विश्व महासागर दिवस

सांस लेने के लिए लगभग आधा ऑक्सीजन हमें समंदर देता है

हमने अब तक सीखा और पढ़ा है कि पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं। हालांकि, हमें ये जानकर हैरानी होगी कि पेड़ और वनस्पतियों से ज़्यादा ऑक्सीजन हमें खुले आसमान के नीचे बहते नीले पानी यानी समुद्र से मिलती है।

हम सब पृथ्वी पर रहते हैं, जिसका 70.8% भाग समुद्र और पानी से भरा हुआ है, बाकी के बचे हुए हिस्से में धरती है। पृथ्वी पर समुद्र जितने बड़े पैमाने पर फैले हुए हैं, इस बात से यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि समुद्री दुनिया, भू भाग वाली दुनिया से कितनी ज़्यादा बड़ी और विशाल है। समुद्रों में लाखों प्रजातियों के जलीय-जीव रहते हैं, और बहुत से पेड़-पौधे और कवक (Fungus) भी पानी में ही पनपते हैं। क्या आप जानते हैं, समुद्र की ये इतनी बड़ी दुनिया हमारे वातावरण से ऑक्सीजन लेती नहीं, बल्कि हमें ऑक्सीजन देती है?

जी हां! समुद्र से हमें बहुत सारी ऑक्सीजन मिलती है। तो चलिए इस विश्व महासागर दिवस पर जानते हैं कि समुद्र हमें ऑक्सीजन कहां से लाकर देते हैं।

हिन्द महासागर की विशाल दुनिया (Hind Mahasagar ki vishal duniya)

भारतीय महासागर या हिन्द महासागर पूरे विश्व में एकमात्र ऐसा समुद्र है जिसका नाम किसी देश के नाम पर है। ये महासागर, प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर के बाद, विश्व का तीसरा सबसे बड़ा सागर है और ये खुद में पृथ्वी पर मौजूद पानी का‌ लगभग 20% भाग खुद में समेटे हुए है। इसकी आकृति अंग्रेजी एल्फाबेट एम के जैसी है। पश्चिम की ओर, ये महासागर अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर केप अगुलहास में अटलांटिक महासागर से जाकर मिलता है। हिंद महासागर कई लुप्त होती समुद्री प्रजातियों जैसे कछुए, सील और डुगोंग या समुद्री गाय का घर भी है। जब हंपबैक व्हेल सर्दियों में ठंडे से गर्म पानी की ओर यात्रा करती हैं, तो 7,000 से अधिक हंपबैक व्हेल प्रजनन और बच्चे पैदा करने के लिए हिन्द महासागर के मेडागास्कर क्षेत्र के आसपास के पानी में चली जाती हैं। हिंद महासागर में पाया जाने वाला सबसे खास खनिज संसाधन ‘पेट्रोलियम’ है। हिन्द महासागर में बहुत सी जीव-प्रजातियां निवास करती हैं, पर इसके भारतीय क्षेत्र में मानव निर्मित प्रदूषण होने की वजह से समुद्री जीवन को बहुत से नुकसान हो सकते हैं। लोग समुद्रों के किनारे पिकनिक मनाने आते हैं, लेकिन गंदगी करते वक्त, उन्हें समुद्री जीवों के स्वस्थता का ध्यान नहीं रहता। बाहर से आया प्रदूषण समुद्र के ऑक्सीजन को कम कर सकता है।

अंटार्कटिक द्वीप और आर्कटिक महासागर की खासियत (Antarctica Dweep aur Arctic Mahasagar ki khasiyat)

चलिए विश्व महासागर दिवस पर आर्कटिक और अंटार्कटिक के बीच की खासियत और अंतर जानते हैं। अंटार्कटिक और आर्कटिक सुनने में भले ही एक जैसे लगते हो, पर इनके बीच लगभग 12,500 मील की दूरी है, जिससे ये दुनिया के दो छोर‌ बन जाते हैं। हालांकि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर, ये दोनों एक दूसरे से मिलते-जुलते से नज़र आते हैं। पर आर्कटिक एक जमा हुआ सागर है, जो चारों ओर से छः देशों की भू-भाग से घिरा हुआ है। आर्कटिक महासागर की सीमिएं, कनाडा, यूएसए, डेनमार्कय या ग्रीनलैंड, रूस, नॉर्वे और आइसलैंड तक फैली हुई हैं।

अब अंटार्कटिक महाद्वीप की बात करें, तो यह एक महाद्वीप है, जो दक्षिणी गोलार्ध में स्थित एक भू-भाग है और इसका 98 प्रतिशत हिस्सा बर्फ की परत से ढका हुआ है। यहां अधिकतम 16,000 फीट से ज़्यादा ऊंचाई वाले पहाड़ हैं, और यह जगह चारों ओर से महासागरों से घिरी हुई है। यह भी जानना ज़रूरी है कि अंटार्कटिका किसी भी देश का हिस्सा नहीं है।

क्यों मनाते हैं विश्व महासागर दिवस? (Kyun manate hain Vishv Mahasagar Divas?)

विश्व महासागर दिवस हर साल 8 जून को मनाया जाता है। महासागर जैव विविधता से भरे हुए हैं, और ये पारिस्थितिक तंत्र को नियंत्रित करते हैं। महासागर में अलग-अलग तरह के जीव मौजूद हैं, जिनमें से कुछ ऑक्सीजन के मुख्य स्रोत भी हैं। विश्व महासागर दिवस को मनाने का खास मकसद, महासागरों को बचाना, जैव विविधता को बनाए रखना और महासागर से मिलने वाले संसाधनों की कमी होने को रोकना है। महासागरों से केवल जल की पूर्ति नहीं होती, बल्कि पर्यावरण के संतुलन की देखभाल भी होती है, और इकोसिस्टम भी मजबूत रहता है।

समुद्रों से मिलता है हमें ऑक्सीजन (Samundro se milta hai humein oxygen)

हमने अब तक सीखा और पढ़ा है कि पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं। हालांकि, हमें ये जानकर हैरानी होगी कि पेड़ और वनस्पतियों से ज़्यादा ऑक्सीजन हमें खुले आसमान के नीचे बहते नीले पानी यानी समुद्र से मिलती है। बहते हुए पौधे, शैवाल और कुछ बैक्टीरिया जो प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कर सकते हैं। एक विशेष प्रजाति, प्रोक्लोरोकोकस, पृथ्वी पर सबसे छोटा प्रकाश संश्लेषक जीव है। लेकिन यह छोटा बैक्टीरिया हमारे पूरे जीवमंडल में 20% तक ऑक्सीजन पैदा करता है। साइनोबैक्टीरिया भी ऑक्सीजन बनाते हैं। सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा का उपयोग करके, वे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को शर्करा और ऑक्सीजन में बदल देते हैं। वे शर्करा (Glucose) का उपयोग भोजन के लिए करते हैं, और बाकी ऑक्सीजन वायुमंडल में छोड़ देते है। इस तरह महासागरों ने धीरे-धीरे हमारे वायुमंडल में ऑक्सीजन का निर्माण किया, और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम कर दिया। यह प्रक्रिया अब भी जारी है, तभी तो हमें लगभग आधा से ज़्यादा ऑक्सीजन समुद्र से मिलता है। लेकिन, पेड़ों के बिना ऑक्सीजन की पूर्ति हो पाना फिर भी मुश्किल है, क्योंकि समुद्र केवल वही तक ऑक्सीजन पैदा कर पाते हैं, जहां तक सूरज की रोशनी प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम होती है।

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