पर्दे की 7 महिला किरदार देती हैं हिम्मत और जज़्बे के साथ जीने की प्रेरण

फिल्मों की कहानी किसी दूसरी दुनिया की नहीं, बल्कि हम सब के आस-पास की ही है। फिल्म समाज का आईना होती हैं। समाज का ही कोई एक हिस्सा फिल्मों में नज़र आता है।

हाथ में पॉपकॉर्न लेकर सिनेमा घर की आरामदायक सीट पर बैठकर फिल्म देखना तो सभी को पसंद होता है। पर क्या कभी सोचा है कि बड़े पर्दे पर दिखाई जाने वाली वो कहानी, जिसने हमारे मन में बहुत से सवाल भी पैदा किए और प्रेरणा भी दी, वो किसकी कहानी है?

फिल्मों की कहानी किसी दूसरी दुनिया की नहीं, बल्कि हम सब के आस-पास की ही है। फिल्में समाज का आईना होती हैं। समाज का ही कोई एक हिस्सा फिल्मों में नज़र आता है। कुछ बातें जो हम स्कूल या परिवार के बीच रहकर नहीं जान पाते, वो हम फिल्मों से सीख जाते हैं‌‌। वैसे तो फिल्में कई मुद्दों पर बनती हैं, और फिल्मों के अलग-अलग जॉनर होते हैं, लेकिन गंभीर सामाजिक मुद्दों पर बनने वाली फिल्म कमाल की होती हैं। ऐसी फिल्में जाने अनजाने में हमें समाज के लिए आवाज़ उठाने में, खुद के बारे में सोचने के लिए और कई बार तो अपने लक्ष्य को पाने का रास्ता ढूंढने के लिए हमें मजबूर करती हैं।

मैं एक लड़की हूं और मुझे ये हर दिन महसूस होता है कि दुनिया में जीना लड़कियों के लिए ही ज़्यादा मुश्किल क्यों है। किसी लड़की या किसी महिला पर आधारित फिल्में, फिल्म में दिखाया जाने वाला उनका संघर्ष, उनका बलिदान या फिर उनका साहस, खुद की अनकही कहानी के कहे जाने-सा लगता है। महिला की फिल्में या महिलाओं पर आधारित फिल्में या महिलाओं की फिल्में (Mahilaon ki filmein) हर उस महिला के दिल में एक उम्मीद या एक ज्वाला जगाने का काम करती है, जो अपनी ज़िंदगी में कभी समाज से तो कभी अपने ही परिवार से एक अनदेखी सी लड़ाई लड़ रही है।

महिलाओं पर आधारित फिल्मों में जिन किरदारों को मैंने देखा है, महसूस किया है और जिया है, उनके बारे में आज मैं आपको सोलवेदा के साथ इस आर्टिकल में बताने जा रही हूं। इन महिला की फिल्मों में किरदारों में भले ही एक पल के लिए ही सही लेकिन आपको अपना चेहरा ज़रूर नज़र आएगा।

फिल्म कहानी की विद्या बागची, 2012 (Film kahani ki Vidya Baghchi, 2012)

पूरी मूवी में एक ही ‌‌कपड़े में, एक महिला, एक ही रहस्य को सुलझाने में लगी रहती है। विद्या बागची का किरदार निभाया है विद्या बालन ने, जिन्होंने अपने शानदार अभिनय और दमदार डायलॉग से किरदार में जान फूंक दी है। यह एक ऐसी महिला की फिल्म है, जो पूरे फिल्म में अपने खोए हुए पति की तलाश करती है और उनका मकसद असल में क्या था, ये देखकर दिल की धड़कन एक बार रुक जाती है। विद्या बागची का यह किरदार हमें सिखाता है कि ठान लो तो जीत है और मान लो तो हार।

पिकू फिल्म की पिकू, 2015 (Peeku film ki Peeku, 2015)

पिकू की कहानी और पिकू की ज़िंदगी मुझे बिल्कुल अपनी सी लगती है। बेटी होकर एक मां की तरह अपने पिता का ख्याल रखना, अपने करियर को मैनेज करना और फिर भी हमेशा मुस्कुराते रहना, पिकू कुछ ऐसी ही है। इस फिल्म में पिकू दीपिका पादुकोण बनीं हैं, जिन्होंने अपने बढ़िया अभिनय से फिल्म में जादू बिखेरा है। यह किरदार हम में से कई लोगों की असल कहानी होगी, जो अपने मां-पापा का ख्याल भी रखते हैं, घर का काम भी करते हैं और बाहर का भी, लेकिन फिर भी अपनी ज़िंदगी से रोज़ मुस्कुरा कर मिलते हैं।

तुम्हारी सुलू की सुलू, 2017 (Tumhari Sulu ki Sulu, 2017)

