पढ़िए जावेद अख्त़र की कुछ चुनिंदा शायरी

जावेद अख्तर की शायरी में बेबसी और बेचारगी, भूख और बेघरी, भीड़ और तन्हाई, वंदगी और जुर्म, नाम और गुमनामी, सबकुछ है। उनकी शायरी एक ऐसे इंसान की भावनाओं की शायरी है, जिसने वक्त के अनगिनत रूप अपने भरपूर रंगों में देखे हैं।

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता,
मुझे पामाल रस्तों का सफर अच्छा नहीं लगता।

ये दो लाइनें आपने अपनी ज़िंदगी में कभी न कभी तो ज़रूर सुनी होंगी। हो सकता है, इसे लिखने वाले को आप नहीं जानते हों या फिर जानते भी हों। लेकिन, हम आपको बता दें कि इन शब्दों को कागज़ पर उतारा है जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने। वही जावेद अख्तर ने जिन्होंने बॉलीवुड (हिंदी सिनेमा) की कल हो ना हो, वेक अप सिड, वीर-ज़ारा और लगान जैसी फिल्मों के गाने लिखे हैं। जावेद अख्तर ने ‘लावा’ और ‘तरकश’ नाम से दो किताबें भी लिखी हैं, जिनमें उनकी लिखी शायरी और गज़लों का संग्रह है।

जावेद अख्तर सिर्फ फिल्मों में गाने ही नहीं लिखते हैं, बल्कि उर्दू अदब का भी मकबूल नाम हैं। इसके अलावा वे बेहतरीन स्क्रीनप्ले राइटर और बेहद ही संजीदा इंसान हैं। उनका व्यक्तित्व सुलझा हुआ है और वे खरी बात बोलने वाले बेबाक इंसान भी हैं।

जावेद अख्तर की शायरी (Javed Akhtar shayari) में बेबसी और बेचारगी, भूख और बेघरी, भीड़ और तन्हाई, वंदगी और जुर्म, नाम और गुमनामी, सबकुछ है। उनकी शायरी एक ऐसे इंसान की भावनाओं की शायरी है, जिसने वक्त के अनगिनत रूप अपनी ज़िंदगी में देखें हैं। जिसने ज़िंदगी के सर्द-गर्म मौसमों को पूरी तरह से महसूस किया है। जो नंगे पैर अंगारों पर चला है, जिसने ओस में भी भीगे फूलों को चूमा और हर कड़वे-मीठे जज़्बे को चखा है।

उन्होंने ऐसी शायरियां और गीत लिखे हैं, जिन्हें न केवल फॉलो किया गया, बल्कि उनसे एक नई परंपरा की शुरुआत भी हुई। उनकी शायरी आज युवाओं के साथ-साथ सभी उम्र के लोगों को मोटिवेट करती हैं। तो चलिए अब हम आपको जावेद अख्तर के लिखी कुछ फेमस शायरी (Javed Akhtar shayari in hindi) से रू-ब-रू करवाते हैं।

जावेद अख्तर की लिखी कुछ शायरी (Javed Akhtar shayari in hindi)

मुझे दुश्मनों से भी खुद्दारी की उम्मीद रहती है,
किसी का भी हो सर, कदमों में सर अच्छा नहीं लगता।

जावेद अख्तर एक जाने माने रचनाकार हैं। उनकी लिखी इस शायरी का अर्थ बहुत ही गहरा है। वो इस शायरी के ज़रिए कह रहें हैं कि उन्हें हर व्यक्ति से खुद्दारी की उम्मीद रहती है चाहे वो कोई दुश्मन ही क्यों न हो। किसी भी व्यक्ति का किसी के सामने में सर झुकाना उन्हें अच्छा नहीं लगता है। लाचार होकर किसी के सामने भी हाथ फैलाना और बेबस होना, उन्हें खटकता है।

जो हो सके तो ज़्यादा ही चाहना मुझको,
कभी जो मेरी मोहब्बत में कुछ कमी देखो।

जावेदा अख्तर की लिखी इस शायरी को प्यार करने वाले अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस शायरी में हर उस आशिक की गुहार छिपी है, जिसे प्यार करना भी सही ढंग से नहीं आता। एक नासमझ आशिक ये कह रहा है कि अगर मेरे प्यार में कोई कमी रह जाए तो तुम मुझे थोड़ा ज़्यादा प्यार करना। तुम्हारे हिस्से का प्यार मेरी कमी को शायद पूरा कर दे।

मैं सोचता हूं यह मोहरे क्या हैं, अगर मैं समझूं कि जो यह मोहरे हैं,
सिर्फ लकड़ी के हैं खिलौने, तो जीतना क्या ही, हारना क्या।

शतरंज के खेल में मोहरों का काम हमें काफी संजीदा लगता है। एक चाल पर हार और एक चाल पर जीत तय हो जाती है। लेकिन, असल में ये मोहरें मात्र लकड़ी के टुकड़े हैं, जिनसे जीते या हारें, हमें कुछ खास हासिल नहीं होने वाला। ज़िंदगी के कई मोड़ पर हमें कई ऐसी उलझनें नज़र आती हैं, जिनकी हम बहुत फिक्र करते हैं। हालांकि, अगर हम इन उलझनें को बारे में थोड़ा सोचें तो ये भी मोहरों की तरह खोखली ही नज़र आएंगी।

