यहां तक की अभिनव ने पलकें भी नहीं झपकाई। वह तो बस उसकी बड़ी खूबसूरत आंखों (Beautiful Eyes) में ही देखता रहा। ऐसा पहली बार नहीं था कि वह उसे इतनी चाहत और बेचैनी के साथ निहार रहा था। 8 वर्ष गुज़र चुके थे और अभिनव की हसरत भरी नज़रें अनन्या के चेहरे से हटी नहीं थी। केवल इस बार अनन्या कहीं दूर देख रही थी। ‘‘मुझ पर अपना समय बर्बाद न करो,’’ उसने विनती की।
ऐसा लग रहा था कि उनका रिश्ता खत्म होने वाला था। अनन्या और अभिनव शादी की तैयारी कर चुके थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। अनन्या को कैंसर हो गया था। ऐसे में दुल्हन बनने का सपना भी टूट रहा था।
लेकिन अभिनव हार मानने के लिए तैयार नहीं था। वह उसके दर्द को साझा करना चाहता था और उसे सहारा देना चाहता था, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उनके भाग्य में एक-दूसरे का कितना साथ लिखा है। लेकिन अनन्या उसे एक बेहतर जीवन के लिए प्रेरित कर रही थी।
अभिनव ने अनन्या की आंखों में देखा, ‘‘किसने कहा कि मैं समय बर्बाद कर रहा था? तुम अंत समय तक ‘सिर्फ मेरी’ ही हो और मेरी ही रहोगी।’’ अनन्या उसकी ओर पलटी। आंसुओं से भरी आंखों से उसने अभिनव को देखा। लेकिन अबकी बार वह अपनी नज़रें दूसरी ओर नहीं फेर सकी। आंसू उसके चेहरे पर लुढ़क आए, क्योंकि अब उसकी आंखें आखिरकार अभिनव की नज़रों से मिल गई थी।