संघर्षों के बीच मेरा जन्म…
रेणुका सिद्दी : जब मैं महज नौ महीने की थी तब मेरे माता-पिता की मृत्यु नदी में डूबने से हो गई। इसके बाद मेरे बुजुर्ग दादा-दादी ने मेरी परवरिश की। भले ही वे आर्थिक रूप से बहुत समक्ष नहीं थे। उस वक्त मेरे दादा जी जंगल से फल तोड़कर लाते और उसे बेचकर घर चलाते। इसके अलावा वे बड़े लोगों के घरों में नौकर का काम करते थे। हम 3 लोगों के परिवार के लिए यही जीविका का साधन था।
छोटी जाति होने की अलग पीड़ा …
रेणुका सिद्दी : हम लोगों ने हमेशा से ही सामाजिक रूप से कटी हुई जाति का जीवन जीया है। इसका अहसास मुझे अपने जीवन में तब हुआ, जब मैंने स्कूल जाना शुरू किया। प्राइमरी स्कूल में टीचर मुझे क्लास के पीछे बैठाते थे। क्लास में आगे की बेंच पर सिर्फ बड़ी जाति के लड़के-लड़कियां ही बैठा करते थे। अगर गलती से कोई सिद्दी का बच्चा आगे की सीट बैठ भी गया, तो शिक्षक उन्हें बहुत मारते थे।
जब वर्ष 2003 में हम लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला तो स्कूल के बाद आगे की शिक्षा हासिल करने में काफी मदद मिली। इससे पहले सिद्दी के बच्चे बड़ी जाति के घरों में नौकर या खेतिहर मज़दूरी का ही काम करते थे। गांवों में आज भी बमुश्किल से लोगों को पर्याप्त कमाई हो पाती है। गांव की महिलाएं दिनभर जी तोड़ मेहनत करने के बाद यही कोई 150 रुपए और पुरुष 200 रुपए कमा पाते हैं।
हाशिए पर समाज…
रेणुका सिद्दी : हमारे समुदाय के बारे में अधिकतर लोगों को कुछ भी जानकारी नहीं है। रिजेक्शन के डर के कारण हमारे समुदाय के लोगों ने खुद को दुनिया के सामने ज्यादा उजागर नहीं किया है। हालांकि, कुछ साल में समुदाय के लोगों के बीच थोड़ी बहुत उन्नति हुई है। इसके बावजूद आज भी हम लोग भेदभाव और छुआछूत जैसे दंश को झेल रहे हैं। शहरों की अपेक्षा गांवों में भेदभाव और छुआछूत कुछ ज्यादा ही है।
सिद्दी महिलाओं के समक्ष चुनौतियां…
रेणुका सिद्दी : मैं जिस जगह से आई हूं, उसकी वजह से मुझे अपने जीवन में कुछ ज्यादा ही संघर्ष का सामना करना पड़ा। किसी दूसरे अन्य पिछड़े समुदाय की तरह सिद्दी समुदाय में भी महिलाओं के लिए शिक्षा का घोर अभाव था। शिक्षा और रोज़गार के मामले में सिद्दी महिलाओं को समाज का बहुत ही कम समर्थन मिलता है। क्योंकि, इस समुदाय के अधिकांश लोग अनपढ़ हैं। शिक्षा का क्या महत्व है, इसके बारे में वे कुछ भी नहीं जानते हैं। यही कारण है कि समुदाय के लोग वास्तव में अपनी बेटियों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं। जब मैं 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी तो मेरी दादी चाहती थीं कि मेरी शादी हो जाए, लेकिन मेरे दादाजी की ख्वाहिश थी कि मैं खूब पढ़ूं।
बाधाओं के बावजूद शिक्षा…
रेणुका सिद्दी : आर्थिक तंगी के बावजूद मेरे दादाजी ने मुझे स्कूल जाने के लिए काफी प्रोत्साहित किया। यह अच्छी तरह जानते हुए कि बमुश्किल से घर का खर्चा चल पाता है, पढ़ाई करना तो दूर की बात है। हालांकि, मेरी लगभग पूरी पढ़ाई स्कॉलरशिप के खर्च पर ही हुई। क्योंकि, परीक्षा में मेरे काफी अच्छे मार्क्स आते थे। इसके अलावा मैं अनाथ थी। इस वजह से स्कॉलरशिप आसानी से मिल जाता था।
