हमारा जीवन सुबह 9 से 5 बजे तक दफ्तर में फिर घर के रोज़मर्रा के काम करने और वीकेंड भी घर के पेंडिंग काम निपटाने में फंसकर रह जाता है। इसमें से बचा हुआ वक्त हम फेसबुक मित्रों (Facebook Friends) के जीवन को टकटकी लगाए देखते रहने में गंवा देते हैं। अब सवाल यह उठता है कि हमें अपनी ज़िंदगी के साथ क्या करना चाहिए? आइए कुछ पीछे चलें। अपने स्कूल की ओर।
मुझे अच्छी तरह याद है कि हाईस्कूल में हम एसयूपीडब्ल्यू (सम यूजफूल प्रोडिक्टव वर्क) का उपयोग करते थे। भारत में विद्यालयों में पढ़ाई के अलावा अतिरिक्त काम (एक्सट्राकरिकुलर एक्टिविटीज) के लिए एक घंटा सुनिश्चित किया जाता है, जिसमें विद्यार्थियों की पसंदीदा गतिविधियां शामिल होती हैं। मुझे याद है उसमें पॉटरी मेकिंग, बेकिंग, सिंगिंग और डांस क्लास होती थी। इन सब ने मुझे एक व्यक्ति के रूप में निखरने, मेरी अपनी क्षमताओं और रुचि की पहचान करने व रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रहने में मेरी मदद की।
हालांकि जैसे-जैसे वर्ष बीतते गए मैं इन कार्यों के साथ जुड़ी नहीं रह सकी। यहां तक कि उस दौरान मैंने जिन चीज़ों को खुशी से सीखा था वे भी धीरे-धीरे मेरी यादों से खोती चली गईं। समय रोज़मर्रा के कार्यों का गुलाम बन गया। मेरा दिमाग कहता था कि मुझे इन रुचियों और कौशल को और धारदार बनाना चाहिए। लेकिन ऐसा कर पाने में सफल नहीं होने की वजह से धीरे-धीरे मुझ पर उदासी हावी होती गई। यह बात काफी देर बाद मेरी समझ में आई। इस व्यस्त दुनिया के शेड्यूल और जिम्मेदारियां ज़िंदगी पर हावी हो गई थी।
मैं अपने जुनून और शौक को पुन: खोजने के लिए प्रतिबद्ध थी। यह करने का एकमात्र मार्ग बस यही था कि मैं एक बार फिर उन्हीं चीज़ों को खोज निकालूं, जो मुझे पसंद थीं। एक ऐसी दुनिया में जहां मन और शरीर समस्याओं से निरंतर जूझ रहा है। वहां आपकी पसंदीदा चीज़ों को करना ही एकमात्र मार्ग है, जो आपको उदासी से बचाता है। जिन कार्यों में हमारी रुचि होती है उन कार्यों को उत्सुकता के साथ करने से यूस्ट्रेस या सकारात्मक तनाव पैदा होता है जो सामान्य तनाव से भिन्न होता है। यह हमारे दिमाग में निरंतर हलचल मचाता रहता है।
सकारात्मक तनाव हमें प्रेरित और परिपूर्ण रखता है। इससे रचनात्मकता बढ़ती है और हमें ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
ऐसे समय में जब हमें अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है और हम उसमें फंसकर निराश और हताश हो जाते हैं, उस वक्त किसी चीज़ को शौक से करने की आदत आपकी सहायता करते हुए आपको इस बुरी स्थिति से निकाल लाती है। यह शौक ही आपके लिए उस वक्त आसरा बनता है, जब कोई चीज़ आपको थामने के लिए तैयार नहीं होती।
इन बातों पर ध्यान देने के बाद मानो चमत्कार ही हो गया। मुझे पता चल गया कि मेरे जीवन के खालीपन को कैसे भरा जा सकता है। अपना पसंदीदा काम मैं रोज़मर्रा का काम और अन्य आवश्यक चीज़ें खत्म करने के बाद कर सकती थीं। अब मैं समझ गई थी कि मुझे दूसरों के जीवन में झांकने की आवश्यकता ही नहीं है। मुझे पता था कि मेरे समाधि स्थल पर क्या लिखा जाएगा : शयन बेलियप्पा : खाना पकाया, गीत गाए, चित्र बनाए, ज़िंदगी को प्यार से जीया। (इन सबसे ज्यादा जीवन को प्रेम किया और उसे जीया है)