मेरी मां भुलक्कड़ है

मेरी मां भुलक्कड़ है

सोनम को गोद लेने के बाद गीता और महेश ने अपने बच्चों और उसमें कोई भेदभाव नहीं किया था। फिर ऐसा क्या हुआ कि सोनम के मन में पराएपन का भूत हावी होने लगा…

“अरे बेटा! थोड़ा आराम से चल, बच्चे को मैराथॉन में दाखिल नहीं कराना है।” गीता अपनी गर्भवती बेटी सोनम को टोकते हुए बोली। “हां मां, ऑफिस के लिए लेट हो रही हूं।” कहते हुए सोनम निकल गई। गीता और महेश ने सोनम को गोद लिया था। गीता एक टीचर थी। लगभग 20 साल पहले सड़क पर एक 5-6 साल की लड़की को भटकते हुए गीता ने देखा। उसने उस बच्ची से उसके मां-बाप के बारे में पूछा, तो वह कुछ बता न सकी। पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद गीता उस बच्ची को अपने घर ले आई। लगभग 6 महीने तक इंतजार करने के बाद भी पुलिस उसके मां-बाप को न ढूंढ सकी। जिसके बाद गीता और महेश ने सभी प्रक्रियाओं को पूरा कर उसे गोद ले लिया।

सोनम के बाद गीता और महेश को दो बच्चे और हुए; रोहित और अर्चना। गीता और महेश ने कभी भी सोनम और अपने दोनों बच्चों में भेदभाव नहीं किया। वे तीनों बच्चों को एक जैसा ही प्यार-दुलार देते थे। समय आने पर सभी बच्चों को ये बात भी बता दी गई कि सोनम गोद ली हुई बेटी है। लेकिन इस बात से रोहित और अर्चना को बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ा, बल्कि वे सोनम को और ज्यादा सम्मान देने लगे। सोनम ने ग्रेजुएशन के बाद एमबीए किया और एक बड़ी कंपनी में एचआर की नौकरी करने लगी।

सोनम को विशाल से प्यार था, इस बात को जब उसने अपने मां-बाप को बताया तो, उन्होंने खुशी-खुशी सोनम की शादी करा दी। विशाल पेशे से इंजीनियर था, तो उसे काम के सिलसिले में कहीं भी जाना पड़ता था। इसलिए शादी के बाद भी सोनम अपने परिवार के साथ ही रहती थी। शादी के एक साल बाद ही वह गर्भवती हो गई। इसी बीच विशाल को एक साल के लिए न्यूयॉर्क जाना पड़ा। सोनम को किसी बात की चिंता नहीं थी, पूरा परिवार उसका ध्यान रखता था।

एक दिन अर्चना, सोनम के पास आकर कहने लगी, “दीदी! आज मैं बहुत खुश हूं। मैं इंजीनियरिंग करने के लिए हॉवर्ड यूनिवर्सिटी जा रही हूं।” सोनम ये बात सुनकर खुश तो हुई, लेकिन अचानक से उसके अतीत ने उसे कचोटना शुरू कर दिया। वह मन में ही सोचने लगी कि “मेरा भी तो मन था, विदेश जा कर पढ़ने का। लेकिन उस वक्त मां-पापा ने मना कर दिया। आखिर अपना खून है, तो जाने ही देंगे न।” सोनम को अचानक से परायापन महसूस होने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। जिस वक्त गीता और महेश ने सोनम को मना किया था, उस वक्त उनकी आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं थी। लेकिन इस बात को सोनम समझ ही नहीं पाई।

सोनम ने अगले दिन मां से बेरुखी से कहा कि, “विशाल आ रहे हैं मुझे लेने। अब मैं उनके ही साथ जा कर रहूंगी।” गीता को ये बात कुछ समझ में नहीं आई। वह जब तक सोनम से इसका मतलब पूछती तब तक वह ऑफिस के लिए जा चुकी थी। सोनम अपने ऑफिस पहुंची ही थी कि सीढ़ियों पर चढ़ते समय उसका पैर डगमगा गया और वह पेट के बल गिर पड़ी। सोनम की आंखें हॉस्पिटल के बेड पर खुलीं। उसने अपने पेट पर हाथ फेरा, तो आंखों से आंसू आ गए। उसे अपने बच्चे की चिंता हुई। दरवाजे पर देखा तो शीशे के उस तरफ मां और विशाल का चेहरा दिखाई दे रहा था।

“बधाई हो! आपको प्यारी सी बेटी हुई है।” नर्स ने बच्ची को सोनम के पास रखते हुए कहा। अपनी बच्ची को देख कर सोनम की जान में जान आई। डॉक्टर ने कहा, “अगर आपकी मां ने हमें आपकी हेल्थ कंडीशन के बारे में नहीं बताया होता तो पता नहीं क्या होता। वक्त रहते आपकी और आपके बच्चे की जान बच गई। बच्चे पैदा करते समय जो समस्या आपकी मां को हुई थी। वही प्रॉब्लम आपको भी होनी थी। ये एक प्रकार की आनुवंशिक समस्या है।” डॉक्टर की बात सुन कर सोनम अवाक रह गई। वह सोचने लगी कि “मैं तो गोद ली हुई बेटी हूं, तो मां को कैसे पता कि मेरी हेल्थ कंडीशन क्या है? शायद मां को याद ही नहीं रहा कि मैं उनकी गोद ली हुई अनोखी बेटी हूं। मेरी मां भुलक्कड़ है।” इसके बाद से सोनम ने कभी भी खुद पर परायेपन का भूत हावी नहीं होने दिया।

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