अपने माता-पिता की इकलौती संतान किरण ने वकील बनने के अपने सपने को पीछे छोड़ते हुए महज 21 साल की उम्र में शादी कर ली थी। उसने अपने पति महेश के साथ एक खुशहाल जीवन के सपने संजोए थे। लेकिन दुर्भाग्य से उसका यह रिश्ता किसी बुरे सपने से कम नहीं था।
हर शाम काम से घर लौटने के बाद महेश खूब शराब पीता और हंगामा करता था। एक रात जब किरण ने महेश को डिनर परोसा, तो महेश जो पहले ही व्हिस्की की आधी बोतल खत्म कर चुका था, इतना भड़क गया कि उसने खाने की प्लेट हवा में फेंकते हुए उसे धक्का दे दिया। फिर वह नशे में धुत होकर चिल्लाया, ‘यू आर वर्थलेस! तुम अच्छा खाना तक नहीं बना सकतीं’। यह सब देखकर अंदर तक हिल गई किरण ने महसूस किया कि वह अब इस यातना को और सहन नहीं कर सकती। उस रात जब महेश शराब पीकर बेहोश हो गया, तो किरण हिम्मत जुटाकर वहां से भाग गई।
वह अपने परिवार के पास वापस चली गई, जहां उसका भाई अंकित और उसकी पत्नी श्वेता रहते थे। हालांकि किरण ने उन्हें अपनी वापसी के बारे में सूचित कर दिया था, लेकिन वे उसे देखकर बहुत खुश नहीं थे। उसने अपना बैग लिया और अपने उस कमरे में चली गई जहां शादी से पहले उसने अपनी ज़िंदगी गुजारी थी। अपने कमरे में सब कुछ बदला हुआ देखकर उसे बहुत हैरानी हुई। यहां उसे सब कुछ अपरिचित लग रहा था। उसके खिलौनों और किताबों वाली अलमारी को हटा दिया गया था। यहां तक कि उसका बिस्तर भी अब वहां नहीं था। यह सब देखकर किरण रोने लगी और भागते हुए अपने पिता के कमरे में चली गई, जिनका कुछ साल पहले निधन हो गया था। वहां अलमारी के नीचे की शेल्फ में अपने सभी सामानों को देखकर उसने उस अलमारी को खोला।
वहां उसे एक डायरी मिली। उसने जब उसके पन्ने पलटे तो वे उसके पिता की लिखावट से भरे पड़े थे। इसी डायरी में उसे एक पिता का पत्र (Letter) मिला, जो उसके पिता ने अपने निधन से महज एक दिन पहले लिखा था। फिर उसने पिता का पत्र पढ़ा।
‘प्रिय किरण,
मुझे उम्मीद है कि तुम ठीक हो। पिछली बार जब मैंने तुम्हें देखा था, तो मुझे लगा था कि तुम खुश नहीं हो। हालांकि, तुमने अपनी झूठी मुस्कान के साथ अपने दुख को छिपाने की कोशिश की थी, लेकिन मुझे तुम्हारा दर्द साफ दिखाई दे रहा था। मैंने तुम्हें कुछ नहीं कहा, लेकिन इस बात से खुद को तसल्ली दी कि मेरी छोटी-सी बच्ची अब बड़ी हो गई है और बहुत मजबूत है। किरण, मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि मुझे तुम पर बहुत गर्व है। लेकिन हमेशा याद रखना कि दूसरों को खुश करने के लिए तुम्हें अपनी खुशी का त्याग करने की ज़रूरत नहीं है। मुझे जीवन में बस इस बात का अफसोस है कि तुमने अपने वकील बनने के सपने को पूरा नहीं किया। अभी भी देर नहीं हुई है मेरी बच्ची। मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम अभी भी इसे पूरा कर सकती हो।
मैं उम्मीद करता हूं कि जल्द ही तुमसे फिर मुलाकात होगी। मेरी प्यारी बच्ची सदा खुश रहो और अपने परिवार का ख्याल रखो।
तुम्हारे पापा’
किरण अपने पिता का पत्र पढ़कर स्तब्ध थी। उसे लगा कि जैसे उसके पिता उसके बगल में बैठकर ये शब्द उससे कह रहे हैं। उसके आंसू दृढ़ संकल्प में बदल गए। उसने दीवार पर अपने पापा की तस्वीर को देखा और कहा, ‘धन्यवाद, पापा। मैं आपको कभी निराश नहीं करूंगी।’
तब से 10 साल बीत चुके हैं। आज किरण एक सफल वकील है। उसका एक बड़ा ऑफिस है, जहां वह प्रतिदिन कई क्लाइंट्स के साथ डील करती है। हर सुबह काम शुरू करने से पहले वह डायरी निकालकर पिता का पत्र पढ़ती है, जिसने उसकी ज़िंदगी बदल दी।