सन् 1497 का वक्त जिज्ञासा से भरा हुआ था। उस समय स्पेन, इंग्लैंड और अन्य यूरोपीय देशों के खोजकर्ता एक नई दुनिया की तलाश कर रहे थे। उस वक्त लोगों को पता ही नहीं था कि पृथ्वी पर जमीन का क्षेत्रफल कितना था। इसी तरह के एक जिज्ञासा से भरे नाविक वास्को डी गामा भी थे। अपने दल के साथ केवल एक कम्पास के सहारे समुद्र में घूमते और ऐसी जमीन की तालाश करते थे जिनके बारे में उन्हें अंतर्ज्ञान था। खराब से खराब मौसम में भी वो लम्बी यात्रा करते थे और हमेशा क्षितिज को देखा करते थे, ताकि उन्हें ज़मीन का कोई टुकड़ा नज़र आ जाए। जब भी सारे रास्ते बंद हो जाते थे, तब उनका कम्पास उनका मार्गदर्शन करता था। अगर उनके पास कम्पास न होता, तो वो भू-मध्य और अरब सागर की गहराई में खो गए होते। कोई भी आम इंसान हो, पायलट हो या नाविक कम्पास से अपनी दिशा आसानी से पता कर सकते हैं। लेकिन जीवन की सही दिशा की तालाश में हम हमेशा खो जाते हैं। नैतिकता पर कई रिसर्च की गई है, जिनसे हमें अपने हर सवाल का जवाब ढूंढने में मदद मिलती है। लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि हर व्यक्ति सही और गलत के बीच अंतर कर पाए। हमें सिर्फ इस अंतर को समझना ज़रूरी है। तो थोड़ा रुकें और नैतिक कम्पास को समझने की कोशिश करें।
लैटिन भाषा में “राइट” की जगह “रेक्टस” का इस्तेमाल होता है, जिसका अर्थ है “सीधा”। रेक्टस शब्द अंग्रेजी के पुराने डिक्शनरी के अनुसार ‘र्हिट” से बना है, जिसका मतलब सत्य, स्पष्ट, उचित या अच्छा होता है। वहीं, दूसरी तरफ लैटिन भाषा में “रॉन्ग” का अर्थ “गलत” है। जिसका इस्तेमाल 12वीं शताब्दी से बुरे, दुष्ट व अनुचित व्यवहार को दिखाने के लिए किया जा रहा है। अपने जीवन के उद्देश्य को समझने के लिए आपको सबसे पहले सही गलत के बीच के अंतर को समझना होगा।
आसान शब्दों में कहें तो, नैतिकता एक सिद्धांत है जो हमें अच्छाई और दयालुता का पाठ पढ़ाती है, जैसे किसी बूढ़े व्यक्ति को सड़क पार कराना, बेघर जानवर को छत देना, ज़रुरतमंदों की मदद करना। इन सभी व्यवहारों की उम्मीद एक सामान्य इंसान से की जाती है। लेकिन अफसोस हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जो अज्ञान और कट्टर है। ऐसी दुनिया में अच्छाई और बुराई को अलग-अलग करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि जो हमारे लिए सही होगा वह दूसरे के लिए गलत हो सकता है। जब बात सद्गुण और नैतिकता की हो, तो कोई ऐसा नियम या सिद्धांत नहीं है, जिसमें सभी का नज़रिया फिट आ जाए। जब हमारे पास कोई मैप ही नहीं है और साथ ही अच्छे-बुरे की पहचान करना मुश्किल तो हम नैतिक कम्पास (Moral compass) की मदद से सही रास्ते पर कैसे चलें?
वही कम्पास, जिससे वास्को डी गामा सही दिशा की तलाश करते थे। इसी तरह से हमें भी नौतिक कम्पास की ज़रूरत है, जो हमें सही दिशा का ज्ञान करा सके। यह नैतिक कम्पास कहीं और नहीं, बल्कि हमारे अंतर्मन में ही निहित है। नैतिक ज्ञान हमारे गुणों – करुणा, निष्पक्षता और न्याय जैसे तत्वों का एक प्रतिबिंब है। ‘मानो तो देवता ना मानो तो पत्थर’ ठीक इसी तरह से कुछ लोगों के लिए नैतिकता है, तो वहीं दूसरे लोगों के लिए आध्यात्मिकता का आधार है। कुछ लोग नैतिक दिशा का पालन पूरी आस्था के साथ करते हैं, भले ही उसे सही से करना आसान न हो।
ऐसा कहा जाता है कि नैतिकता का रास्ता बहुत ही कठिन है। कोई इस सफर में सफलता पाता है, तो कोई असफल हो जाता है। बराक ओबामा कहते हैं “मुझे लगता है नैतिकता को बनाए रखना ही सबसे बड़ी चुनौती है।” आपके पास शारिरिक व मानसिक शक्ति, तार्किक क्षमता होने के बावजूद भी क्यों आप सही और गलत में अंतर करने में कई बार असफल होते हैं?
