छाप छोड़ना

किसी के दिल पर छाप छोड़ना है, तो मन लगाकर सुनें

आपके बारे में दूसरों की राय और धारणाएं हर पल नई बनती रहती हैं, लेकिन हमें उन्हें बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। इस बात की चिंता भी नहीं करनी चाहिए कि हमारे बारे में किसकी क्या राय है या हमें किस तरह का छाप छोड़ना है। हमें सिर्फ दूसरों से बातचीत करने में सावधानी बरतनी चाहिए।

जहां तक सोशल होने की शर्तों की बात है, एक लंबे थकान भरे दिन के बाद अकेला होना समझ से परे है। बावजूद थकान भरे दिन के बाद अपनी एक दोस्त की बहुत जिद के बाद मैं शनिवार की शाम उसके दोस्तों के साथ पब गई।

मैं एक बड़ी मेज़ के कोने में बैठी थी, मैं अनजान चेहरों को देख रही थी। मैंने आत्मविश्वास के साथ पूरी रात पीते हुए, संगीत की धुन को इंज्वाय करते हुए फोन चलाया, छोटी-मोटी बातें की और थोड़ा मुस्कुराते हुए अनजान लोगों के बीच समय गुजारा।

अगले दिन मेरी दोस्त ने मुझे बताया कि मेरे बारे में आम राय बनी है कि मैं घमंडी हूं।

कुछ महीनों बाद अचानक एक दिन मैं उस रात की महफिल में शामिल एक व्यक्ति से फिर मिली। हम बात करने लगे और कुछ 10 मिनट की दोस्ताना बातचीत के बाद उसने मुझसे कहा कि मैं घमंडी तो बिल्कुल नहीं लगती।

घमंडी से दोस्त बनने का सफर (Ghamandi se dost banne ka safar)

घमंडी कहे जाने पर मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई लेकिन मुझे जो बात परेशान कर रही थी, वह यह कि लोग कितनी जल्दी किसी को जाने बिना उसके बारे में राय बना लेते हैं। मैं इस तरह का छाप छोड़ना (Leave A Mark) नहीं चाहती थी। उस शाम पब में और फिर अगली शाम उस इंसान से मुलाकात में मैं वही इंसान थी, लेकिन मुझे लेकर उनका नज़रिया बदल चुका था। शायद इसलिए अब मेरे बारे में उनकी धारणा कुछ और थी।

उस घटना ने मुझे यह सिखाया कि धारणा को नज़रिए से बदला जा सकता है।

किसी भी इंसान से मिलते ही हम उसके बारे में एक राय बनाना शुरू कर देते हैं। यह एक सहज प्रक्रिया है। भले ही यह हमें आदर्श न लगे, लेकिन यह कुदरती है।

उसके तुरंत बाद जो होता है, वह है उस बनी हुई राय के मुताबिक उस पर अमल करना।

हम किसी के बारे में नज़रिया और उससे जुड़ी हुई धारणा लगभग एक साथ ही बना लेते हैं।

गलत धारणाओं से प्रभावित हो जाना हमारे लिए बहुत स्वाभाविक है। इसीलिए मेरे बारे में बनी हुई धारणाओं के बारे में ज्यादा जानने के लिए मैंने फैसला किया कि मैं गहराई से इस बात को समझूंगी कि हम जो आचरण करते हैं, उसे सामने वाला किस तरह से लेता है या हमें किस तरह छाप छोड़ना है।

मन लगाकर बात सुनना (Man lagakar baat sunna)

अब, अनजान लोगों के बीच गुजारी उस शाम के बारे में सोचने पर मुझे याद आया कि लोग बातें कर रहे थे, लेकिन वे लोग क्या बात कर रहे थे, मुझे याद नहीं। संगीत सुनते हुए मैं अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी।

मैंने किसी से कोई बातचीत भी नहीं की थी। न ही मैं बात करते वक्त किसी से नज़रें मिला रही थी। सामने वाला क्या कह रहा है यह भी मैं ध्यान देकर नहीं सुन रही थी। इसी कारण मैं उन्हें जवाब भी नहीं दे रही थी। बाद में मैंने यह महसूस किया कि लोग उनकी संगत ज्यादा पसंद करते हैं, जो उनकी बातों को ध्यान से सुनते हैं। हमारी बातों में दिलचस्पी दिखाने वाले लोगों को हम तुरंत पसंद करने लगते हैं। अगर हम किसी के दिल में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं, तो उनकी बात मन लगाकर सुनें।

हावभाव (Hav Bhav)

उस शाम मेरा दिमाग सोशल होना चाहता था, लेकिन मेरा शरीर इस बात से साफ इनकार कर रहा था। मैं पूरी तरह से फोन के साथ व्यस्त थी। सारा समय मैं मेज़ के एक कोने में झुककर बैठी रही और एक बार भी इधर-उधर नहीं गई। कोने में झुककर बैठे खुद में लीन एक इंसान की तुलना में शारीरिक हाव-भाव से खुला, आत्मविश्वास से परिपूर्ण और ध्यान देने वाला इंसान ज्यादा सरलता से संपर्क करने योग्य होता है। अगर हम किसी पर अच्छी छाप छोड़ना चाहे, तो हमें अपने स्वभाव में थोड़ा बदलाव लाना होगा।

स्पर्श की शक्ति (Sparsh ki shakti)

उस शाम जिस इंसान के साथ मैं पब में थी, वह मेरी सहेली थी। मैं हर वक्त उसके साथ ही रही। मैंने और किसी से बात नहीं की। परिचय कराए जाने के बावजूद मैंने एक बार भी किसी से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया। अगर आप अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं, तो स्पर्श की शक्ति को पहचाने। मैं जानती हूं कि स्पर्श द्वारा पहला संपर्क करने पर चमत्कारिक परिणाम मिल सकते हैं। अच्छी तरह से हाथ मिलाना, हाथ उठाकर ताली देना या सौम्यता से किसी की पीठ थपथपाना लोगों को एक सुखद अनुभव प्रदान करता है। बात शुरू करने के लिए किए गए इस छोटे से काम में ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती और न ही यह किसी को असहज करता है।

असली छाप छोड़ना (Asli chap chodna)

किसी पर छाप छोड़ना या नज़रिया और धारणा पल-पल बनते रहते हैं। ऊपर कही गई कहानी केवल एक घटना है। अन्य लोगों के कुछ और अनुभव हो सकते हैं। कुछ लोग स्वाभाविक रूप से शर्मीले होते हैं और सामाजिक समायोजन में झिझक महसूस करते हैं, लेकिन उन्हें अशिष्ट या असभ्य मान लेना गलत होगा। दूसरी ओर कुछ लोगों को हम गलती से कही-सुनी बातों के कारण एक वर्ग विशेष में डाल देते हैं।

मैंने यह पाया कि सही तौर से समझे जाने के लिए हमें खुद को बदलने की ज़रूरत नहीं है। ज़रूरत है तो खबरदार और होशियार रहने की। दूसरों से मिलने-जुलने और उनके जीवन के बारे में थोड़ा बहुत जानने का अनुभव बहुत ही संतोषजनक होता है। एक ऐसा अनुभव जिसे एक मौका तो दिया ही जाना चाहिए। हमे लोगों के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ना चाहिए। इससे हमारी दोस्ती काफी सही तरह से चलती है।

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