उदाहरण के लिए, इसके अनुसार, अर्थनीति और पर्यावरण जुड़े हुए हैं, लेकिन धर्म और राजनीति के संबंध में क्या?
तुम्हें इस बात का अहसास दिलाना ज़रूरी है कि असली अपराधी कौन हैं। समस्या यह है कि वे अपराधी महान नेता माने जाते हैं, पवित्रता और प्रतिष्ठा के महान प्रतीक माने जाते हैं। तो मुझे इन सब लोगों का पर्दाफाश करना है क्योंकि वे ही मूल कारण हैं।
अब जैसे, यह समझना सरल है कि शायद राजनीतिक कई समस्याओं के कारण हैं; युद्ध, खून, कत्ल, लेकिन धर्मगुरुओं के संबंध में यह सब समझना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उनके खिलाफ किसी ने आवाज़ नहीं उठाई है। सदियों-सदियों से वे प्रतिष्ठित बने हुए हैं। और जैसे-जैसे समय गुजरता है, उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होती चली जाती है।
मेरे लिए सबसे मुश्किल काम यह है कि तुम्हें इस बात के प्रति सजग करुं कि इन लोगों ने जाने-अनजाने, इसका कोई सवाल नहीं है, यह संसार बनाया है।
राजनीतिकों और पुराहितों की निरंतर साजिश रही है, वे हाथ में हाथ मिलाकर, साथ-साथ काम करते रहे हैं।
राजनीतिक के पास राजनीतिक ताकत है, पुरोहित के पास धार्मिक ताकत है। राजनीतिक पुरोहित की रक्षा करता है, पुरोहित राजनीतिक को आशीर्वाद देता है और जनता का शोषण होता है। दोनों मिलकर उसका खून चूसते हैं।
धर्मों ने काल्पनिक विश्वास निर्मित करके मनुष्य को मतिमंद कर दिया है। राजनीतिकों ने जीवन को अधिक से अधिक अशोभनीय बनाकर मनुष्य को नष्ट कर दिया है। क्योंकि उनकी ताकत तुम्हारी गुलामी पर निर्भर करती है। ये अवरोध हटा देने चाहिए।
वस्तुतः विज्ञान को मृत्यु और विनाश की सेवा में नहीं लगाना चाहिए बल्कि जीवन और प्रेम, विधायकता और उत्सव की सेवा में लगाना चाहिए।
हम आज ऐसी स्थिति में आ गए हैं कि या तो हम इन सड़े-गले राजनीतिकों और पुरोहितों को पूरी मनुष्यता और पृथ्वी को नष्ट करने देंगे या फिर हमें उनके हाथों से ताकत छीनकर मानवता में विकेंद्रित करनी होगी।
उदाहरण के लिए, हर धर्म संतति-निरोध के खिलाफ शिक्षा देता है और किसी शासन में इतना साहस नहीं है कि इन धर्मों से कह दे कि वे एक ऐसी परिस्थिति पैदा कर रहे हैं, जिसके कारण पूरी पृथ्वी भंयकर पीड़ा से गुजर रही है। इस समय जो दरिद्रतम देश हैं उनमें से 40 देशों में, 20 प्रतिशत बच्चे 5 वर्ष की आयु से पहले ही मर जाते हैं।
राजनीतिक जनता से संतति-निरोध या गर्भपात के पक्ष में कुछ कहने से डरते हैं। क्योंकि उनका सारा रस इसमें नहीं है कि देश बचे या मरे, उनका रस इसी में हैं कि किसी को बुरा न लगे।
लोगों के अपने पूर्वाग्रह हैं, लेकिन राजनीतिक उन पूर्वाग्रहों को छूना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें उनके वोटों की ज़रुरत होती है। अगर वे इन लोगों के पूर्वाग्रहों को चोट पहुंचाएं तो ये लोग इन्हें अपने वोट नहीं देंगे।
जनसंख्या विस्फोट एक समस्या है।
सभी धर्म सिखा रहे है, गरीबों की सेवा करो। लेकिन, एक भी धर्म यह कहने को तैयार नहीं है, संतति-निरोध का अंगीकार करो ताकि जनसंख्या घटे।
पोप निरंतर हस्तक्षेप कर रहे हैं। वे संतति-निरोध की अनुमति नहीं देंगे, वह पाप है, ईश्वर के प्रति किया गया अपराध है। यह कैसा ईश्वर है, जो इतना नहीं देख सकता कि धरती पर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जा रहा है।
