मनुष्य सुख चाहता है। जैसे भूखे पेट कोई सुखी नहीं रह सकता, वैसे ही पनाह के बिना भी कोई सुखी नहीं रह सकता। जब तक हमारे घर में अन्न नहीं है, जिससे सबका पेट भर जाए या जब तक हमारे पास पनाह नहीं है, तब तक हम सुखी नहीं रह सकते। जब हम कोई नौकरी करते हैं तो वह इस उद्देश्य से कि हमारे घर में पैसे आए। हम कारोबार भी इसी उद्देश्य से शुरू करते हैं। हम सभी यही चाहते हैं कि इन कमाए हुए पैसों से हमारे घर में अन्न आए और उससे चूल्हा जले। इन पैसों को हम लक्ष्मी का रूप मानते हैं। इस प्रकार हम जो भी काम करते हैं, चाहे वह नौकरी करने का हो या कारोबार चलाने का, दोनों का उद्देश्य है, हमारे घर में लक्ष्मी का प्रवेश होना।
लेकिन लक्ष्मी चंचल है। इसलिए जब लक्ष्मी घर में आती है, तो हमें डर लगता है कि वह हमें छोड़कर चली जाएगी। हमें इस बात का भी डर होता है कि कोई हमारा धन, हमारी लक्ष्मी को हमसे चुरा लेगा। हमारे अंदर एक असुरक्षा जाग उठती है। मनुष्य केवल पैसे कमाने से सुखी नहीं रहता। मनुष्य के लिए सुरक्षित महसूस करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जब हम पनाह की बात करते हैं, तब हम केवल घर-गृहस्थी से मिलने वाली पनाह की बात नहीं कर रहे होते। हम केवल आर्थिक सुरक्षा की बात नहीं कर रहे होते, बल्कि मानसिक सुरक्षा की बात भी कर रहे होते हैं। हमें मानसिक पनाह की भी आवश्यकता होती है – एक ऐसा वातावरण जहां हमें कोई डर नहीं लगता, जिसमें हम अभय होकर जी सकते हैं। अर्थात हमें शक्ति की भी आवश्यकता है और उसे पाने के लिए हम दुर्गा की प्रार्थना करते हैं। इस प्रकार हम जो सुरक्षा चाहते हैं, मानसिक और शारीरिक, उसका रूपक दुर्गा हैं। इस प्रकार जीवन में लक्ष्मी के साथ-साथ दुर्गा का होना भी आवश्यक है।
जिन घरों में पैसा आता है, वहां ये पैसे कई बार कलह की वजह भी बन जाते हैं। जैसे श्वान हड्डियों के लिए लड़ाई करते हैं, वैसे लोग पैसों के लिए करने लगते हैं। मनुष्य का इस तरह से लड़ाई करना इस बात का संकेत है कि हमारे पास ज्ञान नहीं है, अर्थात सरस्वती नहीं है। जीवन में सरस्वती का होना भी बहुत आवश्यक है, क्योंकि वह ज्ञान की देवी हैं। सरस्वती के माध्यम से हम घर में लक्ष्मी ला सकते हैं। लेकिन सरस्वती केवल नौकरी या कारोबार के माध्यम से लक्ष्मी को घर में लाने के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। सरस्वती हमें समझाती हैं कि उनके बिना यदि हमारे घर में लक्ष्मी आती हैं तो वह साथ में अलक्ष्मी को लेकर आएगी, अर्थात कलह की देवी को।
लोग कहते हैं कि लक्ष्मी और सरस्वती के बीच में हमेशा लड़ाई होती है। जहां सरस्वती होती है, वहां पर लक्ष्मी नहीं आती और जहां सरस्वती नहीं होती, वहां लक्ष्मी आती है। लेकिन यह अल्प ज्ञान है, संपूर्ण ज्ञान नहीं। यह इसलिए कि किसी घर में यदि लक्ष्मी नहीं होगी तो सरस्वती अपने साथ दरिद्रता यानी गरीबी को लेकर आएगी। लोगों की यह मान्यता है कि ग़रीबी में कोई सुख नहीं होता। लेकिन जिसके पास आत्मज्ञान होता है, वह अमीरी और ग़रीबी दोनों में सुख प्राप्त करता है। वह धन को या लक्ष्मी को सही दृष्टिकोण से देखता है। इस प्रकार सरस्वती यह भी तय करती है कि लक्ष्मी के साथ हमारा कैसा रिश्ता होगा।
इस प्रकार हमें यह समझना चाहिए कि जीवन में सुखी होने के लिए लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा तीनों आवश्यक हैं। यह देवी के तीन रूप हैं। इसलिए जब हम भारतभर में देवियों के मंदिर जाते हैं (जम्मू में वैष्णो देवी का मंदिर, असम में कामाख्या मंदिर या मुंबई में महालक्ष्मी मंदिर) तो वहां हमें त्रिदेवियों के दर्शन होते हैं – दुर्गा जो हमें सुरक्षित रखती हैं, लक्ष्मी जो हमें अन्न और धन देती हैं और सरस्वती जो हमें ज्ञान देती हैं। जीवन में इन तीनों के उचित मिश्रण से हमें सुख मिलता है।