सादगी में सुंदरता का एक नायाब उदाहरण है प्रकृति। ज़मीन पर उगने वाले नारियल से लेकर समुद्र के विशालकाय व्हेल तक, सौर मंडल में ग्रहों की स्थिति से लेकर अनगिनत आकाशगंगाओं तक, ब्रह्मांड की रचनाएं अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय हैं। प्रकृति हमेशा अपनी रचनाओं को गढ़ने के लिए गोल्डन रेशियो अपनाती है। आप किसी पेड़ को ही देख लें, उसकी शाखाएं उतनी बेतरतीबी से भी नहीं होती हैं, जितनी कि हमें दिखाई देती हैं। पेड़ की शाखाएं फाइबोनैचि सिक्वेंस को फॉलो करती हैं। फाइबोनैचि सिक्वेंस या गोल्डन रेशियो को ‘डिवाइन प्रपोर्शन’ यानी कि ईश्वरीय अनुपात के नाम से भी जाना जाता है। इस बात से स्प्ष्ट है कि पूर्णता के मामले में प्रकृति ने महारत हासिल की हुई है!
प्रकृति को इंसानों ने हमेशा टक्कर दी है, जिसके तहत कुछ कलाकारों ने भी सुंदरता और पूर्णता का संबंध स्थापित करने का पूरा प्रयास किया है। चित्रकार लियोनार्डो दा विंची ने 15वीं शताब्दी में कई कलाकृतियां बनाई, जिसमें ‘मोना लिसा’, ‘वर्जिन ऑफ द रॉक्स’, ‘द लास्ट सपर’ और ‘द विट्रुवियन मैन’ आदि काफी प्रख्यात हैं। दा विंची किसी भी चित्र को बनाने से पहले मानव शरीर का गहन अध्ययन करते थे। वह ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि वो अपनी पेंटिंग्स को जीवंत करना चाहते थे। अपने काम में जब तक दा विंची ने उत्कृष्टता हासिल नहीं कर लेते थे, तब तक वह अपना काम किसी के साथ शेयर नहीं करते थे।
कुछ कला इतिहासकारों की मानें, तो ‘मोना लिसा’ की पेंटिंग कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। लेकिन फिर भी यह पेंटिंग दा विंची को अपनी मृत्यु तक अधूरी ही लगी। उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक इसे खत्म करने का प्रयास किया। दा विंची के लिए पूर्णता बहुत ज़रूरी थी, उन्होंने पूर्णता के बारे में कहा था कि, “विवरण किसी चीज़ को पूर्ण बनाते हैं, लेकिन पूर्णता कभी विवरण नहीं बनाती है।” सोचने वाली बात है कि इतने महान चित्रकार की कलात्मकता एक छोटे से काम पर निर्भर है, जिसे हम पूर्णता के नाम से जानते हैं। मनोवैज्ञानिक तिष्या महेंद्रू साहनी कहती हैं कि, कोई भी बेहतरीन काम करने की इच्छा ही व्यक्ति के अंदर पूर्णता की तलाश करने की भावना को जागृत करता है। वह कहती हैं कि, “पूर्णतावाद व्यक्ति की एक विशेषता है, जो किसी व्यक्ति के खरेपन को दिखाने का प्रयास करती है।”
अपने कार्य में पूर्णता की इच्छा रखने वालों का मत है कि अपने काम को ‘आदर्श’ बनाने का अभ्यास ही स्वयं में लगातार सुधार करने का तरीका है। कर्नाटक संगीतकार मंगला कार्तिक का इस बात पर मत है कि गायकों को अपनी पूर्णता पर दृढ़ विश्वास होने की ज़रूरत होती है। आगे वह कहती हैं कि, “मेरा काम एक शुद्धता पर निर्भर है। वह इतना यथार्थ है कि या तो वह वास्तव में होता है या वह नहीं होता है। इसलिए, मेरे गुरुओं ने मेरे लिए कुछ स्टैंडर्ड तय किए थे, उस मानक तक पहुंचना ही मेरा लक्ष्य था और पूर्णता भी। इस लक्ष्य ने मुझे रोजाना और बेहतर बनने में मदद की है।”
जैसा कि मंगला ने बताया कि पूर्णता असल में क्या है? पूर्णता एक बेहतरीन प्रेरक है, जो आपको स्वयं में सुधार के लिए प्रेरित करता है। लीडरशिप कोच ज्योफ वॉट्स ने अपने टेडएक्स टॉक बैलेंस योर परफेक्शनिज्म टू क्रिएटिव बी में बताया था कि जो लोग पूर्णतावाद में विश्वास रखते हैं, वे अपने काम में गुणवत्ता और निरंतरता के लिए बेहद विश्वास पात्र होते हैं। ज्योफ का मानना है कि पूर्णतावाद कभी-कभी नकारात्मक हो सकता है, लेकिन यह सबसे अच्छा गुण है, जो हममें प्रेरणा के स्रोत के रूप में निहित होता है। इसलिए याद रखें कि आप चाहकर भी पूर्णतावाद से छुटकारा नहीं पा सकते हैं।
