बच्चों का मेंटल हेल्थ पेरेंट्स के मेंटल हेल्थ से कैसे है जुड़ा?

बच्चे का सबसे पहला और सबसे ज़्यादा समय घर पर माता-पिता के साथ बीतता है। इसलिए घर का माहौल उनके मानसिक विकास का बड़ा आधार होता है। अगर घर में प्यार, विश्वास और सहयोग का माहौल है, तो बच्चा मानसिक रूप से स्वस्थ और आत्मविश्वासी बनता है।

बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य काफी हद तक उनके पेरेंट्स के मेंटल हेल्थ से जुड़ा होता है। अगर आप खुश और मेंटली स्टेबल हैं, तो इसका असर सीधा बच्चों पर पड़ता है। और अगर आप स्ट्रेस में हैं, परेशान हैं या आपकी लाइफ में चल रहा नेगेटिव माहौल आप पर ज़्यादा हावी है, तो यह बच्चों पर भी असर डालता है। दरअसल, बच्चे घर के माहौल को बड़े ध्यान से महसूस करते हैं। जो कुछ भी पेरेंट्स बोलते, करते या फील करते हैं, उसका बच्चों पर गहरा असर होता है। आप चाहें या न चाहें, बच्चे आपकी बॉडी लैंग्वेज, इमोशंस और बिहेवियर को कॉपी करना सीख जाते हैं। यही वजह है कि अगर पेरेंट्स अक्सर एंग्जायटी, स्ट्रेस या डिप्रेशन जैसे समस्या फेस कर रहे हैं, तो बच्चों में भी इन्हीं इमोशंस के डेवलप होने का खतरा बढ़ जाता है।

इसके अलावा अगर पेरेंट्स के बीच अक्सर झगड़े होते हैं, तो बच्चों की सेंस ऑफ सिक्योरिटी डिस्टर्ब हो जाती है। वे डर, लो सेल्फ-एस्टीम या सोशल इश्यूज का शिकार हो सकते हैं। वहीं, अगर पेरेंट्स का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा है, वे रिलैक्स्ड, लविंग और सपोर्टिव हैं, तो इससे बच्चों में कॉन्फिडेंस, पॉजिटिव सोच और स्ट्रॉन्ग इमोशनल हेल्थ डेवलप होती है। 

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बताएंगे। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य को कैसे ठीक कर सकते हैं और बच्चों का मेंटल हेल्थ पेरेंट्स के मेंटल हेल्थ से कैसे है जुड़ा है इसके बारे में भी बताएंगे। 

मानसिक स्वास्थ्य कैसे ठीक करें (Mansik swasthya kaise thik karein)

अपनी भावनाओं को समझें और व्यक्त करें

सबसे पहले ये ज़रूरी है कि जो आप महसूस कर रहे हैं, उसे समझें। अगर आप दुखी, परेशान या चिंतित महसूस कर रहे हैं, तो इसे दबाने की बजाय किसी भरोसेमंद व्यक्ति से बात करें। अगर आप किसी दिन लो महसूस कर रहे हैं, तो किसी दोस्त या फैमिली मेंबर को खुलकर बताएं।

शरीर को फिट रखें

फिजिकल और मेंटल हेल्थ आपस में गहराई से जुड़ी होती हैं। रोज़ाना एक्सरसाइज करें, चाहे वो 20-30 मिनट की वॉक हो, योग हो या कोई खेल। इससे आपके ब्रेन में डोपामाइन और सेरोटोनिन का लेवल बढ़ता है। साथ ही खानपान का भी ध्यान रखें। फल, सब्जियां, नट्स और ओमेगा-3 फैटी एसिड मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं।

पर्याप्त नींद लें

नींद का मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर होता है। हर दिन 7-8 घंटे की अच्छी नींद ज़रूरी है। नींद पूरी न होने से तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।

स्ट्रेस मैनेजमेंट सीखें

आपकी लाइफ में तनाव आएगा, ये तय है। पर ये ज़रूरी है कि आप इसे हैंडल करना सीखें। इसके लिए 10-15 मिनट तक हर दिन मेडिटेशन करें। साथ ही डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें। इससे इससे तनाव कम होता है।

