रक्षाबंधन: रेशम की डोर से बंधे रिश्ते का सफर, बचपन से अब तक

अक्सर जिसकी हरकतों पर बहनों को गुस्सा आता है, और जिसको तंग करने में भाई को बहुत मजा आता है, इन प्यारी सी नोंक-झोंक पर जिनका रिश्ता बना है, उन भाई-बहनों के इस अटूट रिश्ते का जश्न मनाने के लिए रक्षाबंधन मनाया जाता है।

रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है, जो हिन्दुओं का मुख्य त्योहार होने के साथ-साथ पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। जाति-धर्म की दीवारों से ऊंचा उठकर हर वर्ग के लोग भाई-बहन के दिन को मनाते हैं। अक्सर जिनकी हरकतों पर बहनों को गुस्सा आता है, और जिनको तंग करने में भाई को बहुत मज़ा आता है, इन प्यारी सी नोंक-झोंक पर जिनका रिश्ता बना है, उन भाई-बहनों के इस अटूट रिश्ते का जश्न मनाने के लिए रक्षाबंधन मनाया जाता है।

भाई-बहन का यह प्यार राखी के एक नाज़ुक से धागे पर टिका होता है। बहन भाई की कलाई पर एक रेशमी डोर बांध कर, उससे सिर्फ अपनी रक्षा करने का वचन नहीं लेती, बल्कि यह भी वादा लेती है कि चाहे जो भी हो हमारा यह प्यार ऐसे ही बना रहेगा। हम साथ खेलेंगे, बड़े होंगे और थोड़े दूर भी हो जाएंगे, पर हमारे दिल में दूरियां कभी नहीं आएंगी, हम एक-दूसरे का हर कदम पर साथ देंगे।

भाई-बहन की दोस्ती में एक-दूसरे का व्यक्तित्व निखारने की शक्ति होती है। उनकी नोंक-झोंक में गहरा अपनापन छिपा होता है, तो बस रिश्ते की इसी मजबूती को बढ़ाने के लिए हर साल बहनें भाई को राखी बांधती है और अपने रिश्तों को एक साल और मजबूत कर लेती हैं। आइए जानते हैं इस दिन के बारे में थोड़ी और गहराई से।

कब है रक्षाबंधन? (Kab hai Rakshabandhan)

साल 2024 में रक्षाबंधन 19 अगस्त को मनाया जा रहा है। आप सब भी उसी दिन अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर इस त्योहार की खुशियां मना सकते हैं।

भाई-बहन को साथ लाने का दिन (Bhai-Bahan ko sath lane ka din)

बचपन में साथ खेलने वाले अब बड़े हो गए हैं। पढ़ाई की ज़िम्मेदारियों के बीच थोड़े ज़्यादा बिजी हो गए हैं। बढ़ती उम्र हम भाई-बहनों में समझदारी ले आती है। पर ये कैसी समझदारी जो हमारे बीच दूरियां ले आएं? क्या बड़ा होना खुशियों पर रोक लगाना है? बड़े होकर भाई-बहनों की उस हंसी-ठिठोली में अचानक से कमी आ जाती है, ज़िम्मेदारियां आने से मस्ती-मज़ाक भी कम हो जाता है। जबाव है बिल्कुल नहीं।

रक्षाबंधन एक ऐसा दिन है, जब भाई-बहन अपनी सारी अनकही दूरियां भूला कर, फिर से उसी मस्ती मज़ाक के जोन में वापस आ जाते हैं, साथ हंसते हैं, और खुशियां (Happiness) मनाते हैं। अपने बचपन की यादों को ताज़ा करते हैं, और एक-दूसरे का साथ निभाने के वादे करते हैं। हममें से बहुत से लोग ऐसे भी होंगे जो अपने भाई-बहनों से करियर या शादी की वजह से थोड़ा दूर रह रहे होंगे, पर रक्षाबंधन का दिन और रेशम की वो पवित्र डोरी, हमें फिर से पास ले आती है।

यूं हुई थी रक्षाबंधन की शुरुआत (Yun hui thi rakshabandhan ki shuruaat)

रक्षाबंधन की शुरुआत को लेकर यूं तो बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, पर सबसे ज़्यादा मानी जाने वाली कथा है भगवान श्रीकृष्ण और द्रोपदी की। ऐसा कहा जाता है कि रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत बहुत पहले हो गई थी। जब श्री कृष्ण को चोट लगी थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़ कर श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया था और तभी कृष्ण ने बहन द्रौपदी की रक्षा करने का वचन लिया और चीर हरण के समय उन्होंने इस वचन को निभाया भी। तब से लेकर आज तक रक्षाबंधन के रूप में हर भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देता है।

रक्षाबंधन को लेकर एक अन्य कहानी राजा बलि और माता लक्ष्मी की भी है, जब राजा बलि ने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करके, वरदान पाया, तो माता लक्ष्मी ने धरती पर कुछ वक्त गुज़ारने के लिए राजा बलि को राखी बांध कर अपना भाई बना लिया। उसके बाद, भाई-बहन के रिश्ते की नई शुरुआत हुई।

इसके अलावा इतिहास में कहा जाता है कि कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने साल 1905 में बंगाल विभाजन का विरोध करने के लिए, इस त्योहार को मनाने पर ज़ोर दिया था। वह इस त्योहार के ज़रिए से बहुत से समुदायों और वर्गों के बीच आपसी समझ और मजबूत रिश्ता कायम करना चाहते थे। रविन्द्र नाथ टैगोर ने हिंदुओं और मुसलमानों को एक-दूसरे के हाथों पर राखी बांधने के लिए प्रोत्साहित किया, जो उनके समुदाय के लिए भाईचारे और प्रेम का प्रतीक है।

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