कलाकार एक जादूगर होता है, जिस तरह से जादूगर अपनी छड़ी व चंद मंत्रों से जादू कर सबको हैरान कर देता है। उसी तरह कलाकार का हथियार ब्रश और रंग होता है, जिससे वह एक बढ़िया कलाकृति बनाते हैं, जो दर्शकों को आश्चर्यचकित और प्रेरित करती है। लेकिन कुछ कलाकार सिर्फ आकर्षक कलाकृति ही नहीं बनाते हैं, बल्कि वे अपनी कला का इस्तेमाल सामाजिक बदलाव (Social change) लाने के लिए भी करते हैं।
मौजूदा समय में सामाजिक बदलाव लाने की दिशा में काम कर रहे युवाओं को ही ले लें, ये युवा कलाकार सार्वजनिक स्थानों पर अपनी कला से लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए हुए हैं। पुरानी इमारतों व फ्लाईओवर की बाहरी दीवारों पर ऐसी उम्दा चित्रकारी कर के समाज के लोगों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास दिला रहे हैं। सामाजिक बदलाव लाने के मकसद से वे अपनी कला के ज़रिए शहर के हर उस हिस्से में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे समाज के द्वारा नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। ये कलाकृतियां किसी भी विषय पर आधारित हो सकती हैं, जैसे- कूड़ा फेंकना, सार्वजनिक स्थानों पर थूकना या पेशाब करना। ऐसा करके वे ना सिर्फ एक अच्छी कला बनाते हैं, बल्कि लोगों को उनकी जिम्मेदारियों से रू-ब-रू कर के उसके बारे में सोचने के लिए मज़बूर करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर सोलवेदा आपको ऐसे तीन कलाकारों से मिलवाने जा रहा है, जिनकी कला ने बेंगलुरु में लोगों को अधिक जागरूक और जिम्मेदारियों को निभाने के लिए प्रेरित किया है। कुल मिलाकर कहें तो ये युवा सामाजिक बदलाव (Samajik badlav) ला रहे हैं। उनके चित्रों की तरह ही उनकी सोच में भी बहुत गहराई है। हमने उनसे उनकी प्रेरणा के बारे में जानना चाहा कि उन्हें ऐसा करना क्यों अच्छा लगता है? किस तरह युवा कलाकार इन सार्वजनिक स्थानों के ज़रिए समाज को सुधारने का प्रयास कर सकते हैं?
बेंगलुरु में सार्वजनिक स्थानों पर कला बनाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
अमिताभ कुमार : सामाजिक बदलाव की दिशा में मेरी सबसे पहली प्रेरणा एक नए वातावरण व स्थान से जुड़ना और किसी ऐसी चीज़ को ढूंढना है, जिससे मैं उस स्थान को अच्छे से समझ सकूं। इसके साथ ही उसे फिर से जीवित कर सकूं। वहीं, दूसरी तरफ आज भी सार्वजनिक दीवार पर पेंटिंग करना लोगों के द्वारा हास्य व संदेह की नज़रों से देखा जाता है। मेरे लिए प्रेरणा का दूसरा स्रोत यह भी है कि जब मैं पेंटिंग करना शुरू करता हूं तो, वहां से गुज़रने वाले लोगों से मिलने व उनसे बातें करने का मौका मिलता है। सामाजिक बदलाव की प्रेरणा मेरी कला को और अधिक सरल व समावेशी तरीके से दर्शकों के सामने पेश होने के काबिल बनाती है।
विवेक चोकलिंगम : मुझे दो बातों से प्रेरणा मिलती है, पहला संदर्भ व दूसरा अनिश्चितता से प्रेरणा मिलती है। संदर्भ की बात करें, तो वह मेरा अपना विचार होता है, जिसे मैं अपनी कलाकृति के ज़रिए उकेरता हूं। अनिश्चितता का मतलब यह है कि किसी ऐसे स्थान या सड़क किनारे अपनी कलाकृति को बनाना, जहां पर किसी को उम्मीद भी नहीं होगी कि कुछ अलग कलाकृति देखने को मिल सकती है। इससे कहीं ज्यादा मैं अपनी कला के बारे में दर्शकों द्वारा उनके स्वयं के अर्थ को और उनके सवालों को सुनना पसंद करता हूं।
रोज़री इकबाल : अक्सर पब्लिक प्लेस (Public place) के प्रति लोग अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से नहीं समझते हैं और वहां सही व्यवहार नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए फ्लाईओवर के नीचे की खाली जगह या किसी दीवार के पास लोग कूड़ा-करकट फेंका करते हैं, जबकि उन्हें पता होता है कि यह सही स्थान नहीं है। सामाजिक बदलाव लाने की पहल करते हुए यदि कोई कलाकार उस स्थान को अपने रंगों से सुंदर बनाता है, तो लोग उस खाली स्थान को भी जीवंत समझ कर उसकी सराहना करते हैं। जब समाज के लोग ऐसे स्थानों पर कलाकारों को उसे सुंदर बनाता देखते हैं, तो वे जागरूक होते हैं और उन्हें उनकी जिम्मेदारी का एहसास होता है, जो मुझे सबसे अधिक प्रेरित करता है।