राजनीति आकड़ों का खेल है।
दुनिया में तुम्हारे ईसाई कितने हैं, उतनी तुम्हारी ताकत है। ईसाई जितने अधिक हों उतनी ईसाई पुरोहित और पौरोहित्य के हाथों में ताकत होगी। कोई किसी को बचाना नहीं चाहता, बस जनसंख्या बढ़ती जाए।
ईसाइयत इतना ही करती रही है कि वेटिकन से सतत संतति-निरोध के खिलाफ आदेश जारी करती रही, यह कह कर कि संतति निरोधक उपायों का उपयोग करना पाप है कि गर्भपात में विश्वास करना, गर्भपात को प्रोत्साहन देना या उसे कानूनी बनाना पाप है।
क्या तुम सोचते हो कि उन्हें अजन्मे बच्चों में कोई उत्सुकता होती है? कोई उत्सुकता नहीं होती। उनको उन अजन्मे बच्चों से कोई लेना-देना नहीं है। वे अपने स्वार्थ पर नज़र रखते हैं, अच्छी तरह जानते हुए कि अगर गर्भपात नहीं किया गया, अगर संतति-निरोध के उपाय नहीं किए गए तो यह पूरी मानवता का सार्वभौम आत्मघात करने वाली है।
यह इतनी दूर की बात नहीं है कि तुम स्थिति को देख न सको। अगर, हालात नहीं बदले तो विश्व की जनसंख्या इतनी बढ़ेगी कि बचना मुश्किल हो जाएगा।
अभी-अभी, हाल ही में वेटिकन ने मनुष्यता के नाम एक प्रदीर्घ संदेश प्रसारित किया है, एक सौ उनतालीस पृष्ठ का-“गर्भपात पाप है, संतति-निरोध पाप है।’
अब बाइबिल में कहीं भी गर्भपात पाप नहीं है। क्योंकि उस समय संतति-निरोध की कोई ज़रुरत ही नहीं थी।
10 बच्चों में से 9 मरने ही वाले थे। यह अनुपात था और यह अनुपात भारत में सिर्फ 30 या 40 साल पहले तक था, 10 बच्चों में से सिर्फ 1 बचता था। उस समय आबादी इतनी ज्यादा न थी, वह पृथ्वी के साधनों पर बोझ नहीं बनी थी। अब तो भारत में भी, फिर विकसित देशों के संबंध में तो कहना ही क्या, भारत में भी 10 बच्चों में से केवल एक मरता है।
तो चिकित्सा विज्ञान जीवित रहने में लोगों की मदद किए चला जाता है और ईसाइयत अस्पताल खोलती जाती है और दवाएं बांटती चली जाती है। साथ ही साथ संतति-निरोध की निंदा करती है और इस तरह की मूढ़तापूर्ण धारणाएं प्रचलित करती चली जाती है कि “बच्चे परमात्मा की देन हैं।’ प्रशंसा करने के लिए मदर टेरेसा हैं ही। पोप तुम्हें आशीष भेजने ही वाले हैं!
यहां तक कि वे रूस के संबंध में भी चिंतित हैं। अमेरिका में एक ईसाई संगठन है, (भूमिगत सुसमाचार) जो कम्युनिस्ट देशों में मुफ्त बाइबिल बांटने का काम करता है और साथ-साथ ये मूढ़तापूर्ण धारणाएं भी बांटता है कि गर्भपात पाप है और संतति-निरोध पाप है।
रूस में भुखमरी नहीं है। वे लोग धनवान नहीं हैं, लेकिन भूखे भी नहीं हैं। कृपा करो, कम से कम उन्हें तो बख्शो! यह संतति-निरोध का कमाल है कि वहां पर भुखमरी नहीं है। अगर संतति-निरोध निषिद्ध हो, गर्भपात निषिद्ध हो तो रूस भी इथोपिया की हालत में पहुंच जाएगा। फिर मदर टेरेसा और पोप बड़े खुश होंगे। भूमिगत सुसमाचारी भूमि के ऊपर आ जाएंगे कि लोगों को ईसाइयत में परिवर्तित करने का यह एक महान अवसर है।
अगर, किसी दिन इस जनसंख्या विस्फोट के कारण यह पूरी पृथ्वी मर गई तो उसके लिए ये लोग जिम्मेवार होंगे। क्योंकि ये संतति-निरोध और गर्भपात के विरोध में हैं। अब बगैर संतति-निरोध के, बिना गर्भपात के, इस पृथ्वी के समृद्ध होने की कोई संभावना नहीं है।
मनुष्य का स्वर्णिम भविष्य: एक महान चुनौती से उद्धृत
ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।