एक सिद्दी बच्चे के लिए अब तक की शिक्षा प्राप्त करने का मतलब एक खंभे से दूसरे खंभे पर चढ़ने-उतरने जैसा था। मुझे आगे की पढ़ाई के लिए अंकोला, तमिलनाडु और कारवार का कॉलेज मिला। यह मेरे लिए घोर संकट का दौर था, क्योंकि इन कॉलेजों में पढ़ाई अंग्रेजी में होती थी। और मुझे अंग्रेजी का एक शब्द भी नहीं पता था। इसके बावजूद मुझे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए खुद से ही अंग्रेजी सीखनी पड़ी।
एक अजनबी की तरह पहुंचना, एक नागरिक के रूप में पहचान बनाना
रेणुका सिद्दी : जिस तरह से हमारे पूर्वज भारत आए और विगत कुछ सैकड़ों वर्षों के दौरान हम लोगों ने जिन परिस्थितियों में खुद को पाया, उससे पता चलता है कि वे अपनी मूल परंपरा बहुत कम ही संरक्षित कर पाए। कुछ नृत्य अनुष्ठानों को छोड़ दिया जाए तो सिद्दी आज भारतीय रीति-रिवाजों के अनुसार ही जश्न मनाते हैं और उनका पालन करते हैं। हिंदू सिद्दी हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं, मुस्लिम सिद्दी इस्लामी रीति-रिवाजों का पालन करते हैं और ईसाई सिद्दी अपने चर्च के रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
शहर का जीवन…
रेणुका सिद्दी : पढ़ाई पूरी होने के बाद बेंगलुरू जैसे शहर में नौकरी ढूंढना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल भरा दौर था। बेंगलुरू में हमारे शारीरिक हाव-भाव को देखकर हर किसी को लगता है कि हम लोग विदेशी हैं। भारतीय पोशाक में रहने पर भी अक्सर लोग पूछते हैं कि मैं किस देश से हूं (हंसते हुए)। विदेशी समझकर यहां के स्थानीय लोग हम लोगों से कुछ ज्यादा ही पैसे वसूलने की कोशिश करते हैं। वे लोग हम लोगों से तब तक अंग्रेजी में बात करते हैं, जबतक कि मैं कन्नड़ या हिंदी में कुछ शुरू नहीं करती।
उम्मीद की किरण…
रेणुका सिद्दी : अब जब मैं कर्नाटक हाईकोर्ट में एक एडवोकेट के रूप में काम कर रही हूं, तो लोग पहले की तरह भेदभाव नहीं करते हैं। अपने पेशे की वजह से लोगों ने अब सम्मान देना शुरू कर दिया है। मुझे उम्मीद है कि अब हमारे समुदाय के अन्य लोग भी उच्च शिक्षा लेंगे। समाज में सम्मान, सुरक्षा और एक मुकाम पाने का यही एकमात्र तरीका है। गांवों में भी लोग अब अपने बच्चे को स्कूल भेज रहे हैं। एक समय में एक पीढ़ी में थोड़ा बहुत बदलाव हो रहा है। लेकिन, महिलाओं के लिए बदलाव की सोच अभी भी कोसो दूर है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि शिक्षा से वे अपने पैरों खड़ी हो पाएंगी व 15 साल की उम्र में शादी नहीं करेंगी।
सिद्दी लड़की की परवरिश…
रेणुका सिद्दी : जब भी मेरी कोई बेटी होगी, मैं यह सुनिश्चित करूंगी कि वह बड़ी होकर मज़बूत बने। उसकी मानसिक मज़बूती ही उसे आगे ले जाएगी। शिक्षा को वह अपना हथियार बनाएगी, ताकि उसे भेदभाव जैसे दंश का सामना न करना पड़े। मैं चाहती हूं कि वह और हर दूसरी सिद्दी लड़की एक ऐसी महिला बने जो मैं नहीं बन सकी। भविष्य की इन महिलाओं के कंधे पर दोगुनी जिम्मेदारी होगी- महिलाओं के रूप में सामाजिक सीमाओं को तोड़ना और सिद्दी के रूप में चुनौतियों को पार करना।