WHO यानि कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अच्छी सेहत को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है, सकारात्मक परिवेश में निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा के साथ शारीरिक और मानसिक शांति (Sharirik aur Mansik Shanti) ही एक स्वस्थ शरीर का राज है। आज लोगों से जब कभी उनकी हाल-खबर पूछिए, तो एक सामान्य सा जवाब देते हैं कि “बस! जीवन कट/बीत रहा है।” ये बात लोग या तो अवसाद, तनाव, उदासीनता के कारण कहते हैं या फिर स्वास्थ्य समस्याओं के कारण कहते हैं। शारीरिक तौर पर समस्याओं के लक्षण कोई भी समझ सकता है, लेकिन मानसिक अस्वस्थता के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन आपको अंदर ही अंदर बीमार कर के रखते हैं। हम खुशी या आनंद कब महसूस कर पाते हैं? जब हमारा तंत्रिका तंत्र नकारात्मक संचार करता है, तब हम अस्वस्थ हो जाते हैं। इसलिए प्राचीन किताबों और वेदों में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि मन, शरीर और आत्मा के बीच सामांजस्य स्थापित करना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए लोग योग, व्यायाम, आदि करते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति तो आसानी से किसी भी व्यायाम को कर सकता है, लेकिन बुजुर्ग या विकलांग लोग किस तरह से अपने शारीरिक और मानसिक स्थिति को तंदुरुस्त रखने के लिए व्यायाम करेंगे? इसका जवाब है ‘ताई ची’, यह एक प्रकार का प्राचीन व्यायाम है, जिसे कोई भी कर सकता है।
चीन के लोगों द्वारा ताई ची (Tai Chi) का विकास हुआ था। जो आत्मरक्षा की एक कला है, लेकिन आगे चलकर यह स्वस्थ जीवन के आधार के रूप में प्रसिद्ध हुई। इसमें साधारण सी क्रियाएं, मेडिटेशन, ध्यान केंद्रण और ब्रीदिंग टेक्निक शामिल हैं। जो हमारी तंत्रिका में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं। वैश्विक स्तर पर बहुत सारे लोगों ने सुखी जीवन के लिए ताई ची का सहारा लिया है। ताई ची और इसके टेक्निक्स को समझने के लिए सोलवेदा ने ताई ची ट्रेनिंग एकेडमी फू शेंग युआन के संस्थापक सिफू जॉर्ज थॉमस से खास बातचीत की। थॉमस ताई ची के एक्सपर्ट हैं और अब वे इसके बारे में सभी को जागरूक करने के मिशन पर हैं।
ताई ची के मार्ग पर सफर कैसे शुरू हुआ? इस प्राचीन कला का अभ्यास करने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
मैं मार्शल आर्ट्स (Martial Arts) के क्षेत्र में 1977 से ही हूं। मैंने एक कराटे स्कूल ज्वाइन किया और सिक्स्थ-डिग्री (छठी डिग्री) ब्लैक बेल्ट लेवल को प्राप्त किया। मार्शल आर्ट्स के सिलसिले में मैं कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेता था। वर्ष 1983 में मैं ऐसे ही एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेने गया था। जहां पर मैंने लोगों को ताई ची का अभ्यास करते देखा। इस अलग तरीके के अभ्यास को देख कर मेरे मन में उत्सुकता हुई थी। इसके बाद मैं इसे सीखने के तरीके तलाशने लगा। वर्ष 1995 में यांग स्टाइल के एक ग्रैंड मास्टर मुझे ताई ची सिखाने के लिए अपना शिष्य बनाया। उन्होंने मुझे ताई ची की सभी क्रियाएं और खास बातें सिखाई। इसके बाद से मैं इस कला के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो गया। अब मैं इसकी प्रैक्टिस करने के साथ लोगों को ट्रेनिंग भी दे रहा हूं। ताई ची के प्रति मेरी जिज्ञासा आज मेरा पेशा बन गई है, जिसे मैं इंजॉय कर रहा हूं।
ताई ची कैसे काम करती है? साधारण सी क्रियाएं लोगों के जीवन में किस तरह से बदलाव ला रही हैं?
