इससे ज्यादा गुस्से वाली बात और क्या हो सकती है कि आप एक धीमी गति से चल रहे वाहन के पीछे चल रहे हैं और उस वाहन का चालक लगातार हॉर्न बजाने (honking) के बाद भी आपको रास्ता नहीं दे रहा है और इससे भयंकर स्थिति वह होती है जब आपके सामने जाने के लिए कोई जगह नहीं है और आपके पीछे वाला वाहन बेवजह हॉर्न बजाता रहता है।
लापरवाही के साथ गाड़ी चलाने वाला, तेज़, धीमा, गैर-जिम्मेदार और सिर्फ खुद को सही समझने वाला चालक, इस तरह के न जाने कितने लोग हमें सड़क पर मिलते हैं। हमें उनके साथ क्या करना चाहिए? क्या हम उन्हें सड़क के किनारे ले जाकर पीटें या उनसे आगे निकलते वक्त उन्हें गालियां दें? या फिर अपनी गाड़ी की कांच उतारकर इशारों से ही अपनी नाराजगी व्यक्त करें? हो सकता है एक्सीलरेटर (accelerator) दबाकर उन्हें समझाया जाए कि कौन सड़क का राजा है? ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि यह बात अब पुरानी हो चुकी है।
सड़क पर लापरवाही के साथ गाड़ी चलाने वालों से अथवा कमज़ोर ड्राइविंग से निराश होना आम बात है। लेकिन उसे लेकर गुस्सा करना या आपा खोना अच्छी बात नहीं है और न ही इसे स्वीकारा जा सकता है। यह चिंता का विषय भी है। एक बात समझ में नहीं आती कि आखिर सड़क पर आते ही हम हल्क (पहलवान) क्यों बन जाते हैं। हम इस बात को लेकर शायद इसलिए गुस्सा करते हैं क्योंकि हमें गाड़ी चलाने का ढंग नहीं है। हम लाल-बत्ती पर इसलिए नहीं रुकते कि हमें अपनी जान की परवाह है, बल्कि इसलिए ठहरते हैं कि हमें चालान कटने या लाइसेंस छिन जाने का डर होता है।
एक ताज़ा स्टडी के अनुसार अमेरिका में 80 प्रतिशत ड्राइवर सड़क पर गाड़ी चलाते वक्त लोगों के गुस्से का सामना करते हैं। यातायात के नियम हमें भावनात्मक रूप से सही फैसला लेने की बात नहीं सिखाते। आसान भाषा में कहें तो हमें यह पता ही नहीं है कि सड़क पर कैसा बर्ताव किया जाए। हम यह मानते ही नहीं कि लापरवाही के साथ गाड़ी चलाने वाला, बेढंगा, गैर जिम्मेदार और खुद को सही मानने वाले ड्राइवर हम भी हो सकते हैं।
भारी बारिश, तेज़ गर्मी, खराब सड़क या व्यस्त रोड की छोटी गली में पार्क किया गया ट्रक जैसी स्थिति में यदि हम फंस गए तो किसे दोष देंगे? इसमें किसी का दोष नहीं होता। इन स्थितियों में अच्छे से अच्छा चालक भी अपना आपा खो देता है। यही वह समय है जब क्रोध हम पर हावी हो जाता है और हम ऐसे गलत फैसले ले लेते हैं जिन पर हमें बाद में पछतावा होता है।
सड़क दुर्घटनाओं को रोकना संभव नहीं है, लेकिन हम यदि कुछ बातों को समझ लें और मान लें तो सड़क पर होने वाले क्रोध को कम कर सकते हैं।
अधिकतर दुर्घटनाओं को हम दो हिस्सों में बांट सकते हैं। पहला, एक गलत फैसला जिसकी वजह से दुर्भाग्य से कोई बात हुई हो या फिर दूसरा कि एक ईमानदार गलती पर गलत तरह से प्रतिक्रिया देना। सड़क पर चलने वाले आपके सहयात्री पर गुस्सा निकालने से किसी का भला नहीं होगा। यदि हम यह मान लें कि हर बात हमारे हाथ में नहीं होती है तो स्थिति पर, क्रोध पर काबू पाया जा सकता है।
