कारगिल विजय दिवस: क्यों मनाया जाता है और कौन थे इसके जाबाज़ हीरो

कारगिल विजय दिवस: क्यों मनाया जाता है और कौन थे इसके जाबाज़ हीरो

कारगिल विजय दिवस उन शहीदों को याद कर के, उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का दिन है, जिन्होंने हंसते-हंसते देश की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। यह दिन उन्हें समर्पित है, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया।

“या तो तू युद्ध में बलिदान देकर स्वर्ग को प्राप्त करेगा, नहीं तो विजयश्री प्राप्त कर के पृथ्वी का राज्य भोगेगा।” गीता के इसी श्लोक को मोटिवेशन मानकर भारत के शूरवीरों ने 1999 के कारगिल युद्ध में दुश्मन को पांव पीछे खींचने के लिए मजबूर कर दिया था। इसी युद्ध की जीत को हर साल इंडिया में ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

इतिहास के पन्नों में यह दिन भारत के लिए गौरव का दिन है और भारतीय सेना के सम्मान का दिन है। इस युद्ध के दौरान भारत की ओर से जो कारवाई की गई, उसे ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया था। लद्दाख के कारगिल में 60 दिनों से ज्यादा तक यह युद्ध चला था और आखिर में भारत की जीत हुई थी।

कारगिल विजय दिवस उन शहीदों को याद कर के, उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का दिन है, जिन्होंने हंसते-हंसते देश की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। यह दिन उन्हें समर्पित है, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया। तो चलिए जानते हैं कारगिल विजय दिवस का इतिहास और इस युद्ध में लड़ने वाले भारत के जाबाज़ सैनिकों को।

कारगिल युद्द का इतिहास

कश्मीर और कारगिल इलाके में हर साल भारत और पाकिस्तान के सैनिक ऊंची चोटियों पर, अपनी पोस्ट छोड़कर नीचे आ जाते थे। लेकिन 1999 में ऐसा नहीं हुआ। भारतीय सैनिक तो अपनी पोस्ट छोड़कर नीचे आ गए, लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों ने चुपके से इन पोस्टों पर कब्जा कर लिया।

इस बात की जानकारी भारतीय आर्मी को तब हुई, जब एक चरवाहे ने सूचना दी कि ऊंचाई पर भारतीय सैनिकों द्वारा छोड़ी गई पोस्ट पर कुछ लोग बंदूक और हथियारों के साथ हैं। सूचना मिलते ही इंडियन आर्मी अलर्ट मोड में आ गई। सबसे पहले एक सैनिक की टुकड़ी को उस इलाके में क्या चल रहा है, यह देखने के लिए भेजा गया। इसके बाद हेलिकॉप्टरों से जानकारी जुटाई गई, तो पता चला कि भारतीय सैनिकों द्वारा छोड़ी गई पोस्टों पर घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है। इसके बाद इंडियन आर्मी ने जवाबी कारवाई शुरू की। कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी आर्मी भी शामिल थी। हालांकि, पाकिस्तान हमेशा इससे इनकार करता रहा है।

भारतीय सैनिकों ने सबसे पहले कश्मीर से लेह जाने वाली हाइवे पर कब्जा किया। इसके बाद शुरू हुई महत्वपूर्ण पोस्ट और चोटियों पर लड़ाई। शुरुआत में अंदाजा लगाया गया कि 500 से 1000 घुसपैठिए भारतीय क्षेत्रों में घुसे हैं, लेकिन बाद में अनुमान लगाया गया कि लगभग 5000 पाकिस्तानी इंडिया के इलाके में घुसे हुए थे। इंडियन आर्मी ने 15 से 25 मई 1999 के बीच योजना बनाई और हमले के लिए सैनिकों को भेजा। तोप के साथ-साथ अन्य हथियार भी भेजे गये। फिर शुरू हुआ ‘ऑपरेशन विजय’।

13 जून 1999 को द्रास सेक्टर में कई दिनों की लड़ाई के बाद भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया। 4-5 जुलाई को टाइगर हिल और प्वाइंट 4875 पर फिर से कब्जा किया गया। 7 जुलाई को मशकोह घाटी पर फिर से कब्जा किया गया। इसी तरह बटालिक सेक्टर में 21 जून 1999 को प्वाइंट 5203 और 6 जुलाई को खालूबर पर, भारतीय सैनिकों ने फिर से अपना कब्जा जमाया।

इस दौरान तोप का तो उपयोग किया ही गया, साथ में इंडियन एयर फोर्स ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी। इंडियन एयर फोर्स के लड़ाकू विमानों के अलावा हेलिकॉप्टर्स भी लगातार इंडियन आर्मी का सपेार्ट कर रहें थे। साथ ही इंडियन नेवी भी पूरी तरह से अलर्ट मोड में थी। इंडियन नेवी के अफसर भी पाकिस्तान को घेरने और धूल चटाने के लिए तैयार बैठे थे। हालांकि, इंडियन नेवी इस युद्ध में शामिल नहीं हुई, क्योंकि यह लड़ाई पूरी तरह से जमीन पर लड़ी गई थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार कारगिल युद्ध में भारत के 527 सैनिकों को शहादत देनी पड़ी। वहीं, हजारों सैनिक घायल हो गए। आखिरकार, भारत को इस युद्ध में सफलता मिली और पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटना पड़ा।