ताई ची एक शारीरिक व्यायाम है, जिसमें फोकस करना और ब्रीदिंग टेक्निक जैसी प्रैक्टिस शामिल हैं। जो व्यक्ति के शरीर और मन दोनों को प्रभावित करती है और अध्यात्मिकता से जुड़ने में मदद करती है। ताई ची में ‘ची’ यानि कि प्राण का उपयोग किया जाता है, जो हमारे शरीर के सभी अंगों तक ऊर्जा का संचार करता है। इस व्यायाम में निष्क्रिय या शिथिल अंगों तक ऊर्जा का संचार होता है और वे पुनर्जीवित हो सकते हैं। ताई ची जीवन का संचार करती है।
ताई ची आपका समय और संयम मांगता है, क्योंकि इसका प्रभाव कई वर्षों तक अभ्यास करने के बाद होता है। लगभग 10 सालों तक लगातार प्रैक्टिस करने से मार्शल आर्ट की तरह इसके भी परिणाम सामने आते हैं। इस व्यायाम में जो ‘ची’ प्रसारित होता है, वह सीधे मन को प्रभावित करता है। इस व्यायाम से हम मानसिक रूप से सतर्क और सशक्त होते हैं। इससे हम किसी भी काम को एकाग्रता से करने में सक्षम होते हैं। इन्हीं कारणों से कुछ खिलाड़ी ताई ची जैसे व्यायाम की प्रैक्टिस करते हैं, ताकि वे खेल के कठिन चरणों में भी अपने मन को शांत रख कर एकाग्र हो सके। ताई ची से हमारी मांसपेशियां टोन होती हैं, हमारे लिगामेंट्स मजबूत होते हैं, नसें, हड्डियां और तंत्रिका मजबूत होती हैं। यह व्यायाम किसी भी आयु वर्ग के लोगों को लाभान्वित करता है।
ताई ची का लाभ हमारे हृदय और पाचन तंत्र को भी मिलता है। रक्त प्रवाह और पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है। यूं कह सकते हैं कि इस व्यायाम से आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। ताई ची एजिंग की प्रक्रिया को भी धीमा कर देती है और मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखती है। किसी भी स्वास्थ्य समस्या को जल्दी ठीक करने में ताई ची सहायक हो सकती है।
ताई ची के कुछ फॉर्म को मेडिटेशन इन मोशन के नाम से भी जाना जाता है। तो शारीरिक गतिविधि के दौरान ध्यान को कैसे केंद्रित किया जाता है?
यांग फैमिली ताई ची क्रिया एक नदी की तरह काम करती है, जिसमें लगातार 21 मिनट तक बिना रुके कोई व्यक्ति लगभग 600-700 क्रियाएं करता है। वहीं, कुछ लोग प्रैक्टिस के दौरान अपनी नब्ज़ और सांस पर ध्यान देते हैं, जो कभी-कभी धीमी हो जाती हैं। अभ्यास के दौरान एक स्पीड में शरीर बाएं से दाएं, आगे से पीछे की तरफ गति करना चाहिए। इस दौरान रीढ़ की हड्डी सामान्य अवस्था में सीधी रहनी चाहिए, उसमें बिल्कुल भी तनाव नहीं होना चाहिए। इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण बात है, अपने मन को स्थिर और एकाग्र रखना। मेरे हिसाब से जब मन भविष्य और अतीत के जाल में नहीं उलझता है और आप वर्तमान में रहते हैं, तो वही ध्यान है। इसलिए इसे “मेडिटेशन इन मोशन” कहा जाता है। मैं विशुद्ध यांग फैमली ताई ची के बारे में बता रहा हूं, कई स्टाइल्स “मूविंग मेडिटेशन” के पैटर्न को फॉलो नहीं करती हैं।
ताई ची योग और चीगोंग से किस तरह अलग है?
योग और चीगोंग एक स्थिर व्यायाम या क्रिया है। जबकि ताई ची शारीरिक व्यायाम और ब्रीदिंग टेक्निक और गतिशीलता का संयोजन है। जिसे धीरे-धीरे किया जाता है, जिसमें इसकी सुंदरता निहित है। ताई ची का अभ्यास करने के बाद आप थकान महसूस नहीं करते हैं, बल्कि आपमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे आप खुद को फ्रेश महसूस करते हैं। योग और चीगोंग से ताई ची बेहद अलग है, क्योंकि इसे किसी भी उम्र में सीखा जा सकता है और इसे किसी भी स्थिति और उम्र के लोग कर सकते हैं। यह शरीर और मस्तिष्क के लिए एक संपूर्ण व्यायाम है।
आप ताई ची के माध्यम से स्वयं में आध्यात्मिक विकास को किस प्रकार से देख पाते हैं?
मेरा मानना है कि हमें यह जीवन किसी न किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए मिला है। इसलिए हमें अपने मन को स्थिर और शांत रख कर अपने हिस्से के काम को पूरा करते रहना चाहिए। ताई ची आपके मन को शांत कर आपके जीवन की भूमिका को वर्णित करती है, जिससे आप अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में जान सकते हैं। ताई ची हमें सिखाती है कि हमें सभी मनुष्य और जंतुओं का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि हमारे विकास में उनकी अहम भूमिका होती है। हमें यह बात समझाती है कि जीवन को बेहतर बनाने के लिए किस तरह से हमें परस्पर सामंजस्य बनाना चाहिए, क्योंकि हम एक-दूसरे के पूरक हैं। सभी का अस्तित्व समान है, इसलिए श्रेष्ठ और हीन जैसे शब्द हमारे जीवन में नहीं होने चाहिए। सिर्फ अपनी भूमिका को हमें बखूबी निभाना चाहिए।