टूटे नहीं

ज़िंदगी में झुके, लेकिन कभी हार न मानें

करीब 10 महीने पहले एक सड़क हादसे में पूनम को अपने दोनों पैर गंवाने पड़े। इसके बाद उसकी ज़िंदगी बेडरूम तक ही सिमट कर रही गई थी।

“गुड मॉर्निंग… मेरी प्यारी गुड़िया रानी। देखो सुबह हो गई है। अब उठ जाओ। सुमन ने पूनम के बेडरूम में घुसते हुए बड़े ही प्यार से कहा।”

इतना कहने के बाद सुमन मेस की तरफ चली गई और बेक्रफास्ट का ट्रे टेबल पर लगाया और पूनम के पास आकर बैठ गई।

उस वक्त पूनम के चेहरे पर एक अजीब तरह की उदासी थी। उसने अपना चेहरा घुमा लिया और मन ही मन कहा-“मुझे ये दिखावापन बिल्कुल भी पसंद नहीं है।”

पूनम के इस व्यवहार से सुमन का मूड खराब हो गया और उदास हो गई। ज़िंदगी में कभी हार नहीं मानने वाली सुमन ने ब्रेकफास्ट का ट्रे उठाया और कहा- यदि तुम्हें खाने का मन हो तो लिविंग रूम में आ जाना। इतना बोलकर वह वहां से उठकर चली गई। आश्चर्य की बात है कि इतना सुनने के बाद भी पूनम बिल्कुल शांत रही और एक शब्द भी कुछ नहीं बोली। लेकिन, भूख की वजह से उसके पेट में चूहे दौड़ रहे थे। अंतत: उसे झुकना पड़ा।

पूनम बेड से उठी और अपने कमरे में चारों तरफ अपनी नज़र दौड़ाई। उसकी आंखों में अभी भी काफी दर्द था। बेड के पास पड़े व्हीलचेयर पर उसकी नज़र गई। वह व्हीलचेयर तक पहुंचना चाहती थी। शरीर में तमाम पीड़ाओं के बावजूद जैसे-तैसे वह बेड से उठी और व्हीलचेयर पर चढ़ने की कोशिश करने लगी। उसने पैर में बंधी स्ट्रेप्स को जैसे-तैसे मैनेज कर वह व्हीलचेयर पर बैठ गई और एक लंबी सांस लेते हुए लिविंग रूम की तरफ चल पड़ी।

दरअसल, करीब 10 महीने पहले एक सड़क हादसे में पूनम को अपने दोनों पैर गंवाने पड़े। इसके बाद से ही उसकी ज़िंदगी बेडरूम तक ही सिमट कर रही गई थी। महज दो लोगों की यह छोटी फैमिली थी। सुमन चाहती थी कि पूनम अपनी दिव्यांगता की जद से निकलकर एक सामान्य ज़िंदगी की ओर रूख करे। पूनम सामान्य जीवन जिए, इसके लिए सुमन भी पूरी तरह दृढ़ संकल्पित थी।

इसके बाद पूनम ने अपने व्हीलचेयर के व्हील्स को टेलीविजन की तरफ घुमाया और उसका साउंड कम कर दिया। उसने बड़े ही हल्के आवाज़ में कहा-” यहां खाने का क्या मतलब है, जब मैं और आप ही हैं और हम दोनों पहले ही खा चुके हैं?” इसी बीच पूनम का ध्यान टेलीविजन स्क्रीन पर चला गया। उस समय टेलीविजन पर एक डॉक्यूमेंट्री चल रही थी।

“रीढ़ की हड्डी टूट जाने का मतलब ये नहीं है कि पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो गई”, डॉक्टयूमेंट्री में व्हीलचेयर पर बैठे उस आदमी ने कहा। डॉक्यूमेंट्री में उस इंसान को सुनने के अलावा पूनम कुछ नहीं कर सकती थी। डॉक्यूमेंट्री की कहानी भी उसकी तरह ऐसे इंसान की थी, जिसने सड़क हादसे में अपने दोनों पैर गवां दिए थे और बिल्कुल एकांत जीवन जीने को विवश था।

“हादसे में अपने पैर गंवाने के बाद मैं सोचता था कि मेरी पूरी ज़िंदगी ही बर्बाद हो गई। तब एक दिन मेरी नज़र अपनी बीमार मां पर पड़ी। रोजाना मैं खुद को बेड़ से उठने के लिए इनकार कर देता। उधर, उसे देखकर उसकी बीमार मां भी सो नहीं पाती थी। जब मैं खाना खाने से मना कर देता, तो मां भी खाने को हाथ नहीं लगाती थी। ये सब कुछ उस समय तक यूं ही चलता रहा, जब तक उसकी अंतिम सांस रही। मैं अपनी मां को बचा नहीं सका, जो मैं कभी कर सकता था।

“इसके बाद मेरे व्यवहार में बदलाव आया। मैं उन बातों को दोहराता, जिसे कभी मेरी मां मुझसे कहा करती थी। “तुम अपनी ज़िंदगी में झुक सकते हो, लेकिन कभी हार मत मानना। इसी के साथ अब मेरी कहानी भी बदल गई है। मैं अब बिल्कुल स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी रहा हूं। दूसरे लोगों को भी ऐसी ही सीख देता हूं।”

डॉक्यूमेंट्री के उस इंसान की कहानी सुनकर पूनम की आंखे भर आईं। इसके बाद वह वहां से मुड़ी और सुमन की तरफ चल पड़ी। उसे इस बात का अहसास हो गया कि उसकी मां अपनी बेटी की खुशी के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी का बलिदान कर रही है। अब वह भी अपनी ज़िंदगी जीना चाहती थी। खुद के साथ-साथ अपनी मां के लिए भी।

पूनम अपनी मां को गले लगाते हुए बोल पड़ी- मैं झुक सकती हूं, लेकिन कभी हार नहीं मानूंगी। मैं अब बिल्कुल ठीक हूं मां…. अब हम दोनों ठीक से रहेंगे।

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।

A Soulful Shift

Your Soulveda favorites have found a new home!

Get 5% off on your first wellness purchase!

Use code: S5AVE

Visit Cycle.in

×