सोशल नेटवर्क बनाएं

अकेलेपन से मानसिक समस्याएं और बढ़ सकती हैं। अपने दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताएं। अगर किसी को बात करने का मन न हो, तो भी किसी ग्रुप में जुड़ें, जैसे बुक क्लब या सोशल एक्टिविटी क्लब।

मनपसंद काम करें

जिन चीज़ों से आपको खुशी मिलती है, जैसे म्यूजिक सुनना, डांस करना, पेंटिंग करना या गार्डनिंग, उन्हें ज़रूर करें। ये आपको रिफ्रेश करते हैं।

पॉजिटिव सोच बनाए रखें

नेगेटिव थिंकिंग को पहचानें और उसे सकारात्मक विचारों में बदलने की कोशिश करें। “ग्रेटिट्यूड” यानी कृतज्ञता की भावना को अपनाएं। हर दिन उन चीज़ों के बारे में सोचें जिनके लिए आप शुक्रगुज़ार हैं।

डेली रूटीन बनाएं

हर दिन एक बैलेंस्ड रूटीन बनाएं जिसमें काम, आराम और मनोरंजन को बराबर जगह मिले।

बच्चों का मेंटल हेल्थ पेरेंट्स के मेंटल हेल्थ से कैसे जुड़ा है? (Baccho ka mental health parents ke mental health se kaise hai juda hai)

घर का वातावरण और बच्चे की मानसिकता

बच्चे का सबसे पहला और सबसे ज़्यादा समय घर पर माता-पिता के साथ बीतता है। इसलिए घर का माहौल उनके मानसिक विकास का बड़ा आधार होता है। अगर घर में प्यार, विश्वास और सहयोग का माहौल है, तो बच्चा मानसिक रूप से स्वस्थ और आत्मविश्वासी बनता है। वहीं, लड़ाई-झगड़े, गुस्सा या उपेक्षा का माहौल बच्चों में चिंता, डर और असुरक्षा की भावना पैदा कर सकता है।

पेरेंट्स का तनाव बच्चों पर डालता है असर 

अगर माता-पिता तनाव में हैं, तो वे अपने बच्चों के लिए पूरी तरह भावनात्मक रूप से उपलब्ध नहीं हो पाते। बच्चे को यह महसूस होता है कि उसके भावनाओं की कद्र नहीं हो रही, जिससे वह अंदर ही अंदर अकेलापन महसूस कर सकता है। अगर माता-पिता चिड़चिड़े हैं या गुस्से में रहते हैं, तो बच्चों में भी यही प्रवृत्ति आ सकती है। पेरेंट्स का ओवर-रिएक्ट करना बच्चों को गुस्सैल और अस्थिर बना सकता है।

बच्चे पेरेंट्स के व्यवहार से सीखते हैं

बच्चे अपने माता-पिता को देखकर कई चीज़ें सीखते हैं। अगर पेरेंट्स समस्याओं का सामना शांत और रचनात्मक तरीके से करते हैं, तो बच्चे भी ऐसी ही आदतें विकसित करते हैं। वहीं, माता-पिता का खुले विचारों वाला, समझदारी भरा और संतुलित व्यवहार बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत बनाता है। अगर माता-पिता छोटी समस्याओं पर ज़्यादा तनाव लेते हैं या अपने गुस्से को सही तरह से संभाल नहीं पाते, तो बच्चे भी यह रवैया सीख सकते हैं।

मेंटल हेल्थ का बच्चों की पढ़ाई और व्यक्तित्व पर असर

पेरेंट्स का खराब मानसिक स्वास्थ्य बच्चों की पढ़ाई, सामाजिक जीवन और मानसिक विकास पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। इसके कारण बच्चे पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाते। उनका दूसरों से घुलना-मिलना कम हो जाता है। आत्मसम्मान कम होने लगता है।

इस आर्टिकल में हमने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देने के साथ ही बच्चों का मेंटल हेल्थ पेरेंट्स के मेंटल हेल्थ से कैसे है जुड़ा है इसके बारे में भी बताया। यह जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके रूर बताएं। साथ ही इसी तरह की जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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