कुछ परिस्थितियों में हम बिना सोचे समझे ही कदम उठा लेते हैं, जो आगे प्रतिकूल स्थिति पैदा कर सकता है। शोध के अनुसार, यह प्रतिक्रियाएं एक इंसान के आस-पास के माहौल पर निर्भर करती हैं। हॉफ्स्ट्रा विश्वविद्याल से सेवानिवृत्त प्रोफेसर आर्थर डोब्रिन, डीएसडब्ल्यू का मानना है कि ऐसी कई चीज़ें हैं, जो हमें अपना लक्ष्य पाने से रोकती हैं। “कई कारण ऐसे होते हैं, जो हमें नैतिकता को अपनाने से रोकते हैं। कुछ तो हमारी आंतरिक भावनाएं होती हैं, जैसे ईर्ष्या व कुछ बाहरी जैसे एक ऐसे समाज में रहना जो न्यायसंगत न हो। अक्सर स्वार्थ और आत्म संतुष्टि नैतिक जीवन जीने या ऐसे समाज को बनाने से रोकता है जहां लोग एक-दूसरे की परवाह कर सकते हैं। डोब्रिन के अनुसार हमने सभ्य समाज (Sabhya Samaj) के विकास में एकता को दरकिनार कर दिया है। जो नैतिक कम्पास के द्वारा सही दिशा दिखाने में बाधा बनता है।
कुछ सवालों का जवाब ढूंढने के लिए हमें अतीत के अनुभवों को याद करना चाहिए। नाट्रे डेम विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर, डार्सिया नारवेज़, पीएचडी कहती हैं कि हमें अपने पूर्वजों से संयुक्त रूप से जीवन व्यतीत करना सीखना चाहिए। मैं अपने सवालों के जवाब पाने के लिए पूर्वजों के विचारों को खंगालती हूं, जैसे – छोटे शिकारी, जो ना सिर्फ जानवरों का ध्यान रखते हैं, बल्कि नदियों, पहाड़ों और अन्य जैव-समुदाय के साथ सदाचार के साथ पेश आते हैं। साथ ही वह कहती हैं कि सही फैसला करना या किसी दूसरों द्वारा कुछ अच्छा करना कोई रातों-रात नहीं सीख लेता है, इसके लिए अभ्यास और दृढ़ निश्चय की ज़रूरत पड़ती है।
डार्सिया का नजरिया नेकी की राह जीवन जीना बताता है और नैतिक कम्पास हमें अच्छा व्यवहार करना सीखाता है। लेकिन इस तेज़ी से बदलती दुनिया में लोगों के पास रुकने, खुद से मिलने और प्रकृति के साथ समय बिताने का वक्त ही नहीं है।
दार्शनिक, हिप्पो के संत ऑगस्टाइन ने नैतिकता के लिए लोगों का नज़रिया स्पष्ट किया है। उन्होंने सही और गलत की पहचान करने का प्रयास किया है। ऑगस्टाइन का कहना है कि, “जो चीज़ सही है वो सही है और जो चीज़ गलत है वह गलत है। अगर पूरा समाज किसी गलत की राह पर चल रहा है तो भी वह सही नहीं हो सकता है।” हालांकि उनके इन शब्दों से सही और गलत के बीच स्पष्टता नहीं हो पाती है। बोस्टन विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर एडवांसमेंट ऑफ एथिक्स एंड कैरेक्टर ने नैतिकता, सही और गलत के लिए एक सिद्धांत दिया है, जो नैतिकता को 7 गुणों से बना हुआ बताता है, नैतिक कम्पास को अपनाने के लिए इन्हें जीवन में अपना सकते हैं :
न्याय : लोगों को अपने अतीत या पूर्वाग्रह से आधार पर आंकना नहीं चाहिए। हमें सभी परिस्थियों में निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए।
संयम : नैतिक कम्पास को अपनाने के लिए सुख हो चाहे दुख, हमें हमेशा संयम बनाए रखना चाहिए।
साहस : किसी भी जिम्मेदारी को हमें पूरे साहस के साथ निभाना चाहिए।
ईमानदारी : ईमानदार व्यक्ति का भरोसा पूरी दुनिया करती है, इसलिए सच बोलें और ईमानदार बने रहें।
कृपा : हमें दूसरों के दर्द के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए और उनके दुखों को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
सम्मान : हम जिसे जो देते हैं, हमें भी वही मिलता है। प्रेम के बदले प्रेम, सम्मान के बदले सम्मान। इसलिए हमें सभी का सम्मान करना चाहिए।
ज्ञान : आत्म-ज्ञान हमें सही और गलत में फर्क समझाने में मदद करता है।
यदि लोग इन 7 सद्गुणों को अपने जीवन में उतार लें, तो निश्चित ही वह एक सुंदर और नैतिक जीवन जी सकते हैं। डोब्रिन के अनुसार, “हर पल को जिएं, लेकिन सिर्फ पलों के लिए न जिएं। इसी तरह से अपने लिए जीना ज़रूरी है, लेकिन सिर्फ अपने लिए अकेले नहीं जीना चाहिए। आपकी नैतिकता एक-दूसरे के द्वारा किसी तीसरे तक पहुंच सकती है। इसलिए अपने जीवन की सुंदरता को नैतिक कम्पास की मदद से समझें और दयालु बनें। सही दिशा खुद-ब-खुद मिल जाएगी।”