आप उन दीवारों पर अपनी कलाकृति के ज़रिए समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
अमिताभ कुमार : सार्वजनिक स्थानों पर अपनी कला के द्वारा मैं ऐसा कोई विशेष संदेश नहीं देना चाहता हूं। सार्वजनिक स्थानों पर काम करना कलाकार को लोगों के जीवन की ज़मीनी हकीकत को समझने व उससे जुड़ने का मौका देती है। मेरा मानना है कि दीवार पर कुछ रचनात्मक करना एक कलाकार व दुनिया के बीच एक निशब्द संवाद स्थापित करता है। सार्वजनिक स्थानों पर पेंटिंग लोगों के सामाजिक जीवन और सिस्टम की कुछ सामान्य जिम्मेदारियों को दर्शाता है। यही छोटे-छोटे काम सामाजिक बदलाव लाते हैं।
विवेक चोकलिंगम: कला के ज़रिए, मैं पब्लिक प्लेस के प्रति लोगों में जिम्मेदारी का भाव जगाना चाहता हूं। साथ ही उन सब से यह भी उम्मीद रखता हूं की वे मेरी पेंटिंग में चित्रित संदेशों को समझें, उन पर सवाल व विचार करें। शहरी लोग अपने जीवन में बहुत व्यस्त होते हैं और हर क्षण में सिर्फ शहरी चमक-धमक ही देखते हैं। तब पब्लिक प्लेस पर बनी पेंटिंग व उसके पीछे के विचार उन व्यस्त लोगों से सवाल पूछने और सामाजिक बदलाव लाने जैसे प्रश्न पूछते हैं।
रोज़री इकबाल: मेरा पब्लिक आर्ट एक साधारण संदेश से ज्यादा कुछ भी नहीं है, एक ऐसा संदेश जो इन दीवारों को पर सुरक्षित है व समाज के लिए है। यह पेटिंग्स उन लोगों के लिए मैसेज है, जो इन दीवारों पर पोस्टर चिपकाते हैं, कुछ भी लिखते हैं या टॉयलेट करते हैं। कला लोगों को आकर्षित करती है, जिससे वे इन स्थानों को गंदा नहीं करते हैं।
एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते आप किस तरह से अपने पब्लिक प्लेस को सुरक्षित कर सकते हैं?
अमिताभ कुमार : मेरे हिसाब से हम सार्वजनिक स्थान को नहीं बल्कि वे हमें सुरक्षित करते हैं। बतौर कलाकार मेरा मानना है कि हमारी संस्कृति हमें सार्वजनिक जीवन की विशेषता आदि से जुड़ने में मदद करती है। कोई भी कलाकृति अलग-अलग जाति व संस्कृति के लोगों से मिलने-जुलने का एक ज़रिया मात्र है। इस तरह से भी एक शहरी जीवन की कल्पना की जा सकती है। इन सबके बीच हमें यह ज़रूर याद रखना चाहिए कि हम जहां हैं, वह हमें सीधे तौर पर प्रभावित करता है, इसलिए सार्वजनिक स्थान की सुरक्षा करना हमारा दायित्व है।
विवेक चोकलिंगम : एक ऐसी केंद्रीय शासन प्रणाली का विकास होना चाहिए, जहां हर व्यक्ति समाज के लिए काम करे। सिर्फ अपने मकान को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को अपना घर माने, जिसका समाज पर एक सकारत्मक प्रभाव पड़ेगा और सामाजिक बदलाव होगा। एक ऐसे समाज को विकसित करना चाहिए, जहां हर व्यक्ति का सम्मान हो और उसकी बात सुनी जाए। तभी हमारा समाज सही मायने में लोकतांत्रिक बन पाएगा। इस वैज्ञानिक युग में ऐप के ज़रिए एक ऐसा सिस्टम विकसित किया जा सकता है, जहां किसी मुद्दे पर सामूहिक रूप से सुव्यवस्थित तरीके से निर्णय लिया जा सके।
रोज़री इकबाल : अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ बनाए रखना एक जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है। खुले स्थान या सड़क पर कचरा न फेंक कर हम अपना परिवेश साफ-सुथरा बनाए रख सकते हैं। अपना परिवेश साफ रखने के लिए कुछ छोटे कदम उठा सकते हैं, जैसे- कूड़ेदान की व्यवस्था करना, दीवारों को स्वच्छ रखना, सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करना आदि। पोस्टर व पैम्पलेट दीवारों पर चिपकाने की जगह विज्ञापन के अन्य तरीकों को अपना सकते हैं। ऐसे काम कर हम सामाजिक बदलाव ला सकते हैं।
किसी भी बदलाव की शुरुआत अंदर से होती है, जिसे हम मानसिक बदलाव कह सकते हैं। हम यह परिवर्तन कैसे ला सकते हैं?
