हार मत मानो

उठो, जागो और कभी हार मत मानो

आरव यह सोचकर परेशान था कि उसे कभी सक्सेस मिलेगी भी या नहीं, जो उनके मम्मी-पापा को इतनी सहज लगती है।

‘दैट्स इट। आई एम डन…’ यह कहते हुए आरव ने अपनी किताबें नीचे फेंक दी और नम आंखों से अपने मोबाइल की ओर देखने लगा। अपने दूसरे प्रयास के बावजूद इंट्रेंस एग्जाम में वह कुछ नंबरों से फेल हो गया। अपनी किस्मत को कोसते हुए वह खुद को अपने कमरे में कैद कर लिया।

वह सोचकर परेशान था कि वह कभी सक्सेस हो पाएगा भी या नहीं, जो उनके मम्मी-पापा को इतनी सहज लगती है। उनकी अपेक्षा के बोझ तले वह दबा जा रहा था।

मैं अपनी असफलता (Success) से अब हार गया हूं। मम्मी-पापा को मैं क्या जवाब दूंगा। हे! भगवान मेरे भविष्य का क्या होगा? आरव को ऐसा लगा जैसे दरवाज़े पर उनकी आहट सुनाई पड़ते ही उसका दिमाग फट जाएगा।

यह तो उसकी मां… तारा थी।

‘मुझे अकेला छोड़ दो मां’। मैं फेल हो गया हूं। ‘मैंने आपको दोबारा निराशा किया है’, आरव अंदर से चिल्लाया।

‘ऐसा न कहो बेटा। ये तो सफलता के लिए एक सबक है। तुम फिर से कोशिश कर सकते हो’, तारा ने उसे समझाने का प्रयास किया।

उधर, आरव ने कहा, ‘मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है। आपको कहना आसान लगता है। आपके और पापा के पास तो सब कुछ है। आप दोनों लोग कामयाब हैं। हर कोई आप लोगों को सम्मान देता है’।

‘ठीक है। तुम ऐसा बोल सकते हो, लेकिन ये सब एक रात में नहीं हुआ है। तुम्हारे पापा और मैंने ज़िंदगी में असफलता, निराशा का भाव और उदासी के पलों का बराबरी से सामना किया है’, तारा ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा। अब भी वो वक्त याद है, जब तुम्हारे पापा को नौकरी से निकाल दिया गया था।

‘क्या कहा, पापा को नौकरी से निकाल दिया गया था‘ आरव ने बीच में रोकते हुए बोल पड़ा।

यह बहुत पुरानी बात है बेटे। क्षमता से अधिक काम लेने की वजह से उन पर दबाव काफी बढ़ गया था। इसके चलते वे अक्सर काम में गलती करने लगे थे। अपनी डेडलाइन को मिस करने लगे थे। इस तरह एक दिन उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बावजूद तुम्हारे पापा ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी गलतियों से सीख ली और बाद में उन्हें दूसरी जॉब मिल गई। उन्होंने ज़िंदगी में एक के बाद एक आने वाली परेशानियों को अपने तरीके से हैंडल किया। इसके बाद आज लायक इंसान बन पाए हैं, वह बंद दरवाज़े से सटकर ये बातें कह रही थीं।

‘मैं कभी सोच भी नहीं सकता कि पापा भी गलती कर सकते हैं’, आरव बंद कमरे के भीतर से कुछ बुदबूदा रहा था।

‘कोई भी परफेक्ट नहीं होता है आरव’। अब तो दरवाज़ा खोलो। अब मैं यहां ज्यादा देर तक खड़ी नहीं रह सकती हूं, तारा ने मुस्कुराते हुए कहा।

आरव अपने बेड से उठा और दरवाज़ा खोलकर अपनी मां को गले से लगा लिया। गर्मजोशी से भरे गले ने तारा को उसके 4 साल के आरव की याद दिला दी।

‘अब मुझसे वादा करो, तुम अपने आप को इतनी बेरहम तरीके से दोबारा नहीं कोसोगे। अगर तुम फिर कभी खुद को कमरे में बंद कर लेते हो, तो अपने पापा की तरह परिस्थितियों से कैसे मुकाबला करोगे’, तारा ने आरव के सिर पर बड़े ही प्यार से लाड-दुलार किया

‘थैंक्स मां’ आरव ने आंसुओं की बहती धार के बीच प्यार भरे मुस्कान के साथ कहा।

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