मां के प्यार की गर्माहट

मां का प्यार ही कुछ ऐसा है…

आदित्य ने बैग से शॉल निकाला और वह कुछ सोचने लगा। वो सोच रहा था कि पिछली रात जब वह बिस्तर पर जाने से पहले अपना बैग पैक कर रहा था, तो उसकी मां कैसे अपना शॉल लाई थी और उसे बैग में रखने के लिए कह रही थी। कैसे उसने कहा था, "अगर बारिश हुई तो बहुत ठंड लगेगी।"

करीब एक घंटे से अधिक समय से ट्रेन एक छोटे स्टेशन पर खड़ी थी। ट्रेन में बैठे-बैठे आदित्य का धैर्य जवाब दे रहा था। आजिज होकर वह अपनी सीट से उठ खड़ा हो गया। वह पता लगाना चाहता था कि आखिरकार, ट्रेन इतनी देर से एक ही जगह पर क्यों खड़ी है? वह अपनी सीट से उठकर गेट के पास गया। उसने बाहर देखा कि यहां तो बारिश हो रही है।

फिर, आदित्य वापस अपनी सीट पर जाकर बैठ गया और अपने सिर के नीचे बैग रखकर लेट गया। काफी देर बाद उसे धीरे-धीरे नींद लगने लगी थी। अचानक एक महिला ने उसकी बाजू को हिलाते हुए उसकी नींद उड़ा दी। वह उठकर बैठ गया। इसी बीच उसकी नज़र एक अधेड़ उम्र की महिला पर गई, वो मैले-कुचले और गंदे कपड़े पहने हुई थी और अपने हाथ में अपना हैंडबैग पकड़ी हुई थी। ट्रेन स्टेशन से बाहर निकल चुकी थी और अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। नींद में आदित्य को इस बात की तनिक भनक भी नहीं लगी कि कब उसका हैंडबैग उसके सिर के नीचे से फिसल कर नीचे फर्श पर गिर गया था।

आदित्य ने फटाक से अपना बैग उस महिला के हाथ से ले लिया और चेक करने लगा कि कहीं उसका पर्स और अन्य सामान गायब तो नहीं है। ज्यों ही उसने अपना बैग खोला तो अंदर अपनी मां का शॉल देखकर आश्चर्यचकित रह गया। बैग में सारे सामान व्यवस्थित तरीके से रखे हुए थे। आदित्य ने बैग से शॉल निकाला और वह सोचने लगा। वह सोचने लगा कि पिछली रात जब वह बिस्तर पर जाने से पहले अपना बैग पैक कर रहा था, तो उसकी मां कैसे अपना शॉल लाई थी और उसे बैग में रखने के लिए कह रही थी। कैसे उसने कहा था,  “अगर बारिश हुई तो बहुत ठंड लगेगी।”

उसे अच्छी तरह मालूम है कि कैसे वो मां पर नाराज हुआ था और गुस्से में शॉल को बैग से बाहर निकालकर रख दिया था। मगर, यह शॉल अभी भी उसके साथ था। वह मन ही मन सोचने लगा, “शायद मां ने मेरे सो जाने के बाद इसे वापस रख दिया होगा।”

कुछ वक्त बाद जब आदित्य पानी लेने उठा, तो उसने देखा कि उसका शरीर तो बुखार से गर्म हो रखा है। खुद को असहाय महसूस करते हुए उसने तुरंत अपनी मां को कॉल किया और बोला, “मां, कल रात तुम मुझे कुछ मेडिसिन का पैकेट देना चाह रही थी…”

इससे पहले कि आदित्य अपनी बात पूरी कर पाता, उधर से उसकी मां बोल पड़ी, “बेटा, तुम्हारे सिर में दर्द है क्या?

आदित्य कतई जाहिर नहीं करना चाहता था कि उसके बुखार के बारे में जानकार उसकी मां बेवजह परेशान हो। इसलिए उसने कह दिया, हां मां…।

उसकी मां बोली, ” मैंने तुम्हारे हैंडबैग की सामने वाली जेब में दवा का पैकेट रखा है। तुम उसमें से निकालकर सिरदर्द की एक गोली ले लो। और हां, मैंने पैकेट में बुखार की दवा भी रख दी है, शायद। कुछ खा लो। सुनो, मैंने तुम्हारे बैग में एक सैंडविच पैकेट भी रख दिया है।”

आदित्य कुछ घंटे बाद सोकर उठा, तो पहले से काफी बेहतर महसूस कर रहा था। जैसे ही वह अपने पैर फैलाने के लिए उठा, तो उसकी नजर गलियारे के पास बैठी एक महिला पर पड़ी। उसने अपने बच्चे को गोद में ले रखा था। खिड़की से ठंडी हवाएं आ रही थीं। उसके शरीर पर पड़े फटे-पुराने कपड़े इस ठंड से बचाने के लिए नाकाफी थे। आदित्य ने गौर से देखा, तो पाया कि अरे! ये तो वही महिला है, जिसने उसे पहले जगाया था और उसका बैग लौटाया था।

बिना सोचे-समझे आदित्य ने बैग से अपनी मां का शॉल बाहर निकाला और ठंड से कांप से बच्चे को ओढ़ा दिया।

उसने देखा कि बच्चा कैसे अब सुकून से सो गया है। आदित्य सोचने लगा, “वह एक नहीं, बल्कि दो माताओं के प्यार और स्नेह की चादर से लिपटा हुआ था। मां के प्यार की तपिश ही कुछ ऐसी है।“

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