिड़की के बाहर देख रही थी। उसे अपने पुराने दोस्त बॉस्को की बहुत याद आ रही थी। आती भी क्यों नहीं, आज उसका जन्मदिन जो था। इसी बीच बाहर से एक जानी-पहचानी-सी आवाज़ सुनकर वह अपने ख्यालों से निकलकर सचेत हो गई। वह देखने लगी कि यह आवाज़ कहां से आ रही है। इसी दौरान उसकी नज़र सड़क किनारे चिल्ला रहे एक डॉगी के बच्चे पर पड़ी।
नेहा अपने कमरे से निकलकर बाहर चली गई और देखा कि एक प्यारा सा डॉग अकेले दर्द से कराह रहा था। नेहा उसे देखकर हैरान हो गई और खुद से कहा- लगता है कोई इसे यहां छोड़कर चला गया है? नेहा सड़क किनारे अपने घुटने के बल बैठ गई और डॉग को प्यार भरे हाथों से सहलाने लगी। इसके बाद उसने रोना बंद कर दिया और नेहा के चेहरे पर पुचकारना शुरू कर दिया।
इस अकेलेपन के दौर में नेहा को फिर से एक दोस्त मिल गया और उस प्यारे डॉग को भी उसका साथी मिल गया। नेहा ने बड़े ही प्यार से नन्हे डॉग को अपनी गोद में उठाया और अपने घर की तरफ चल पड़ी। उसी समय उसके पैरेंट्स की कार घर के सामने गेट के पास आकर रुक गई। नेहा दौड़कर उनके पास गई और बोली- “प्लीज.. मॉम एंड डैड, क्या हम लोग इसे अपने घर में रख सकते हैं? किसी ने इसे सड़क पर अकेला छोड़ दिया, ”नेहा ने बड़ी ही विनम्रता से कहा।
नेहा के डैड ने जवाब दिया। ओ मेरी स्वीट हार्ट… बिल्कुल, हम लोग क्यों नहीं इसे रख सकते हैं।
नेहा बेटा, बताओ इसका क्या नाम रखोगी, उसकी मां ने पूछा।
हां.. इसका नाम रहेगा बॉस्को.. बॉस्को जूनियर, नेहा बड़े ही प्यार से मुस्कुराते हुए बोल पड़ी।