अमिताभ कुमार : आमतौर पर लोगों से मिल कर व उन्हें अपने काम से प्रभावित कर के ये बदलाव संभव हो सकता है। जब भी मैं कोई कलाकृति बनाता हूं, तो वहां की जनता और लोगों को उस का साक्ष्य बना कर उन्हें अपने संदेश से जोड़ने की पूरी कोशिश करता हूं। वहीं, मुझे ये बताने में बहुत खुशी हो रही है कि बेंगलुरु में कई स्थान ऐसे हैं, जो मुझे इस नेक काम को करने की अनुमति देते हैं।
विवेक चोकलिंगम : आज के दौर में करुणा तो जैसे खत्म सी हो गई है, हम अपनी छोटी-सी दुनिया में इतने व्यस्त हैं कि अगर हमारे सामने कुछ गलत होता है, तो हम उसे अनदेखा कर देते हैं। सबके साथ मिलकर सभी का विकास हो सकता है, लेकिन यह रातों रात संभव नहीं है। हम सभी का थोड़ा दयालु होना होगा, ऐसा कर सामाजिक बदलाव व बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
रोज़री इकबाल : शिक्षा से मानसिक विकास होता है। शिक्षा हमें संसार का स्पष्ट रूप और असल स्थिति से रू-ब-रू कराती है। हम सामाजिक कार्यों में भी शामिल हो सकते हैं, जहां लोग किसी एक समस्या को हल करने के लिए एकजुट होते हैं। इससे कोई भी व्यक्ति खुद में आंतरिक बदलाव ला सकता है।
आपके मुताबिक एक जिम्मेदार समाज के निर्माण में आज के युवा पीढ़ी की क्या भूमिका है?
अमिताभ कुमार : सामाजिक परिवर्तन में युवाओं की भूमिका बहुत ज़रूरी है। कला को सुसंगत माध्यम बना कर विभिन्न कलाकारों, डिजाइनरों और संस्कृति को बढ़ावा देने वाल लोग बदलाव का काम करते हैं। विविधता और समावेशी संस्कृति पर सभी युवाओं को मिल-जुलकर काम करने की बहुत ज़रूरत है।
विवेक चोकलिंगम : युवाओं को सबसे ज्यादा एक्टिव होना चाहिए, उन्हें अपने आस-पास के माहौल में घटित चीज़ों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अगर कुछ गलत हो रहा है, तो उसके खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए। युवाओं की भूमिका सिर्फ क्रांतिकारी होना ही नहीं है, बल्कि वे समाज को पूंजीवादी और काल्पनिक चीजों से परे, मनुष्य के सपने को साकार और विकसित करने की भी है।
रोज़री इकबाल : युवाओं से ही समाज विकसित होता है, वही समाज को संवार या बिगाड़ सकते हैं, सामाजिक बदलाव ला सकते हैं। उन्हें इस बारे में सोचने की आवश्यकता है। वे एक ऐसे समाज को बना सकते हैं, जहां लोग एक-दूसरे की परवाह करते हैं। युवाओं का शिक्षित होना ज़रूरी है, जिससे कि उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता हो। उन्हें सामाजिक कार्य करने के लिए स्वयं से सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना चाहिए। ऐसा करने से वे दूसरों के लिए प्रेरणा बनेंगे।