शिवानी को घर में आए कुछ समय ही गुज़रा था कि मां ने ऋचा की शिकायत करनी शुरू कर दी। “अपनी बहन को तो देखो। उसने शादी की पार्टी में जींस और शर्ट पहना था। शादी समारोह में जींस!
शिवानी ने अफसोस भरे लहज़े में पूछा कि “और क्या-क्या कर डाला उसने?”
उसकी मां की भोहें चढ़ी हुई थीं। वो गुस्से में लाल थी, कुछ इसी अंदाज़ भड़कते हुए कहा, “पता नहीं ये और क्या-क्या करेगी? तुम बच्चे हमारी प्रथा, हमारी संस्कृति और परंपराओं को कभी सच्चा सम्मान नहीं दोगे। मुझे अपनी बहनों की ओर से कभी आदर-सत्कार नहीं मिलेगा। वे हमेशा मुझे ताने मारती रहती हैं कि मैं तुम दोनों का पालन-पोषण करने में किस तरह से फेल हो गई हूं?”
मां… आपको नहीं लगता कि इस बारे में बात करें तो अच्छा रहेगा… शिवानी बोली। मैं बहुत थक गई हूं। यह कहते हुए तेज़ी से अपने कमरे की ओर चली गई। उसने अपने कमरे के दरवाज़े को धकेल कर खोलने की कोशिश की। अंदर ऋचा थी, उसने कमरे का दरवाज़ा बंद किया हुआ था। शिवानी ने एक खास अंदाज़ में दरवाज़ा खटखटाया। उन दोनों के बीच में यह दरवाज़ा खुलवाने का एक सीक्रेट था। चटकनी खुलने की आवाज़ के साथ ही दरवाज़ा खुला और उसकी बहन ने उसे अंदर आने दिया।
अंदर घुसने के बाद दरवाज़ा बंद करते हुए शिवानी ने उसे चिढ़ाते हुए पूछा, “रूठी हुई हो? गुस्सा हो?”
उसके सवाल के जवाब में ऋचा ने अपना चेहरा तकिए से छिपाते हुए बिस्तर की ओर मुंह फेर लिया। मानो इस सवाल का जवाब ही ना देना चाहती हो।
शिवानी ऋचा के पास ही बिस्तर पर लेट गई और लंबी सांस लेते हुए उसने पूछा, “क्या तुम बाहर जाकर कुछ खाना चाहती हो? तुम मेरे फोन पर रजत की कॉल्स ब्लॉक करने के बारे में मुझे सब कुछ बता सकती हो।”
ऋचा ने तकिए के नीचे से ही झांका और कहा, “आप ही ने तो बताया था कि आपने रजत से कहा था कि आपको अकेला छोड़ दे। वह फिर भी आपको तंग कर रहा है और आपने मुझसे कहा था कि आपको कॉल्स ब्लॉक करनी नहीं आती हैं। तो मैंने आपके लिए उसकी कॉल्स ब्लॉक कर दी।”
“मैंने यह तो नहीं कहा कि मैं नाराज़ हूं। थैंक्स।”
ऋचा को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ और उसके मुंह से ओह निकल गया।
शिवानी बिस्तर से उठी। अपने हैंडबैग में हाथ डालकर खोजा… मानो छूकर किसी खास सामान को निकालना चाहती हो। यह लाल रंग का एक खूबसूरत ब्रेसलेट था। इसके बीचों-बीच एक मोती जड़ा हुआ था। देखने में ये राखी यानी रक्षा सूत्र (Raksha sutra) लग रहा था। उसे निकाल कर अपनी बहन से कहा “मेरे पास तेरे लिए कुछ खास है।”
यह सुनते ही ऋचा उत्सुकता से भर आई, रक्षा सूत्र को देखने के लिए तकिए के नीचे से फिर झांका। लेकिन राखी देखकर उसने अपनी भोहें चढ़ा ली। “क्या आपने मां के शब्दों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया, मैं कोई लड़का थोड़ी ही हूं?”
“नहीं! तुम लड़का तो नहीं हो लेकिन तुम मेरी रक्षक तो हो ना,” शिवानी ने प्यार से कहा।
ऋचा ने उसकी यह बात सुनकर मुस्कुरा दिया। तकिए के नीचे से सिर को निकाला और रक्षा सूत्र पहनने के लिए उसने अपनी कलाई शिवानी की तरफ बढ़ा दी।