ज़रा-सी बात जो फैली तो दास्तान बनी,
वो बात खत्म हुई दास्तान बाकी है।

एक छोटी सी बात किसी चिंगारी की तरह होती है जो इस समाज में आग की तरह फैल जाती है। एक बात घर से बाहर कदम रखते ही पूरे समाज में घुल जाती है। लोग उस बात पर अपनी-अपनी कहानियां गढ़ते हैं। समय के साथ बात समाज से गायब हो जाती हैं और ज़िंदा रहतीं हैं कहानियां। हम सभी ने अपने घर से निकली किसी बात को इस परिस्थिति से गुज़रते ज़रूर देखा होगा।

छोड़ कर जिस को गए थे आप, कोई और था,
अब मैं कोई और हूं वापस तो आकर देखिए।

किसी के होने से लेकर उसके जाने तक में, हम पूरे बदल जाते हैं। जावेद अख्तर कह रहें कि जिस दिन कोई मुझे छोड़ कर गया उस दिन मैं कोई और था और अब अगर आकर देख लें तो अब हम कोई और है। हम सब भी अगर अपनी ज़िंदगी में पीछे मुड़कर देखें तो हमें भी लगेगा जो आज से सालों पहले हम थे, उसका एक प्रतिशत भी आज नहीं है। शायद, आज हमें खुद में कोई दूसरा इंसान नज़र आए।

अक्ल ये कहती दुनिया मिलती है बाज़ार में,
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए।

इस शायरी में आप दिल और दिमाग के बीच की लड़ाई को महसूस कर सकते हैं। जहां एक तरफ दिमाग कह रहा है कि हम बाज़ार में पूरी दुनिया ढूंढ सकते हैं, वहीं दिल कहता है दुनिया ढूंढने में रखा क्या है, कुछ हटकर देखिए ज़रा। हमारे अंदर भी हर वक्त दिल और दिमाग एक लड़ाई लड़ते रहते हैं, जिनमें से किसी एक की सुनना मुश्किल हो जाता है।

तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया,
तू ने ढाला है और ढले हैं हम।

जिस माहौल में, जिन लोगों के बीच और जिस जगह पर हम बड़े होते हैं अक्सर वही माहौल, वही लोग और वही जगह हमें बुरा कहने लगती है। लेकिन, जिस दुनिया ने अलग-अलग परिस्थितियों से गुज़रने पर और एक खास तरह का इंसान बनने पर मजबूर किया है, भला उसका हमारे व्यक्तित्व पर सवाल उठाने का हक ही क्या है।

तब हम दोनों वक्त चुरा कर लाते थे,
अब मिलते हैं जब भी फुर्सत होती है।

शुरू की दोस्ती, रिश्ते या प्यार वक्त निकालते हैं एक-दूसरे के लिए। लेकीन, जैसे-जैसे दोस्ती, रिश्ते और प्यार की उम्र बढ़ने लगती है, इन्हें फुरसत के पल चाहिए होते हैं मिलने के लिए। हम सब अपनी ज़िंदगी के रिश्तों को इन फुरसत के पलों पर ही बिठाकर रखते हैं। जिस दिन ये फुरसत के पल गायब हुए, सारे रिश्ते भी गायब हो जाएंगे।

गलत बातों को खामोशी से सुनना, हामी भर लेना,
बहुत हैं फायदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता।

किसी की गलत बात को सुनकर चुप रह जाना, सिर हिला देना बहुत आसान है और ये हमें कई मुसीबतों से भी बचाता है। लेकिन जावेद अख्तर कहते हैं कि ऐसा करके उन्हें अच्छा महसूस नहीं होता है। हम भी ज़िंदगी में कई बातों से बचकर निकल लेते हैं, जहां हमें चीख-चीख कर कहने का मन करता है कि ‘ये सरासर गलत है।’ उस वक्त तो हम बात मन में दबा लेते हैं लेकिन फिर ये बात हमें कुछ दिन, कुछ महीने और कभी-कभी तो कुछ साल चैन से सोने नहीं देती।

हमारे दिल में अब तल्खी नहीं है,
मगर वो बात पहले सी नहीं है।

हम सब के साथ भी ऐसा ही तो होता है। किसी के लिए मन में तल्खी यानी कड़वाहट नहीं रह जाती मगर पहले जैसे जज़्बात भी नहीं रहते हैं। समय के साथ फर्क पड़ना ही बंद हो जाता है। जावेद अख्तर अपनी इस शायरी से पूरी दुनिया की मन की बात एक साथ कह रहें हैं।

जावेद अख्तर अपनी दिल की सुनने वाले इंसान हैं। उन्होनें कहा है कि “जो भी मैंने काम किया है, वो मैंने दिल के करीब से ही किया है। जो काम मेरे दिल के करीब नहीं था, उसको मैंने कभी किया ही नहीं।” इसके अलावा उन्होनें ये भी कहा है कि “मैंने अपने प्रोफेशनल ज़िंदगी में कोई ऐसा काम नहीं किया या एक ऐसी लाइन नहीं लिखी या एक ऐसा गीत नहीं लिखा, जो मेरा अंतर्मन मुझे इजाज़त नहीं देता हो। भले ही मुझे फिल्में छोड़नी पड़ी हो।” उनकी इन्हीं बातों से हम समझ सकते हैं कि वो अपने काम को लेकर कितनी संजीदगी से रहते हैं।

जावेद अख्तर की इन शायरियों को पढ़कर आपने महसूस कर लिया होगा कि वे लिखने में कितना डूब जाते हैं। साथ ही उनमें कितनी बेबाकी है, कुछ भी बोलने और लिखने की। उनकी खासियत है कि उनको पढ़ने वाला उनकी शायरियों को इतने करीब से महसूस करने लगता है कि हर शब्द से खुद को जोड़ लेता है। ऐसे ही और लेखकों को पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।