शिव ने विवाह क्यों किया?

योगी शिव ने आखिर विवाह क्यों किया? वे कैलाश पर्वत से नीचे क्यों आए? उन्होंने पुत्रों को क्यों जन्म दिया?

शिव की कहानियों में उनकी विवशता की लगातार बात होती है कि कैसे उन्हें विवाह कर कार्तिकेय और गणेश का पिता बनना पड़ा। विवाह से पहले शिव बर्फ़ीले और बंजर कैलाश पर्वत पर रहते थे। विवाह के बाद वे अपनी पत्नी के साथ नदी के तट पर स्थित काशी शहर में बस गए, जो उष्ण, नम और उर्वर था। वहां कई बाज़ार, श्मशान घाट और बगीचे थे जिनमें लोग व्यापार भी करते और जीवन का आनंद भी लेते।

शिव की कहानी दोहराई क्यों जा रही है? योगी शिव भोगी शंकर में क्यों बदल गए? उन्होंने विवाह क्यों किया? वे कैलाश पर्वत से नीचे क्यों आए? उन्होंने पुत्रों को क्यों जन्म दिया?

यह कहानी इसलिए बार-बार दोहराई जाती है कि लोग समझें कि भले ही सर्वश्रेष्ठ योगी और देवों के देव महादेव को भूख नहीं लगती, उनके आस-पास के लोगों को भूख लगती है। क्या इन लोगों की भूख मिटाना शिव का उत्तरदायित्व नहीं है?

हो सकता है कि हममें से कुछ ऐसे हों, जिन्हें जीवन में लक्ष्मी (संपत्ति) या दुर्गा (शक्ति) संभवतः चाहत ना हो, हम आय या आश्वासन संभवतः ना चाहें, लेकिन, हमारे आस-पास ऐसे लोग हमेशा होंगे जो ये दोनों चाहेंगे और इसलिए हमपर निर्भर होंगे। क्या हमें उनकी देखभाल नहीं करनी चाहिए? हम दूसरों की देखभाल उनके प्रति सहानुभूति के कारण करते हैं, न कि इसलिए कि हम बाध्य हैं। हमें देखभाल करने के लिए बाध्य तब लगता है जब हम स्वेच्छा से नहीं बल्कि मजबूरी में देखभाल करते हैं।

शिव का विवाह इसी सहानुभूति का प्रतीक है। वे कैलाश से नीचे उतरें और अपनी संतानों की देखभाल के लिए उन्होंने जीवन के तौर-तरीक़े सीखें।

ध्यान देने वाली बात है कि शिव के पुत्र गणेश और कार्तिकेय एक दूसरे से कितने अलग हैं। उनका दर्शन करने पर हम समझ जाते हैं कि दोनों हमारी मूल मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं – अपनी भूख मिटाना और अपना भय दूर करना। गणेश, जिनकी तोंद है, भोजन, संपन्नता और प्राचुर्य के प्रतीक हैं। वे लक्ष्मी से निकटता से जुड़ें हैं और फलस्वरूप हमारी भूख मिटाते हैं। वे अन्नपूर्णा को अपनी माँ मानते हैं, न कि दुर्गा को।

उधर कार्तिकेय बाहुबल से जुड़ें हैं और हाथ में भाला लिए खड़े होते हैं। वे देवताओं के सेनापति हैं। दुर्गा की तरह कार्तिकेय भी हमारी रक्षा करते हैं। इस प्रकार शिव के दोनों बेटे मिलकर मानवता की मूल आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। यह इस स्वीकृति का प्रतीक है कि हमें जीवन में लक्ष्मी और दुर्गा, अर्थात आय और सुरक्षा दोनों की आवश्यकता है।

इस प्रकार शिव जो कुछ नहीं चाहते हैं, को देवी ने दूसरों की भूख के बारे में अवगत कराकर प्रबुद्ध किया। इंद्र के स्वर्ग में दूसरों की भूख मिटाने की यह अवधारणा नहीं देखी जाती। क्या आपने इंद्र को किसी की देखभाल करते हुए कभी देखा है? लोग विष्णु और शिव से मदद मांगते हैं, लेकिन इंद्र से मदद नहीं मांगते। इंद्र केवल अपनी देखभाल करते हैं; ‘इंद्रसभा’ में वे गंधर्वों के संगीत, अप्सराओं के नृत्य और सोमरस का आनंद लेते हैं। इसलिए, इंद्र की पूजा कोई नहीं करता, जबकि शिव और विष्णु की पूजा सभी करते हैं।

शिव का विवाह बुद्ध के कृत्य के बिलकुल विपरीत है। बुद्ध पीड़ा से मुक्त होने के लिए अपनी पत्नी, बच्चों और राज्य को त्यागकर निर्वाण की खोज में चले गए। हिंदू धर्म ने बौद्ध सिद्धांत के प्रति शिव के विवाह के माध्यम से प्रतिक्रिया दी – धम्म के बजाय धर्म और एकांत तथा बुद्धिमत्ता के बजाय परिवार और सहानुभूति को महत्त्व दिया गया। शिव का उल्लेख वेदों और उपनिषदों में अर्थात बुद्ध के समय से पहले से होते आ रहा है। लेकिन पति, पिता और गृहस्थ के रूप में उनका उल्लेख केवल रामायण और महाभारत के काल में अर्थात बुद्ध के समय के बाद हुआ है।

यहाँ विवाह समाज से जुड़ने के लिए रूपक है। जहां बुद्ध जनसमूह को पीड़ा से मुक्ति अर्थात निर्वाण या मोक्ष प्रदान कर रहें थे, वहां शिव समाज के भीतर रहते हुए मुक्ति अर्थात जीव-मुक्ति प्रदान कर रहें थे। उनसे लोगों को संबंधों से अलग होने अर्थात वियोग का नहीं बल्कि संबंधों में तल्लीन होने अर्थात योग का संदेश मिला।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।