खेल के मैदान में राधिका अकेली बैठी हुई थी। अचानक नए स्कूल में उसका क्लासमेट रमेश उसके पास आया और पूछने लगा, ‘‘अरे, वह क्या है?’। रमेश एक अजीब-सी छड़ी की ओर इशारा कर रहा था।
वह धीरे से बोली, “ यह बैसाखी है।” उसे उम्मीद थी कि रमेश अब उसे चिढ़ाएगा। लेकिन, पहली कक्षा के रमेश ने चहकते हुए कहा, “वाव, इट्स सो कूल, तुम सुपरहीरो लग रही हो”।
यही वह पल था, जब राधिका और रमेश के बीच एक खूबसूरत दोस्ती (Beautiful friendship) की शुरुआत हुई, जो कभी खत्म नहीं होने वाली थी।
इस पल से राधिका और रमेश के बीच एक खूबसूरत दोस्ती की शुरुआत हुई। यह मित्रता कभी भी उनका पीछा नहीं छोड़ने वाली थी।
रमेश बड़ा होकर एक बास्केटबॉल खिलाड़ी बन गया, जबकि राधिका ने साहित्य को चुना। हर शाम, बास्केटबॉल अभ्यास के बाद राधिका उसके साथ लाइब्रेरी में पढ़ने आ जाता था।
उस शाम भी रोजाना की तरह ही थी। राधिका लाइब्रेरी में रमेश का इंतजार कर रही थी। बस, उसके दिमाग में सैकड़ों विचार चल रहे थे। वह दिन में ही न जाने कितनी बार रमेश के सपने देखते हुए खुद को पकड़ चुकी थी। उसके शब्द, उसके हावभाव और उसकी मोहित कर लेने वाली मुस्कान उसकी स्मृति में अपनी छाप छोड़ चुकी थी। यह उसे बार-बार उसकी याद दिलाती थी।
लाइब्रेरी में रमेश के आते ही उसकी विचारों की श्रृंखला टूट गई। रमेश ने आते ही उसे आइस्ड लाटे (बर्फ वाली कॉफी) का कप पकड़ाते हुए कहा, ‘तो प्रॉम की डेट तय हो गई है, क्या तुम जानती हो?’।
एक पल के लिए राधिका के दिल ने मानो धड़कना छोड़ दिया हो। वह कई माह से रमेश को लेकर घबरा रही थी। वह इस बात को लेकर पशोपेश में थी कि क्या वह वाकई रमेश के लायक है? आखिरकार वह एक दिव्यांग जो थी। रमेश को उससे भी अच्छी साथी मिल सकती है। वह इसका हकदार भी है और एक वह थी, जो इस निराशा के बावजूद रमेश से बेइंतहा मोहब्बत करती थी।
राधिका ने जवाब दिया, ‘हां, मैंने सुना है..’। रमेश को चिढ़ाते हुए राधिका ने कहा, ‘तुम्हें तो सैकड़ों प्रस्ताव मिले होंगे..’। वह किसी तरह अपनी सहज भावनाओं को छुपाने की कोशिश कर रही थी।
रमेश हंसा, ‘अरे हां! देखते हैं। मुझे लगता है कि लगभग 8 या 9 तो मिल ही चुके हैं..’।
अब उसका दिल बैठ गया था। लेकिन, उसे हैरानी नहीं हुई। रमेश एक आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था और लड़कियों से हमेशा घिरा रहता था।
आंख मारते हुए रमेश ने राधिका से कहा, ‘तुम क्या सोच रही हो, राधिका? तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है? तुम जानती हो, मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं’।
अप्रसन्न दिखाई दे रही राधिका ने जवाब दिया, ‘तुम मुझे अच्छी तरह जानते हो रमेश’।
अपनी चाय पीते हुए राधिका ने सिर हिलाया, ‘तो, आखिर कौन है तुम्हारी प्रॉम डेट?
उसने बेफिक्र होकर जवाब दिया, ‘हां, है कोई मेरे दिमाग में’। बेचैन राधिका की भौंहें चढ़ने लगी थी।
रमेश ने अपनी बेताब हो रही आवाज़ को नियंत्रित करते हुए कहा, ‘चलो, तुम तुम्हारी चाय जल्द खत्म करो। कर लोगी न? हमें अब पढ़ाई शुरू करनी है।
राधिका हैरान थी कि आखिर यह अचानक इतना बेसब्र क्यों हो गया है।
चाय की अंतिम घूंट गले के नीचे उतारते ही राधिका को अपने सवाल का जवाब मिल गया। कप के नीचे में उसके लिए एक संदेश था। ‘तुम अब भी मेरी सुपरहीरो हो। क्या प्रॉम नाइट में तुम मेरी साथी बनोगी?’।
पहले से ही शांत लाइब्रेरी में अब और भी गहरा सन्नाटा छा गया था।
राधिका के दिल की धड़कन घोड़े से भी तेज़ दौड़ रही थी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी।
अपने चेहरे पर एक बच्चे जैसी मासूम मुस्कुराहट लाते हुए राधिका ने जवाब दिया, ‘हां!’।