उसका नाम कोयल था, पर दिखने में बिल्कुल हंसिनी जैसी थी, उसका खूबसूरत चेहरा जिससे मासूमियत टपकती थी। कमर तक आते लंबे बाल जो हमेशा हवा में झुलते रहते थे।
वो हमारे नये किरायेदार की बेटी थी। मैंने जिस दिन उसे पहली बार देखा, उसी दिन से उसके प्यार में डूब गया था। मैं कमरे में सामान शिफ्ट करवाने में मदद करवा रहा था और वो नादान-सी हाथ में मिक्सर लिए हुए खड़ी थी। वही वक़्त था, जब पहली बार हम दोनों की नज़रें टकराई थीं।
इसके बाद, वो कभी छत पर बाल सुखा रही होती या कॉलेज जा रही होती, मेरी नज़रें उससे जा टकरातीं और वो घबरा कर नज़रें झुका लेती।
एक दिन कोयल की मम्मी ने मुझे अपने घर बुलाया और मुझसे कोयल को ट्यूशन पढ़ाने के लिए कहा। मेरा कॉलेज पूरा हो चुका था और मैं नौकरी ढूंढ रहा था और फिलहाल फ्री ही रहता था, इसलिए मैंने हां कह दिया। पर उसी वक़्त कोयल स्कूल से वापस आ गई। उसकी मां ने उससे कहा, “कल से ये तुझे ट्यूशन पढ़ाया करेंगे। ठीक है?”
उनकी बात सुनकर कोयल ने एक नज़र मेरी तरफ देखा और गर्दन हिला कर इनकार करते हुए, कमरे में चली गई।
कोयल के ऐसे बर्ताव से मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और मैं वहां से चला आया। मैं कोयल से प्यार करता था, भले ही ये बात अभी तक उसको नहीं बता पाया था, मगर नज़रें मिलने से हल्का-सा ही सही, पर उसने मेरी आंखों में अपने लिए प्यार देखा होगा। उसका इस तरह ट्यूशन के लिए इनकार कर देना मुझे मेरे प्यार के लिए इनकार कर देना लग रहा था। दूसरी तरफ मैं यह भी सोच रहा था कि कोयल कितनी घमंडी लड़की है। मुझसे ट्यूशन नहीं पढ़ना था, ना पढ़ती। पर अपनी मां के सामने ऐसे मुंह पर मेरी बेइज्ज़ती तो ना करती।
मगर कोयल का खुमार इस कदर मेरे ऊपर था कि मैं उसके बारे में सोचना छोड़ नहीं पा रहा था। उसी शाम जब वो छत पर टहल रही थी, तो मैंने मौका देख कर उससे अपने दिल का हाल कह दिया। मेरी बात सुनकर वो बिना कुछ कहे ही तुरंत वहां से चली गई। तब मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया। इतना गुस्सा कि गुस्से में मैंने अपनी मां को उसका ट्युशन के लिए इनकार करने वाली बात बता दी और कहा, “समझती क्या है वो लड़की खुद को? मेरी ऐसे बेइज्ज़ती करेगी और मैं चुप रहूंगा?” इसपर मां ने कहा, “अरे चुप हो जा।…मुझे पता है उसने क्यों मना किया। और करती भी क्या बेचारी!”
“बेचारी?” मैंने पूछा तो मां ने कहा, “हां बेचारी! भगवान ने उसके साथ इतनी नाइंसाफी की है कि कुछ पूछो ही मत…बेचारी की बचपन में ही आवाज़ छीन ली। आई थी वो और उसकी मां, तुझसे माफी मांगने, पर तू घर पर नहीं था। कह रही थी कि वो नहीं चाहती कोई ये जाने की वो बोल नहीं सकती क्योंकि लोग उसका मज़ाक बनाते हैं।”
मां की बात सुनकर मुझे बड़ा दुख हुआ। अगले दिन जब वो कॉलेज जा रही थी, तब मैंने उससे बात करने की कोशिश की, पर वो नहीं रुकी। पर जल्दी-जल्दी में अपने बैग से निकाल कर एक कागज़ का टुकड़ा ज़मीन पर फेंक गई।
मैंने उस कागज़ को खोलकर देखा, उसमें लिखा था – “मैं भी तुम्हें पसंद करती हूं…पर मैं बोल नहीं सकती, और अगर तुम अब भी मुझे पसंद करते हो तो, आज शाम मुझे ट्यूशन पढ़ाने आ जाना।” कुछ इस तरह से हमारे प्यार की शुरुआत हुई।