वह इतना भयभीत कभी नहीं हुआ था। पर्वत के उच्च शिखर (Mountain peak) की खड़ी चट्टान से नीचे झांकते हुए उसने सोचा कि अब वह पीछे नहीं हट सकता। पीछे हटने का कोई कारण भी न था। आखिरकार वह इतने महीनों से इसके बारे में विचार करता रहा था और इसकी योजना बनाता रहा था।
दो साल पहले लगभग 45 साल की उम्र में आर्थिक मंदी (Financial crisis) की वजह से उसकी बैंक की नौकरी छूट गई थी। उसके पास न तो नौकरी थी, ना परिवार और ना ही पैसा। तो फिर वह ज़िंदा भी रहे तो किसके लिए रहे? उसने अपनी नज़र नीचे गहरे कुंड में जमा रखी थी और खड़ी चट्टान के किनारे की ओर थोड़ा और आगे खिसका।
जैसे ही चट्टान से नीचे छलांग लगाने के लिए वह तेज़ी से आगे बढ़ा, तो ताज़ा हवा का झोंका उसके चेहरे से टकराया। उसने अपनी आंखें खोली और ऊपर की ओर देखा। सूर्यास्त (Sunset) होने जा रहा था। पूरे आकाश (Sky) में बैंगनी रंग की छटा फैली हुई थी।
सूर्यास्त का यह बहुत ही ज़्यादा सुंदर दृश्य था। उसने अपनी ज़िंदगी में ऐसा सुंदर सूर्यास्त होते हुए कभी न देखा था और न ही सुना था। उसने चारों ओर अपनी नज़र डाली। सब ओर रंगों की मनमोहक छटा बिखरी हुई थी। नीले, लाल, हरे और कुछ ऐसे रंगों की छटा जिन्हें वह पहचान भी नहीं पा रहा था। उसने अपनी मूर्खता पर ठहाका लगाया। प्रकृति की बहुत ही बड़ी कारीगरी उसके सामने थी- कलात्मक, विस्तृत और स्थिर। यहां ऐसे अनोखे रंग बिखरे हुए थे जिनके बारे में उसे कुछ भी मालूम नहीं था।
उसने अपने साफ-सुथरे हाथों को निहारा। दबी हुई हंसी हंसते हुए उसने अपने कॉलेज के उन दिनों को याद किया जो रंगों की बहुरंगी छटा से स्थाई रूप से रंगे रहते थे। अब वह उठ खड़ा हुआ। वह अपना निर्णय बदल चुका था। उसने वापस मुड़कर चट्टान से नीचे उतरने की लंबी यात्रा शुरू कर दी। वह वही पुरानी कॉलेज के दिनों वाली अपनी पसंदीदा धुन की सीटी बजा रहा था। उसने ज़िंदा रहने के लिए कुछ पा लिया था।