अगर हम अपने गुस्से पर दोबारा सोचें तो पाएंगे कि सड़क पर क्रोध करना और कुछ नहीं, बल्कि तनाव का दूसरा रूप है। जो व्यक्ति तनाव में है तो उसके लिए अजनबी पर गुस्सा निकालना आसान होता है। जब हम विकट स्थिति में होते हैं तो भड़क जाते हैं। लेकिन तनाव से निपटने के और भी तरीके हैं। गुस्सा निकालने के लिए सड़क तो बेहतर जगह हो ही नहीं सकती।
कुछ सक्रिय उपायों से हम तनावपूर्ण विवादों से बच सकते हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि अपने निर्धारित स्थान पर पहुंचने का ड्राइविंग टाइम रास्ते में होने वाली देर को देखकर ही तय करें। यदि हम देरी से नहीं निकले हैं तो ट्रैफिक जाम हमें परेशान नहीं करेगा। शांत दिमाग से गाड़ी चलाना भी लाभदायक होता है। अच्छे मूड में गाड़ी चलाने से हम सड़क की चीज़ों से विचलित नहीं होते।
इसलिए यह सुनिश्चित करें कि जब हम स्टीयरिंग व्हील के पीछे बैठें तब हम गुस्से में न रहें। अगर आप किसी अनचाही स्थिति में फंस भी जाएं तो उसे शांत दिमाग से संभालिए। चेहरे पर मुस्कान लाकर सामने वाले चालक की तरफ हाथ लहराना अच्छे परिणाम दे सकता है।
सड़क पर जब कोई हमारे अधिकार या सीमा क्षेत्र में घुसने की कोशिश करता है तो एक स्वाभाविक जानवर प्रवृत्ति हम पर हावी हो जाती है। जब कोई ड्राइवर हमें कट मारकर आगे निकल जाता है तो हम अपमानित महसूस करते हैं। यह हावी होने की प्रवृत्ति ही हमें हिंसक या क्रोधित बना देती है।
मनोचिकित्सक एवं इंस्टीट्यूट फॉर द एडवांस्ड स्टडी ऑफ ह्यूमन सेक्सुअलिटी, सैन फ्रांसिसको की इंसट्रक्टर एवा कैडेल इस बात से सहमत हैं। उनका मानना है कि ‘लोहे की बड़ी गाड़ियों में लोग खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। सड़क पर क्रोध करने वाले ‘रोड रेजर्स’ सड़क पर चलने वाले लोगों को एक ऐसा इंसान ही नहीं मानते, जिसके बाल-बच्चे या परिवार भी होते हैं।’ ऐसी स्थिति का एक ही हल है- हमें खुद को उनकी जगह रखकर देखना होगा और उनकी समस्याओं को लेकर सहानुभूति रखनी होगी।
कभी-कभी हमें दूसरे ड्राइवर को बेनिफिट ऑफ डाउट दे देना चाहिए। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि उसने गलती की है। खराब ड्राइविंग को स्वीकार करना मुश्किल काम होता है। लेकिन जब हम लोगों के प्रति शिष्टाचार और सहानुभूति के साथ पेश आते हैं तो विवाद से बचा जा सकता है। क्या पता वह अपनी गलती से सीख ले और एक अच्छा ड्राइवर बन जाएं। हो सकता है दूसरा ड्राइवर व्यक्तिगत बात को लेकर तनाव से गुजर रहा हो और आपकी अच्छाई देखकर वह आपका आभारी हो जाए। हमेशा नहीं लेकिन कुछ मामलों में हम सड़क पर किसी विवाद को अपनी समझदारी से, दूसरे को बेनिफिट ऑफ डाउट देकर कम तो अवश्य कर सकते हैं।
हम हमेशा सड़क के खराब ट्रैफिक को लेकर नाराज़ रहते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि हम भी ट्रैफिक का ही हिस्सा हैं। सड़क पर होने वाले क्रोध और क्रोध से की गई ड्राइविंग आम बात भले ही न हो, लेकिन इसे स्वीकारा नहीं जा सकता। सड़क पर जो कुछ होता है उसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। सड़क पर लिए गए फैसले का कुछ न कुछ तो असर होगा ही।
सड़क पर लिया गया सही फैसला ज़िंदगी और मौत के बीच का फासला बन सकता है।