टहनियों में न उलझें, मतभेद रोकने के लिए जड़ तक जाएं

टहनियों में न उलझें, मतभेद रोकने के लिए जड़ तक जाएं

समस्या की सिर्फ टहनियां ही नहीं, बल्कि जड़ भी होती है। इसलिए टहनियों में उलझने से अच्छा है कि आप जड़ तक जाएं और युद्ध को विराम की दिशा में ले जाएं।

मनुष्य का मन बहुत चंचल है, जिस कारण से कभी भी उसमें हो रही उथल-पुथल को जानना बहुत मुश्किल हो जाता है। मन के अंदर आने वाले विचार भी कई तरह के होते हैं। कई बार तो ऐसा देखा गया है कि हमारे विचार किसी अन्य के विचार से मेल नहीं खाते हैं और एक प्रकार का विरोध साफ नज़र आता है, जिससे मनमुटाव पैदा होता है और अंततः लड़ाई या झगड़े का कारण बन सकता है।

मनमुटाव को शुरुआत में ही नियंत्रित किया जा सकता है, नहीं तो वह आगे चल कर बड़े झगड़े का कारण बन सकता है। किसी से व्यक्तिगत मनमुटाव, कॉर्पोरेट की लड़ाई, देशों के बीच युद्ध भी शायद इन्हीं कारणों से होते हैं। वैश्विक स्तर पर भी यह मतभेद से अछूते नहीं रहते हैं। युद्ध के बाद क्षति के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता है।

इसलिए, इन क्षतियों को रोकना होगा, जिसका एक ही उपाय है कि झगड़े या बहस पर विराम लगाया जाए। खासतौर पर एक ग्रुप के बीच चल रहे मनोवैज्ञानिक संघर्षों को रोकने की ज़रुरत है। इसका तरीका है ग्रुप साइकोलॉजी, जिससे इसे रोका जा सकता है।

चाणक्य एक अर्थशास्त्री होने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक भी थे, जिन्होंने ऐसी स्थिति के लिए समाधान बताए हैं- “दो गुटों के बीच हो रहे युद्ध को उन गुटों के लीडर्स से बात करके, उनके मन को जीत कर, संघर्ष पर विराम लगाया जा सकता है।”

आइए, इस समाधान को बारीकी से समझते हैं:

सबसे पहले समस्या पहचानें

किसी भी क्षेत्र की शांति को तुरंत लड़ाई से भंग किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर रूस और यूक्रेन का युद्ध ही देख लें। बहुत समय, संसाधन और ऊर्जा तहस-नहस हो चुकी है।

लड़ाई रणनीति से लड़ी जाती है और बतौर रणनीतिकार लड़ाई को समाप्त करने के पहलू पर सोचना बहुत ज़रूरी है। लड़ाई के आगे भी जीवन है, हमें जिससे आगे बढ़ना चाहिए। हालांकि, इसके लिए हमें समस्या की जड़ तक जाने की ज़रुरत है। किसी भी युद्ध को पूरी तरह खत्म करने के लिए एक पुख्ते समाधान की ज़रुरत होती है। यदि वह ना मिले तो कम से कम हमें एक अस्थायी समाधान के बारे में ही विचार करना चाहिए, जिससे लड़ाई को विराम की ओर ले जाया जा सके।

ग्रुप लीडर से बात करें

जब कभी भी दंगे होते हैं, तो पुलिस अधिकारी उसे शांत करने के लिए कई तरीकों को अपनाते हैं, जिसमें उनका पहला कदम दोनों गुटों के लीडर से बात करना होता है। क्योंकि दंगा या युद्ध किसी लीडर के कहने पर ही होता है, जिसमें सैकड़ों लोग धीरे-धीरे भाग लेते हैं।

जैसा कि आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि सैकड़ों लोगों की तुलना में किसी एक को समझाना आसान होगा। इसलिए सबसे पहले ग्रुप लीडर से बात करना ही दंगे को शांत करने का पहला रास्ता है।

अप्रत्यक्ष तौर पर हम मान सकते हैं कि समस्या की जड़ कोई एक व्यक्ति होगा, जिसने दंगों को हवा दी हो। इसलिए सबसे पहले ग्रुप लीडर के बारे में पता लगाना चाहिए। दोनों ग्रुप के लीडर्स से अलग-अलग बात करें। बातचीत के बाद जब नेता पूरी तरह से दंगे रोकने के लिए सहमत हो जाते हैं, तो दंगा भी रुक जाएगा। क्योंकि जो लोग दंगे में लिप्त हैं, उन्हें लीडर ऐसा करने से रोक देंगे।

साधारण भाषा में आप कह सकते हैं कि आपने किसी मशीन के 100 बटन को बंद करने से बेहतर उसे मेन स्विच से ही बंद कर दिया।

समस्या के समाधान पर ध्यान केंद्रित करें

किसी भी समस्या पर सिर्फ बहस और चर्चा नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसके शांति का रास्ता ढूंढने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसलिए अपने लक्ष्य से भटकें नहीं, बल्कि समस्या को सुलझा कर आप लड़ाई को ही खत्म कर सकते हैं।

चाणक्य ने अर्थशास्त्र में 4 सिद्धांतों के बारे में बात की है, जिसे आप साम (चर्चा), दान (भेंट देना), दंड (सज़ा) और भेद (बांटना) के रूप में जानते हैं। इस तरह से आप साम, दान, दंड, भेद का इस्तेमाल वैकल्पिक तौर पर कर सकते हैं, क्योंकि आपका उद्देश्य जड़ तक पहुंच कर मतभेद को खत्म करना है।

डॉ राधाकृष्णन पिल्लई एक भारतीय मैनेजमेंट थिंकर है, लेखक और आत्म-दर्शन और चाणक्य आंविक्षिकी के संस्थापक हैं। डॉ पिल्लई ने तीसरी सदी ईसा पूर्व के ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर रिसर्च की है और इसे माॉडर्न मैनेजमेंट में शामिल किया है ।

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