भारत का समुद्रतट विशाल है। लेकिन उसका समुद्री पुराणशास्त्र इसके अनुरूप विकसित नहीं हुआ है। भारतीय कला में नौकाओं की अधिकांश छवियाँ तालाबों और नदियों से जुड़ीं हैं, न कि समुद्र से, उदाहरणार्थ राम और सीता की गंगा को पार करने की छवियाँ और राधा और कृष्ण की यमुना पर नौकायान करती हुईं छवियाँ। भारत में जहाज़ों की बहुत कम छवियाँ हैं, जिनमें से कुछ छवियाँ भरहुत स्तूप तथा अजंता की गुफाओं में और कोंकण के वीर स्मारक पत्थरों पर देखी जाती हैं।
आधुनिक काल में, वरुण की पहचान समुद्र के देवता और लक्ष्मी के पिता के रूप में की जाती है। लेकिन वैदिक शास्त्रों में उन्हें स्पष्ट रूप से समुद्र के साथ नहीं बल्कि ‘जल’ के साथ जोड़ा गया, जिसका इस संदर्भ में अस्पष्ट अर्थ है। उनका उचित राजसी आचरण से भी निकट का संबंध था। समुद्र के देवता के रूप में उनका वर्णन हम कई सदियों बाद रामायण में ही पाते हैं। यहाँ उन्होंने राम से उनपर घातक तीर मारने के बजाय उनपर लंका तक पुल बाँधने की विनती की।
पुराणों में, उनकी पहचान सागर के रूप में की गई, जो मकर (डॉल्फ़िन या हाथी के सिर वाली मछली) पर सवार थे और जिनकी बेटियों ने विभिन्न नदियों का रूप लिया। उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका वास्तुशास्त्र में है, जहाँ वे पश्चिम दिशा के संरक्षक हैं, और वर्षा के देवता तथा पूर्व दिशा के संरक्षक, इंद्र, की उलटी दिशा में स्थित हैं।
ओडिशा में समुद्र से जुड़े कोई विशिष्ट देवता नहीं हैं। लेकिन वहाँ महिलाएँ नाविकों को सकुशल घर लौटाने में मदद करने वाली मंगला देवी की पूजा करती हैं। बंगाल और बांग्लादेश में, नाविक पँच-पीर की पूजा करते हैं, मक्का के पांच पवित्र पुरुष, जिनका उगम संभवतः महायान बौद्ध धर्म के पांच बुद्धों से हुआ था। 8वीं सदी में भैरव की पूजा करने वाले तांत्रिक की कहानी पाई जाती है, जिसने अपनी जादुई शक्तियों की मदद से एक ‘पत्थर’ की जहाज़ पर जावा से भारत तक यात्रा की।
प्राचीन तमिल संगम साहित्य के अनुसार मछुआरों की पत्नियाँ उच्च ज्वार की अमावस्या की रातों पर वरुण से प्रार्थना कर उन्हें फूल अर्पण करती थी। वरुण को रेत में गाड़े शार्क मछली के पंख के रूप में पूजा जाता था। भारत के दक्षिणी तट पर स्थित कुवारी देवी, कुमारी, की कहानियाँ भी पाईं जाती हैं, जो समुद्रतट को समुद्र में डूबने से रोकती हैं।
तमिल बौद्ध महाकाव्य, मणिमेखलै, में एक समुद्र-देवी, मणिमेखला, की बात की गई है। इस देवी ने नायिका को एक राजकुमार के अवांछित इशारों से बचाया और उसे समुद्र के पार द्वीप पर ले गईं जहाँ उसने बौद्ध धर्म के बारे में सीखा। मुंबई में स्थित कन्हेरी गुफाओं में, 5वीं सदी तक कालांकित एक शिलालेख है, जिसमें एक नाविक जहाज़ों की सुरक्षा के लिए बौद्ध देवी, तारा, का आह्वान करते हुए दिखाई देता है।
सबसे रोचक कहानी वाहनवटी सिकोतर माता की है, जिन्हें हरसिद्धि माता भी कहा जाता है। उनका मुख्य मंदिर गुजरात में, खंभात के पास है। वे समृद्धि, उपजाऊपन और जहाज़ों की सुरक्षा से जुड़ीं हैं। एक कहानी के अनुसार वे तब तक जहाज़ों को नष्ट करती रहीं जब तक कि उन्हें स्वीकार कर मनाया नहीं गया। वे जहाज़ों को लगातार ग़ुस्से से देखती थी। इसे रोकने के लिए, उन्हें समुद्र के किनारे पहाड़ की चोटी से नीचे समुद्रतट तक लाया गया। समुद्रतट पर उन्होंने नाविकों की सफल व्यापारिक यात्राओं के बाद उन्हें सकुशल घर आने में मदद की।
सिकोतर यह नाम यमनी द्वीप, सोकोत्रा, की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। फिलहाल संयुक्त अरब अमीरात ने सोकोत्रा पर कब्ज़ा किया है। इस द्वीप का उल्लेख ‘पेरिप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी’ में किया गया है, नौपरिवहन की एक प्राचीन यूनानी पुस्तक। इस पुस्तक में अफ़्रीका, अरब और भारत के बीच मानसूनी हवाओं की मदद से किए गए समुद्री व्यापार का वर्णन किया गया है।
सोकोत्रा द्वीप का नाम संभवतः संस्कृत के ‘सुखधरा’ शब्द से आया है जिसका अर्थ ‘वह जो आनंद प्रदान करता है’ है। सोकोत्रा द्वीप का समुद्रतट जोखिम भरा है और शायद इसलिए नाविक उसके पास जाने से डरे होंगे। संभवतः इसी कारण द्वीप को गुजरात में सिकोतर माता का रूप दिया गया, जिन्हें आज भी समुद्री व्यापार करने वाले और न करने वाले भक्त भी नौकाएँ अर्पण कर पूजते हैं।
देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।