वाट्स आगे कहते हैं कि पूर्णतावाद आत्म-आलोचना को जन्म दे सकता है, इसका सिर्फ यही एक नकारात्मक पहलू है। पूर्णता की तलाश में लोग कई गलतियां भी कर बैठते हैं। ग्राफिक डिजाइनर दानिया जफर के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। वह बताती है कि वह एक रिकवरी परफेक्शनिस्ट है। दानिया कहती है कि “मैं अपने कामों में इतना परफेक्शन ढूंढती हूं कि मुझे मेरे ही कामों में गलतियां नज़र आती हैं और मैं परेशान हो जाती थी। अपने द्वारा की गई गलतियों को मैं माफ नहीं करती थी और एक कठोर रवैया अपना लेती थी।” इसके बाद दानिया ने एक बार एक इंटरव्यू में खगोलशास्त्री नील डेग्रसे टायसन को परफेक्शन पर बात करते हुए सुना। इसके बाद दानिया का विचार पूर्णता को लेकर बदल गया। अब वह समझ गई थी कि किसी चीज़ में वह “महान” है या नहीं, यह हमेशा उनके बेहतर प्रयास पर निर्भर करता है। इसलिए उनका परफेक्ट होने का प्रयास जारी है।
इन सबसे दानिया के लिए एक अच्छी बात निकल कर सामने आई कि उन्हें अपने विचार को संतुलित करने का तरीका मिल गया। वैसे भी यह सिर्फ दानिया की कहानी नहीं है। बहुत लोगों के साथ ऐसा होता है कि वे परफेक्ट बनने के चक्कर में खुद को यातना दे रहे हैं। अमेरिकी उपन्यासकार व्लादिमीर नाबोकोव भी ऐसे ही एक पूर्णतावादी थे। उन्होंने अपने उपन्यास लोलिता के एक अधूरे ड्राफ्ट को जलाना चाहा था। वह ऐसा इसलिए कर रहे थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि यह उनका बेहरीन काम नहीं है। आत्म-संदेह के दुख को दूर करते ही उन्हें दोबारा प्रयास करने की प्रेरणा मिली। फिर नाबोकोव ने अपने उस उपन्यास को पूरा किया और उसे प्रकाशित कराया। रिलीज होने के बाद लोलिता को आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। लोलिता नाबोकोव की अब तक की सबसे उम्दा रचना मानी जाती है।
उपन्यासकार नाबोकोव ने खुद को संभाला और पूर्णतावाद से प्रेरणा लेकर ख्याती प्राप्त की। लेकिन दुर्भाग्य से, कुछ लोग ऐसा नहीं कर पाते हैं, वे पूर्णता के चक्कर में शिथिल हो जाते हैं और डिप्रेशन में चले जाते हैं। मनोचिकित्सक शेरी मेलरोज़ ने एक रिसर्च की थी, जिसमें उन्होंने पूर्णता और डिप्रेशन का सीधा संबंध पाया। अपने अध्ययन के निष्कर्ष में वह लिखती हैं कि “लोग यह नहीं समझते हैं कि पूर्णतावादी होने के आगे भी जीवन है। लोग किसी भी काम के परफेक्ट न होने पर हताश होकर डिप्रेशन में चले जाते हैं। वे लोग अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना सकते हैं। अपने स्किल के ज़रिए बेहतर से बेहतरीन बनने की तरफ काम कर सकते हैं।” मेलरोज़ के अनुसार, जब हम एक स्वस्थपूर्णता की तरफ जाते हैं, तब हम ज्यादा खुश रह सकते हैं।
अब ज़रा सोचिए क्या होगा जब हम पूर्णतावाद पर एक संतुलन बना सकें? क्या होगा यदि हम पूर्णतावाद के सकारात्मक पक्ष के अनुसार काम करें? हमारी अपनी विचारधारा में बदलाव होगा। कंटेंपररी डांसर हेमभारती पलानी का मानना है कि अपने काम के परिणाम को देखने के नज़रिए से पूर्णतावाद के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू बनते हैं। वह कहती हैं कि, “नृत्य करते समय मैं हर एक स्टेप पर ध्यान दे सकती हूं, लेकिन मेरे नृत्य का परिणाम क्या आएगा, यह मैं नहीं जानती। मेरे लिए अपने डांस के हर स्टेप में पूर्णता लाना ही पहला लक्ष्य है। मैं पूर्णता को बेहतर बनाने के एक ड्राइविंग टूल के रूप में इस्तेमाल करती हूं। इसे अपने काम का ‘समाप्त’ नहीं मानती।”
कुछ लोगों के लिए, पूर्णता की परिभाषा उत्कृष्टता से है, तो कुछ के लिए सटीकता से। वहीं दूसरों के लिए, पूर्णता लगातार बेहतर बनने का प्रयास है। लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए पूर्णतावाद एक सामान्य सा उद्देश्य हैं, जिसे पूरा करने की प्रबल इच्छा उनके अंदर है। शायद इसीलिए पूर्णता प्राप्त करने की इच्छा हमें और बेहतर बना सकती है। अपने काम में हमें विशेषज्ञता हासिल करने में मदद कर सकती है। पूर्णता एक मृगतृष्णा है। हम कितने भी परफेक्ट क्यों न हो जाए, लेकिन प्रकृति हमें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी।
पाब्लो पिकासो ने परफेक्शनिज्म पर एक बार कहा था कि, “जीवन में पूर्णता की तलाश करना बहुत ज़रूरी है। पूर्णता का अर्थ भले ही सबके लिए अलग-अलग हो, लेकिन उसका सार एक ही है। मेरे लिए पूर्णता का अर्थ है, एक कैनवास से दूसरे कैनवास तक, हमेशा आगे बढ़ते रहना और आगे बढ़ते रहना…”