यह फिल्म एक ऐसी महिला की फिल्म है, जो खुद की पहचान चाहती है। मुख्य पात्र सुलू सब कुछ करती है अपने परिवार के लिए, लेकिन फिर भी उसे वो सम्मान नहीं मिल पाता जिसकी वो हकदार है। फिर उसकी ज़िंदगी में आता है एक मोड़ और वो बनती है आरजे। सब लोग उसकी आवाज़ के दीवाने हो जाते हैं। लेकिन, कामयाबी छूती हुई उस औरत को उसका ही परिवार गलत समझने लगता है‌। ये कहानी भारत की बहुत सी महिलाओं की ज़िंदगी से मिलती है, जो हाउस वाइफ बनकर सम्मान नहीं पाती हैं, लेकिन जब काम करने बाहर निकलती हैं, तो बाहर वालों के साथ कई बार अपना परिवार भी ऊंगली उठाने लगता है। लेकिन, जिस तरह सुलू ने हार नहीं मानी, उसी तरह किसी भी महिला को इन मुसीबतों से हार नहीं माननी चाहिए। इसलिए, ऐसी महिलाओं की फिल्में (Mahilaon ki filmein) हमें अपने परिवार को भी दिखानी चाहिए ताकि वो भी इनसे कुछ सबक ले सकें।

डियर ज़िंदगी की कायरा, 2016 (Dear Zindagi ki Kaira, 2016)

ये फिल्म किसी मेंटल थेरेपी से कम नहीं है और कायरा का किरदार हमें महसूस कराता है कि आज़ादी के असली मायने क्या हैं, खुश होना क्या होता है, संतुष्ट महसूस करना कैसा लगता है? यह एक ऐसी महिला की फिल्म है, जिसका किरदार हमारे मानसिक स्वास्थ्य की बात करता है। यह किरदार हमें दिखाता है कि सब कुछ होने के बाद भी बुरा और उदास महसूस हो सकता है। कायरा के पास सब था एक अच्छी जॉब, अच्छा रिलेशनशिप और अच्छी ज़िंदगी, फिर भी वो ज़िंदगी के डोर में उलझी हुई थी। लेकिन, उसने हिम्मत दिखाई थेरेपिस्ट का सहारा लिया और खुलकर अपने दिल में बंद भावनाओं को बाहर लेकर आई। जब उसने अपने अंदर से सब बाहर आने दिया, तब ही वो अंदर से खुश हो पाई। कायरा का किरदार निभाया है आलिया भट्ट ने, जो एक कमाल की अदाकारा हैं और आप इस फिल्म में आलिया को नहीं बल्कि कियारा को ही देख पाएंगे।

गली बॉय की सफ़ीना, 2019 (Gully Boy ki Safeena, 2019)

सफ़ीना एक आम लड़की है, जिसे गुस्सा बहुत आता है और जिसे मूड स्विंग्स होते हैं। ऐसा हम में से भला किसके साथ नहीं होता? सफ़ीना का यही किरदार इस फिल्म को एक अलग एहसास देता है। रणवीर सिंह के किरदार में जो जान देखने को मिलती है, कहीं न कहीं उसका कारण सफ़ीना ही होती है। सफ़ीना आज़ाद रहना जानती है, खुलकर प्यार करना भी और अपनी ज़िंदगी खुद हैंडल करना भी। सफ़ीना का किरदार में आलिया भट्ट हैं, जिनकी कमाल की एक्टिंग के कारण फिल्म और मज़ेदार लगती है।

मर्दानी की शिवानी, 2014 (Mardani ki Shivani, 2014)

प्रदीप सरकार, मर्दानी का किरदार काली मां के रूप जैसा है, जो मां की तरह प्यार करना भी जानती हैं और राक्षसों का अंत करना भी। रानी मुखर्जी ने निभाया है मर्दानी का दमदार किरदार। यह एक सशक्त महिला की फिल्म है, क्योंकि ज़्यादतर हिन्दी फिल्मों में आदमियों को ही एक दमदार पुलिस वाला दिखाया जाता है। मगर, एक औरत का पुलिस के किरदार में होना और फिर शक्तिशाली नज़र आना अपने आप में एक अद्भुत बात है। रानी मुखर्जी ने इस किरदार को बखूबी निभाया है। साथ ही इस फिल्म के डायलॉग्स कमाल के हैं।

इंग्लिश विंगलिश की शशि, 2012 (English Vinglish ki Shashi, 2012)

मैंने जब यह फिल्म देखी थी तो मुझे श्री देवी के चेहरे में अपनी मां दिख रही थीं। मिडल क्लास घर की मां कुछ ऐसी ही होती हैं, बेहद टैलेंटेड, लेकिन उनके टैलेंट से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। अक्सर उनका काम हमें घर संभालना ही लगता है। अक्सर हम पापा को ज़्यादा अहमियत देते हैं और मां को कम, क्योंकि पापा हमें ज़्यादा समझदार, ज़्यादा पढे लिखे लगते हैं। मगर श्री देवी के द्वारा निभाया गया शशि का यह किरदार हमारी इसी सोच को एक करारा जवाब देता है। साथ ही, यह फिल्म हमें अपनी मां से उनके सपनों के बारे में और उनके हाल पूछने पर मजबूत करती है।

ये 7 फिल्में एक महिला की फिल्म हैं, जो दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं। ये फिल्में ज़िंदगी के अलग-अलग मोड़ को दिखाती हैं। भले ही किरदार 7 हैं और फिल्में 7 हैं, लेकिन हर किरदार सिखाता है खुद का सम्मान करना, खुद की अहमियत समझना और खुद को किसी से कम न आंकना।

पर्दे के लोकप्रिय किरदारों में से आपका फेवरेट किरदार कौन-सा है, हमें कमेंट में ज़रूर बताएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।