तज़्किये के लिए संपर्क का महत्व

तज़्किये के लिए संपर्क का महत्व

तज़्किये (शुद्धिकरण or self-purification) के लिए संगत एक सहायक माध्यम है।

प्राचीन युग में संगत का केवल एक माध्यम था और वह है एक-दूसरे से डायरेक्ट मुलाकात। वर्तमान युग दूरसंचार और संपर्क का युग है। आज के युग में यह संभव हो गया है कि कोई व्यक्ति दूर रहते हुए भी अपने मार्गदर्शक या प्रशिक्षक से संगत का लाभ प्राप्त कर सके। इस आपसी संपर्क का माध्यम पत्र-व्यवहार, इंटरनेट और दूरसंचार इत्यादि हैं। इसी का एक माध्यम टेली-काउंसलिंग (tele counselling) भी है। अगर कोई व्यक्ति वास्तव में तज़्किये (शुद्धिकरण or self-purification) का चाहने वाला हो, तो ये चीज़ें उसके लिए संगत का प्रतिफल (alternate) बन जाएंगी।

इन्हीं आधुनिक साधनों में से एक प्रिंटिंग प्रेस है। प्रिंटिंग प्रेस ने इसको संभव बना दिया है कि प्रतिमाह या गैर-प्रतिमाह पत्रिकाओं के माध्यम से लगातार तज़्किये का सामान प्राप्त किया जाता रहे। विषय से संबंधित प्रकाशित पुस्तकों का अध्ययन बार-बार किया जाए। “जिसने ज्ञान सिखाया कलम से”। इसका अर्थ यह है कि कलम के माध्यम से लिखी हुई पुस्तकों से धर्म को ग्रहण करना।

अध्ययन का महत्व एक पहलू से संगत से भी ज्यादा है। संगत में व्यक्ति किसी बात को अपने मार्गदर्शक से एक बार सुनता है, लेकिन पुस्तक के रूप में यह संभव होता है कि वह बार-बार उसका अध्ययन करे। वह बार-बार उसे सामने रखते हुए उस विषय पर सोच-विचार करे, वह उसको लेकर दूसरों से उस पर चर्चा (exchange) करे। यह एक ऐसा लाभ है, जो केवल पुस्तकों के माध्यम से प्राप्त होता है।

तज़्किये के लिए संपर्क बहुत ही आवश्यक है, यानी मार्गदर्शक से लगातार लाभ प्राप्त करते रहना, अपने मामले मार्गदर्शक को बताकर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करना। यह विचार-विमर्श सीधे रूप से संगत के माध्यम से भी हो सकता है और संचार के अन्य साधनों के माध्यम से भी। यह विचार-विमर्श लगातार वांछित (desirable) है। वक़्ती (समय) विचार-विमर्श से तज़्किये का लाभ प्राप्त नहीं हो सकता।

मौलाना वहीदुद्दीन खान इस्लामी आध्यात्मिक विद्वान हैं, जिन्होंने इस्लाम, आध्यात्मिकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर लगभग 200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।

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