कारगिल युद्द के हीरो

कैप्टन विक्रम बत्रा

कारगिल युद्ध में विक्रम बत्रा की ओर से दिया गया संदेश ‘ये दिल मांगे मोर’  अमर हो चुका है। इसकी वजह ये थी कि प्वाइंट 5140 पर जीत दर्ज करने के बाद जब प्वाइंट 4875 की कमान विक्रम बत्रा को सौंपी गई थी, तो उन्होंने इस पॉइंट पर भी फतह हासिल की। हालांकि, यहां जीत दर्ज करने के बाद वो शहीद हो गए थे। उनके इसी साहस और वीरता को देखते हुए उन्हें ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था।

कैप्टन अनुज नायर

अपने छह साथियों के शहीद होने के बाद और खुद घायल होते हुए भी कैप्टन अनुज नायर मैदान में डटे रहें। वे 17 जाट रेजिमेंट में थे और उन्हें कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल सेक्टर के एक महत्वपूर्ण चोटी पर कब्जे की जिम्मेदारी दी गई थी। उनकी बहादुरी से भारत फिर से एक बार उस चोटी पर कब्जा कर पाया था। उनके शहीद होने के बाद, उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाज़ा गया।

लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय

गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की कहानी आज भी बटालिक सेक्टर के जुबार टॉप पर लिखी हुई है। अपनी गोरखा पलटन के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। काफी कठिन परिस्थितियों में भी लड़ते हुए उन्होंने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए थे। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी वे अंतिम पल तक लड़ते रहें। उनके शौर्य और बलिदान के लिए, उन्हें शहीद होने के बाद परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

कैप्टन सौरभ कालिया

22 साल की उम्र में 22 दिनों तक दुश्मनों की गिरफ्त में रहे सौरभ कालिया कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले पहले सैनिकों में से थे। वो शहीद होने से सिर्फ चार महीने पहले ही इंडियन आर्मी में भर्ती हुए थे। घुसपैठ की सूचना मिलने पर वे अपने पांच साथियों के साथ पेट्रोलिंग पर गए थे, जहां गोलाबारुद खत्म होने की वजह से दुश्मनों ने उन्हें और उनके साथियों को पकड़ लिया था। इसके बाद उन्हें टॉर्चर कर के उनकी जान ले ली गई थी। उनके इस बलिदान को आज भी कोई भुलाया नहीं जा सकता।

स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा

स्क्वाड्रन लीडर आहूजा के मिग-21 पर कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानियों ने मिसाइल से हमला किया था। इस हमले में उनका प्लेन क्षतिग्रस्त हो गया था। प्लेन के क्षतिग्रस्त होने के बाद वो पैराशुट के सहारे बाहर आ गए थे, लेकिन पाकिस्तानियों ने गोली मारकर उनकी जान ले ली। 27 मई को फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता का जेट क्रैश हो गया था, जो पाकिस्तान में गिरा और जिसे ढूंढ़ने आहूजा गए थे। इस कोशिश में वे शहीद हो गए। उनके इस बलिदान को इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता

1999 के कारगिल युद्ध में फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकता को बटालिक सेक्टर में दुश्मनों पर फाइटर प्लेन से हमला करने की जिम्मेदारी दी गई थी। वो दुश्मनों पर हमला करने के लिए जैसे ही गए उनके प्लेन में आग लग गई, जिसके बाद उन्हें पाकिस्तानी क्षेत्र में लैंड करना पड़ा। वहां उनका सामना दुश्मनों से हुआ, तो पिस्टल की आखिरी गोली तक उनसे लड़ते रहे, लेकिन गोली खत्म हो जाने पर उन्हें पकड़ लिया गया और पाकिस्तान के रावलपिंडी जेल में रखा गया। इस दौरान उन्हें काफी यातनाएं दी गईं। हालांकि, बाद में भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें 3 जून को छोड़ दिया। इसके बाद वे वापस इंडिया आए और फिर से इंडियन एयरफोर्स ज्वाइन किया।

इसके अलावा भी कई ऑफिसर और सैनिकों ने कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन सभी जाबाज सैनिकों की वजह से भारत को युद्ध जीतने में सफलता मिली। कारगिल युद्ध में जीत की खुशी और शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। इस लड़ाई में जीत के बाद पूरे विश्व ने भारत का लोहा माना। कारगिल और श्रीनगर क्षेत्र भारत के अभिन्न अंग हैं। इसलिए कारगिल की जीत भारत के लोगों के लिए काफी मायने रखती है।

सोलवेदा कारगिल विजय दिवस पर शहीद हुए सैनिकों को सलाम करता है। उनकी बहादुरी से ही आज भारत प्रगति के रास्ते पर लगातार आगे बढ़ रहा है।

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